Aprajita Priyadarshini  
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Joined 29 October 2019


Joined 29 October 2019
29 NOV 2020 AT 13:13

आशना

धुँध के लिबास में
मंज़िल बसी है
सफ़र की नाव में

पहुँची थी जिसे ढूँढती यहाँ
साहिल नहीं है ये मेरा
मेरा बहाना भी कहीं और है

ये आशना नहीं है मेरा
मेरा ठिकाना कहीं और है

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29 NOV 2020 AT 12:43

आशना

ये आशना नहीं है मेरा
मेरा ठिकाना कहीं और है

धुँध के लिबास में
मंज़िल बसी है
सफ़र की नाव में

पहुँची थी जिसे ढूँढती यहाँ
साहिल नहीं है ये मेरा
मेरा बहाना कहीं और है

ये आशना नहीं है मेरा
मेरा ठिकाना कहीं और है

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15 SEP 2020 AT 10:23

ख़ास शनिवार

यह शनिवार कुछ ख़ास रहा
एक झलक़ तरक़्क़ी का, आस का रहा

सुबह, सवेरे तड़के
एक गाड़ी में भरके
कुछ उम्मीदें निकलीं
ढालने एक नीव, परिवर्तन लाने कई

बाग़मती किनारे बसी एक बस्ती थी
निकलीं यहाँ से कई हस्ती थी
सैलाब था यहाँ, फिर भी अकाल था
क्षमता के बीच बैठा जैसे, आत्मसनदेह का काल था

प्रेरणा जगानी थी, एक राह दिखाना था
मन की शक्ति का पाठ भी पढ़ाना था
रोशनी लानी थी मायूस पालकों में
साधन ढूँढना था कई विकल्पों में

उन्नति की ओर बढ़ाया सम्भव, एक छोटा प्रयास रहा
यह शनिवार वाक़ई ख़ास रहा

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30 JUN 2020 AT 0:46

एक और मुलाक़ात

बेपरवाह बातें
मुस्कुराती शामें
चमकती आँखें
भूली कुछ मुरादें

कई बातें जो पुरानी हुईं
कई रातें जो यादें हुईं

आज महफ़िल में सब नज़र आयीं
कई दफ़ा खुद से ही ज़ैसे, आज मुलाक़ातें हुईं

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23 JUN 2020 AT 2:12

‘बदलाव की नींव’

तुम कहाँ गुज़रते उससे
वो तुम में गुज़रता है

एक बार गुज़र तो जाने दो
नव-निर्माण फिर सुनहरा हो

संदर्श बदला बदला हो
दृष्टिकोण अब भी गहरा हो

अप्रभावित बीते कल से
उभरता नया एक चेहरा हो

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16 MAY 2020 AT 19:29

ग़लत पता

नींद, तू ग़लत पते पर आयी है
यहाँ रहता अब एक़ दीवाना है

सपनों की कुछ दीवारें हैं
रंग उनपर अभी चढ़ाना है

नींद, तू ग़लत पते पर आयी है
यहाँ रहता अब एक़ दीवाना है

एक कमरे में हैं अफ़सोस कई
निशाँ उनका भी मिटाना है

नींद, तू ग़लत पते पर आयी है
यहाँ रहता अब एक़ दीवाना है

एक कोना है उम्मीदों का
कुछ गुलदस्ते वहाँ सजाना है

नींद, तू ग़लत पते पर आयी है
यहाँ रहता अब एक़ दीवाना है

दरवाज़ों से लटके परदे हैं
छिद्र इनमें भी अब दिखते हैं

कई छिद्रों को सीना है
कुछ पर्दों को हटाना है

नींद, तू ग़लत पते पर आयी है
यहाँ रहता अब एक़ दीवाना है

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12 MAY 2020 AT 13:40

कुछ और वक़्त गुज़रने दो
तुम मुझको और बिखरने दो

एक़ वक़्त वो भी आएगा
अस्तित्व तुम्हारा, तुम से टकराएगा

फ़िर भूल ये मदमस्ती तुम
ख़ामोशी में होगे ग़ुम

एहसासों में उलझोगे
सवाल ख़ुदी से पूछोगे -

“मैं जिसके पीछे जागा था
वो गर्दिश थी या तारा था”

मैं अब भी दूर गयी नहीं
ख़फ़ा हूँ, रूखसत हुई नहीं

रुख़ मोड़ सको
तो मोड़ लो

- Mother Nature

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12 MAY 2020 AT 13:30

Kuch aur waqt guzarne do
Tum mujhko aur bikharne do

Ek waqt wo bhi aayega
Astitva tumhara, tum se takrayega

Phir bhool yeh madmasti tum
Khamoshi mein hoge gumm

Ehsaason mein uljhoge
Sawaal khudi se poochoge -

“Main jiske peeche jaaga tha
Wo gardish thi ya taara tha”

Main ab bhi door gayi nahin
Khafa hoon, rukhsat hui nahin

Rukh mod sako
Toh mod lo

- Mother Nature

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3 MAY 2020 AT 8:44

ख़ो गए हम कहाँ

ख़ुद से ही बातें करना भूल गए
अपने आप से इतने दूर गए
यूँ बेमक़सद कहाँ मसरूफ़ हो गए
जानें किस ख़्वाब में विलीन हो गए
जैसे ख़ुद ही भीड़ और
ख़ुद में ही तलाशहीन हो गए

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20 MAR 2020 AT 8:36

निर्भय आशा

एक निराशा ले कर सोयी थी,
आशा सुबह यह लायी है
पढ़ा ख़बर जब यह उठकर,
अदालत ने दरखास्त देर रात ठुकराई है
आज सुबह “निर्भया” ने, उसकी साँस फिर से पायी है
आज सुबह “निर्भया” ने, ग़हरी साँस फिर से पायी है
आज सुबह “निर्भया” ने, उसकी साँस फिर से पायी है

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