अब हर दरख़्त है खाली और हर नजर सवाली
बेगाना है वक्त या वो खयाल है बेख्याली
कि पतझड़ के मौसम भी पूछते हैं हमसे
कहां है बीता बसंत और तेरे दिल का माली-
पर जो है वो इस ज़माने को पसंद नहीं
Instagram- aprajita10... read more
किसी किताब के आवरण को बदल कर आप कुछ समय के लिए उसकी बाहरी स्थिति ठीक कर सकते हैं ना कि उसमें लिखी उस कहानी के शीर्षक को।
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बेहतर है अपने लफ्ज़ों को अपने लबों तक रखें
हर शख्स और हालात इनके मुनासिब नहीं होते-
होता है तो हो जाए मुझसे खफा ये जहां
हां तुम हो मेरे जन्नत, तुझमें है मेरा पनाह-
मंजिल से राहों का फासला यूं तो बहुत ज्यादा था
तुम हो तो हैं राहें, वरना तुम बिन मैं आधा था-
है किसी को आंखों में
भरने की ख्वाहिश
अब वो रहता है
निगाहों या ख्वाबों में
कौन जानें वक्त की
क्या है आजमाइश-
कि रुख बदली है ये हवाएं
न जानें क्यों
खामोश सी हैं फिजाएं
शायद कुछ तो ढूंढ रही है आंखें
इन नज़रों से अब क्या छुपाएं
लब भी है ठहरे हुए
कैसे उन्हें, हम क्या बताएं
हां कुछ लोग पढ़ लेते है खाली अल्फाज भी
तो क्या अब हम उन्हें कह कर ही इश्क जताएं
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अपने एहसासों को शब्दों में पिरोना
जैसे सीखते है हम अक्षर से
शब्द और शब्द से वाक्य बनाना
एक एक कदम बढ़ाते हुए
हमने लेखन के महत्व को जाना
कि कभी भी हम अकेले नहीं है
क्योंकि yourquote ने हमें अपना माना-