सीमित मन के कुछ शब्दों में विस्तृत संसार ना लिख पाई
मधु खोजन निकली सदियों से, हिस्से में केवल विष पाई
शेष अनुशीर्षक में ✍️-
जिंदगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह
🔥 अपराजिता🔥
जि... read more
ये कविताएँ ना होतीं तो, क्या होता
, शब्द मायूस बनके फ़कत रोता
तो ना अभिव्यक्त होता किसी का दर्द
,सभी के मन विरह में स्वयं खोता
अनुशीर्षक में ✍️-
महज़ काग़ज़ के चंद टुकड़ों से दुनियाँ में पहचानी जाऊँ
नहीं मैं वो नही बनना चाहती,जो किसी पद से जानी जाऊँ
[ शेष अनुशीर्षक में✍️ ]-
कभी कभी हार एक दंश बन जाता है
जब हमारे वजूद को उससे तौला जाता है
[ पूर्ण अनुशीर्षक में]-
मर्यादा में बंधी स्त्री की वेदना
प्रेम या प्रश्न की भावना
(पूर्ण अनुशीर्षक में )-
सुंदर और पावन शब्दों की, पंक्तियाँ बिखेरें रोज यहाँ
कान्हां के प्रेम मेें शब्द चुनें,नित सुबह सवेरे दीदी माँ
दिल को छू जाए पंक्ति सदा,ये ऐसे पंक्ति सज़ाती हैं
लिखती हैं मनमोहक कविता, अंतर्मन में बस जाती हैं
जितनी सुंदर कविता इनकी, उससे भी प्यारी सीरत है
ये लगती कभी महादेवी, और कभी दया की मूरत हैं
मन भावुक सा हो जाता है, नित स्नेहभरी कविता पढ़ कर
ईश्वर के स्नेह में लिखती हैं, ख़ुद पंक्ति पढ़ें कान्हां आ कर
रस,छन्द, अलंकारों की ये, अनमोल भावना व्यक्त करें
हर घड़ी, भक्ति में लीन रहें,शब्दों में समर्पण व्यक्त करें
ये लिखती रहें सदा यूँ हीं, जब तक शब्दों का सागर है
शब्दों का ऐसा हो प्रकाश ,जैसे नित करे दिवाकर है
इस पावन दिन के अवसर पर, आत्मा से यही कामना है
ईश्वर दें लंबी उम्र ,ख़ुशी, हर कण की यही प्रार्थना है
एक छोटा सा उपहार है ये, स्वीकार करो ओ दीदी माँ
यूँ ही रहना सबके दिल में, नित शब्दों में विस्तृत होना-
मैं शब्दों के अम्बार लिखूँ, या लिख दूँ प्रेम की मधुशाला
मैं स्नेह शब्द के सागर में, बन जाऊँ त्याग सी एक ज्वाला
जो शब्दों में आकार बनी,फ़िर शब्द बने मुझमें मोती
जो अंधियारे में खो जाऊँ, तो शब्द बने मेरी ज्योति
मैं हर दिन ख़्वाब सजोती हूँ, फ़िर उनको शब्द बनाती हूँ
जब खो जाती हूँ ख्वाबों में, तो शब्दों में मिल जाती हूँ
ये शब्द अगर ना होते तो, ये जीवन फ़िर कैसा होता
एहसासों के बाग़ीचे में, बिन फूल के हर माली रोता
ये शब्द है मन की अभिलाषा, ये शब्द हृदय की पीड़ा है
ये शब्द सुरों का शंखनाद, ये जज्बातों की वीणा है
सब गहनों से श्रृंगार करें, मैं शब्दों का श्रृंगार करूँ
सब एक दूजे से स्नेह करें, मैं बस शब्दों से प्यार करूँ
सब द्वेष भाव में रमे हुए, मैं शब्दों से ही स्नेह करूँ
सब बँधे हैं ख़ुद की छाया से,मैं शब्दों में आज़ाद फिरूँ
जो दर्द मेरे अंदर छाया, वो कलम मेरा कह जाता है
मेरे अंतस् का लेखन से, जन्मों जन्मों का नाता है
हर कविता मेरे अंतस् की कुछ भाव समेटी है ख़ुद में
मैं कविता में ख़ुद को ढूँढू,और वो ढूँढे ख़ुद को मुझ में
अपराजिता ✍️-
जब तप्त से मरुस्थल में, जल उठेंगी आत्माएं भी,
तब अंतहीन सागर बन रेगितास्तान को नहलाऊँगी।।
जब हर तरफ अंधेरे की, विकराल घटा छाएगी,
तब प्रज्ज्वलित हो ज्वाला सी, मैं सब में जगमगाऊँगी
जब चार्वाक का दर्शन , छाएगा मेरी वसुधा पे,
तब ब्रह्म बन के शंकर का, जग ब्रह्ममय बनाऊँगी।।
जब स्नेह त्याग ममता से,अस्तित्वहीन जग होगा,
बन मीरा, राधा,ब्रह्मचारिणी,हर फ़र्ज़ मैं निभाऊँगी।।
जब विश्व में प्रलय होगा, अस्तित्व का विलय होगा,
तब अंश बन के ईश्वर का, फ़िर से जगत बनाऊँगी।।
जब जल विहीन वसुधा पर,सर्वत्र त्राहि छाएगा,
शिव शम्भु की जटाओं से, मैं गंगा बनके आऊँगी।।
जब नष्ट हो रही होंगी, वेदों की भूमि की संस्कृति,
बन ज्ञान सभ्यताओं का, वसुधा में फैल जाऊंगी।।
जब ख़्वाब सारे स्मृति के, रह जाएंगे अधूरे से,
तब हार के हर एक पल को,मैं जीत के दिखाऊंगी।।
बन देवता और असुरों सा,सब चाहेंगे सुख का अमृत
सुकरात, मीरा, शम्भू सा, विषपान मैं कर जाऊंगी।।
जब भीड़ भरी दुनियाँ में, सब ख़ुद में खो गए होंगे,
मैं बुद्ध बन के हर मन में, एकांत को जगाऊँगी।।
अपराजिता
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