एक अरसा बीत गया खुद से मिले हुए,
एक सफ़र पीछे छूठ गया, बिन मंज़िल मिले हुए,
कुछ मुलाकातें अधूरी रह गई, कुछ खुद से गिले हुए,
मैं खो गया हूं कहीं, और बहुत वक्त हो गया है कुछ लिखे हुए...!-
फ़रेब सी महफ़िल में, मैं इश्क़ सा तन्हा हूं,
बेज़ार सी ज़िंदगी में, एक खोया सा लम्हा हूं,
मंज़िल को ढूंढते ढूंढते हम इन रास्तों के हो गए हैं,
न जाने इस सफ़र में....,
मैं और मेरी शायरी कहीं खो से गए हैं...!— % &-
रख ऐतबार इन बूंदों पर, इनका रिश्ता तुझसे है कुछ ख़ास,
मत सोच की तू है अकेला, है पूरा आसमां तेरे पास,
बन के हवा तू उड़ जहां में, बन के हवा तू उड़ जहां में,
तू बरस इतना की मिट जाए सागर की भी प्यास...!-
बाहर दिखता सब शांत, अंदर ये कैसा शोर है,
ये शख़्स बाहर से कुछ, और अंदर से कुछ और है...!-
हूं तन्हा इस महफ़िल में, किसी शख़्स से मेरी मुलाकात नहीं होती,
बातें तो होती है सब से, पर अब वो बात नहीं होती...!-
Hu tanha is mehfil me, Kisi shaqs se meri mulakat nahi hoti,
Baatein toh hoti hai sbse, par ab wo baat nahi hoti...!-
थक गया हूं मैं, आखिर ये ज़िंदगी कब तक चलेगी...!
महफिलों से दूर, तन्हा रहता हूं,
ये खुद से नाराज़गी, कब तक चलेगी...?-
ज़िंदगी ने हर कदम मेरे होने पर सवाल किया है,
अब तो आईने ने भी हमसे मुंह फेर लिया है,
कुछ अधूरे किस्से रह गए है मेरे ज़ेहन में,
बिखर के मेने खुदको अब समेट लिया है,
मगर ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई....
पर मैंने अपना किरदार निभा लिया है...!-
भूलने की आदत नहीं है मुझे,
बस कुछ लम्हो को दोहराने से डर लगता है,
दूर रहने की आदत नहीं है मुझे,
बस किसी के करीब आने से डर लगता है,
चेहरों का जो ये बाज़ार है ना,
इस में लगते तो सब अपने से ही हैं,
बस कुछ चेहरों को पहचानें से डर लगता है…!-
कुछ सपने टूटे, कुछ अपने छूटे,
ज़िन्दगी को मनाते मनाते न जाने हमसे कितने रूठे...!-