रूबरू मुझे तुझसे आज होना है।
तुझे देखना है
पर, तुझे देखना भी नहीं।
Rubaru mujhe tujhse aaj hona hai...
Tujhe dekhna hai,
....
Par, Tujhe dekhna bhi nahi...-
यूं पुरा दिन गुज़ार दिया आपके इंतज़ार में
ना गुलाब आया
ना पैग़ाम आपका।
Happy Rose day
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शोहरत से चकाचौंध आंखें तुम्हारी
मेरी आंखों की नमी ना पढ़ पाएगी
बहुत दूर जो चले गए हो तुम
मेरी आवाज़ तुम तक ना पहुंच पाएगी।-
हम मसलसल तबाह हुए बात बेबात पर
कुछ बात अधूरी सी यूंही रह गई।-
वो जो झांक रहे हो तुम
बादलों को चीर कर
चांदनी तुम्हारी ज़मीन पर गिर रही है
समेटो इन्हे और आसमान में भर लो
ऐ चांद मेरी नज़रों को सुकून दो।
खूबसूरती तुम्हारी वो सफेद रोशनी है
ऐ चांद घमंड ना कर, दाग तुझमें भी कई है।
सुन, हम नफस बन मेरा, साथ दे मेरा।
इस हसीन रात के पहर कई है।
ये ठंडी हवा
मेरे बालों को उड़ाते हुए
मुझे तेरा पैगाम दे रही है।
के..… छु के जा रही है तेरी चांदनी मुझे।
वक़्त भी कुछ ठहरा सा लग रहा है
ऐ चांद तू कुछ मुझे मेरा अपना सा लग रहा है।-
आहट हुई जो थोड़ी सी लगा के तुम आए हो।
थकी हुई आंखें जागी सोई सी
इंतज़ार में रहती है
चमक उठती है तुझे देखकर
ना दिखों तुम तो बेचैन रहती है
कसक उठती है मन्न में
की पूछूं तुमसे
क्या तुम्हे भी मेरे ना होने से तकलीफ होती है?
आहट हुई जो थोड़ी सी लगा के तुम आए हो
अजीब रिश्ता हमारा बेगाना सा कभी अपना सा
लगता है
पनाह में तेरे ये जहां मुझे महफूज़ लगता है।
नाम ना दे इस रिश्ते को
इतना तो हम कर सकते है
आहट हुई जो थोड़ी सी इंतज़ार मेरा खत्म हुआ
पता भी ना चला, ना जाने तुम कब आए।
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तुम जो रूठे हो इतना
की आखिरी सलाम भी ना कर पाए।
आंखें बंद की, हल्का सा मुस्कुराए
तुम ही बताओ अब खामोश क्यों हो
हमारे इश्क़ की तकबील अब किसपे है?
तुम्हारी नाराजगी अब किस पे है?-
ज़रा सी खरोच पर जो आँशु गिराती थी
आज ज़ख्म अपने छुपा ले जाती है।
पता ना लगे माँ पापा को
इसलिए हँसकर हाल बताती है।
जो दूर है बहुत वही तो अपने है।
और वो पागल भीड़ में अपनों को तलाशती है
तकलीफ में होती है
और तड़पती रह जाती है
रात को तकिए के सिरहाने पर
कुछ आँशु हर दिन गिराती है।
फिर सो जाती है इस उम्मीद में की नए
सवेरे से सब नया होगा
ज़ख्म भरे न सही
वक़्त के पास मरहम होगा।
यूँ तोह अकेला रहना सीख लिया है
माँ पापा के बाद किसी से उम्मीद न करना सीख लिया है
फिर भी ये बेकार दिल उम्मीद कर बैठता है
परवाह कर बैठता है
परवाह मांग बैठता।.-
दिल-ए-नादान तुझे हम समझाए कैसे?
दूरियां इतनी बढ़ी है
के करीब जाए कैसे?
यूं तो वक़्त और हालात मुकर गए हमसे
आपबीती हम अपनी सुनाए कैसे?
नसीब भी कोई चीज हुआ करती है जनाब
अपने नसीब से हम जी चुराए कैसे?
होगा मुक्कदर में साथ तेरा
तो बिछड़कर हम मिलजाएंगे
पर जज्बातों को अपने हम दबाए कैसे
दिल-ए-नादान तुझे हम समझाए कैसे?-
खून कुछ देर के लिए खोलता तोह बहुत है
फिर आम खबरों की तरह
बलात्कार हो जाते है
ना कानून कुछ कर पता है
ना लोग कुछ कर पाते है।
मोमबत्तिया पकड़ सडको पर उतरते है
फिर अपने घरों को लौट जाते है।
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