देखेगी, सुनेगी, तरस खायेगी दुनिया
मगर ये न समझना की काम आयेगी दुनिया
ये सोचकर खुद मैंने डाला फूॅंक घर अपना
बरकत को मेरी देख कर जल जायेगी दुनिया
इक उम्र हुई मुझको भटकते हुए दर दर
अब और भला मुझको क्या भटकायेगी दुनिया
पहले तो छीन लेगी तेरे मूॅंह से निवाला
फिर लाभ भूखे रहने के समझायेगी दुनिया
इक रोज पलट के तू इसे जड़ दे तमाचा
वरना तेरा कफ़न भी बेच खायेगी दुनिया
कहते हैं बड़े बूढ़े आयेंगे ऐसे दिन भी
अपने बनाये शस्त्र से मर जायेगी दुनिया
दुनिया से भला क्या करें दुनिया की शिकायत
दुनिया को भला क्या सज़ा दे पायेगी दुनिया— % &-
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ताउम्र चलती है कभी पूरी नहीं होती,
ये मुहब्बत है यारों बूढ़ी नहीं होती!!!-
मेरी सारी तकलीफों को नज़र लगा दे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस ला दे " माँ "
सन्नाटों में शोर बहुत है, ख़ामोशी चिल्लाती है
सारे रस्ते मुझे डरते, मंजिल ऑंख दिखाती है
आकर ममतामयी आँचल में तू मुझे छुपादे माँ
बचपन वाला काला टीका वापस ला दे " माँ "
भागदौड़ और शोर शराबे से बचकर जब आता हूँ
घर आते ही खोजूँ " माँ ", पर तुझको कहीं न पता हूँ
टूटा, बिखरा, हारा हूँ मैं, आकर मुझे सुला दे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस ला दे " माँ "
प्यार, मोहब्बत, रिश्ते-नाते अब सब झूठे लगते हैं
बहार से मजबूत मगर अंदर से टूटे लगते हैं
आकर सच्चे रिश्तों का मतलब इन्हें बता दे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस ला दे " माँ "
अरसा बीता आँख मिचौली खेले, तेरे संग में " माँ "
भूल गया मैं बचपन अपना ढल के सब के रंग में " माँ "
जीवन के वो प्यारे दिन मुझको फिर से लौटा दे " माँ "
बचपन वाला काला टीका वापस ला दे " माँ "...-