दो आने की पतंग खरीद
और दो आने का ले माझा
चार दोस्त मिलकर करते थे
अपनी खुशियों को साझा
आज झुकाए फोन पर गर्दन
ये अपने में बतियाते हैं
बांट ना ले कोई इसको इनसे
सिक्योरिटी लॉक लगाते हैं
©अपर्णा विजय-
और सेहरा को सुलगाते हैं
हालातों की है फ़िक्र किसे
बस खबर में रहना च... read more
लिबास की तरह दोस्ताना बदलता है
हर दिन ये अपना ठिकाना बदलता है
इंसान है यह जनाब परिंदा तो नहीं
इसलिये हर रोज ये आशियाना बदलता है
©अपर्णा विजय-
तरीके खूब है मर के फना हो जाने के
हुनर भी सीखिए लेकिन हंसने और मुस्कुराने के
की आसान है लगाना मौत को अपने गले से यूं
मगर क्यों डर के भागा जाए इस जालिम जमाने से
यहां भरते नहीं है जख्म लोगों को दिखाने से
कि मसले हल नहीं होते, यूं आंखों को भिगाने से
ना सुलझा है ना सुलझेगा सवाल- ए -दाना पानी यूं
मगर उड़ते नहीं पंछी हूं अपने ही ठिकानों से
©अपर्णा विजय
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नज़र मैं रखता हैं वो पर दिखाता नहीं
फ़िक्र करता है वो पर जताता नहीं
दिखावे के इश्क़ मैं शोर बहुत है
ये दस्तूर ए जमाना उसे भाता नहीं
अपर्णा विजय-
रुख़सती पर, तुम्हारे पीछे जो कारवां होगा
बस वही तेरी जिंदगी का हाल-ए- बयां होगा
क्या कमाया और क्या खर्च किया तुमने
किस्सा वो उस रोज़ हर जबां होगा
©अपर्णा विजय
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हर लफ्ज़ आईना है शख्सियत का मेरी
सूरत का क्या, इक रोज बदल ही जाएगी
मेरे बाद भी मिल जाऊंगी, मेरे अल्फाजों में, मैं
रेत सी तो है जिंदगी एक रोज फिसल ही जाएगी
©अपर्णा विजय-
क्यों हम रिश्तों को सहेजना भूल जाते हैं
क्यों नहीं हम इनसे रोजाना इश्क़ फरमाते हैं
रफू और इस्त्री की तो इन्हें भी दरकार होती है
तबीयत तो इनकी भी नासाज और बीमार होती
©अपर्णा विजय-
बेशक शिकवा करो मुझसे
पर शिकायत मेरी किसी और को ना सुनाना
क्या करें भाता नहीं, मुझे ये दस्तूर -ए -जमाना
©अपर्णा विजय
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एक इश्क की किताब है
और लफ़्ज बेहिसाब हैं
हर हर्फ तेरा जिक्र है
और ज़र्फ़ सारी रात है
कुछ धूप है कुछ छांव है
,ये ख्वाहिशों का गांव है
हैं भंवर कुछ जज़्बात के
और उम्मीदों का दांव है
©अपर्णा विजय
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गुनाह नज़रों ने किया
और दिल गुनहगार हो गया
जितनी दफा देखा तुझे,
उतना तुझसे प्यार हो गया
अपर्णा विजय
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