बेहतर क्या, बेहतरीन भी हो!
चाहिए ही नहीं तेरे सिवा कोई।-
एक नया सा लक्ष्य,मेरी एक नयी शुरुआत है।
बहुत सा उत्साह और कई सा भय भी है।
कुछ सही सा कुछ ग़लत एक रास्ता बनाया है मैंने।
न्यूनतम रख आसरा,मेरा स्वयं पर ही विश्वास है।
लक्ष्य से वर्तमान तक कि एक डोर बाँध ली है मैंने।
अतीत के कुछ भाग लिए,मेरा एक नया आगाज़ है।
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मंज़िल से ज़्यादा सफ़र की मोहताज हूँ।
इसलिए मुझसे मिलना पर मुझे पूरा मत जानना।-
मेरी मंजिल की राहें बेहतरीन हो,
और मेरे किरदार पर कभी दाग़ न लगे।
फिलहाल तो बस इतना ही।-
उस स्वेच्छा से हुए घर कैदी को, कहांँ ही पता था।
कि दुनिया को समझना, कितना कठिन है।
स्वयं के जज्बातों की, परवाह किए बिना।
किसी पर भरोसा करना ,कितना असुरक्षित है।
और बांध लेना उम्मीद, उन लोगों से जो,
समझ कर दुनिया की हकीकत,वैसे ही हो गए हैं।
विडंबना यह है कि, उसका यह देखना स्वभाविक था।
कि उसकी स्वतः कल्पित दुनिया, एक भ्रम मात्र है।
उसे इन रेतभरी दीवारें तोड़,अपने मन को संभाल कर।
जमाने से मिली बेचैनियों को, अपने साथ ही रखना है।
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