शायद वो ना समझे मेरी खामोशी ,
ख़ामोशी जो कहानी कह रही है
बेचैन सांसों की रवानी कह रही है
एक रोज शायद पलट के देख लेंगे वो ,
मेरा ये सफर है तुम तक ,
ये देखो मेरी धड़कन एक कहानी कह रही है-
आजमाइए रिश्ते , मगर एक हद तक...
हर कोई इतना आसान थोड़ी है !
और ठहरें रहे लोग , चालाकियों की छाँव में तुम्हारी....
लोगो मे इतना भी स्वार्थ थोड़ी है !-
इन दिनो ना जाने कितनी हवाओ ने रुख बदला होगा
कितनो की ख्वाहिशों को तोड़ा होगा
खिले होंगे फूल कई नये बेशक मगर
ना जाने कितनों ने इस फरवरी में दम तोडा होगा-
की हालतो पे अपने हंसी आ जाए
और डर इतना की हंस दीये
तो भगवान फिर से नया सियाप्पा ना भेज दें ....!-
बढ़ती उम्र , बदलाव की छांव में
जिम्मेदारियों का एहसास या लोगो का बर्ताव
खुद का मन या चार लोगों की कहानियां
कितना बदल सकते है एक छोटे से मन को....
जो खिलखिला लेती थी बड़ी बड़ी बातों पर
आज वो छोटी छोटी चीज़ों में सहमी रहती है
पता नही खुद टूटी है या छूटा है कोई हिस्सा उससे
अपनो से रूठी है या परेशान है बड़े होने से खुद के
समझाया जा रहा है समाज या
जकड़ा है सामाजिक बेड़ियों ने उसको
वो खुद हुई है ऐसी या बनाया जा रहा है ऐसा उसको ?-
इश्क़ लिखूं या लिख दूँ तुझको
तू बता कैसे मैं इश्क़ का हाल लिखूं?
अपना हाल-ए-दिल बयां लिखूं
या ख्वाइशों में तेरा नाम लिखूं ?
और पूछे गर कोई रुह से रिश्ता मेरा
तो तू बता मैं खुद को किसके नाम लिखूं?-
जिसकी बातों में कभी सब्र ना था
देखो अब वो लहज़े में नाप-तौल बात करते हैं !
अक़्सर करवट लेती है जिंदगी कुछ इस तरह ही....
ऐसे ही लोग स्वाभिमान की बात नही किया करतें है ।-
छोड़ जाएंगे लोग तुम्हें किसी ना किसी खामी पे !
पर अपनी खूबियों से तुम खुद को नायाब बना लेना ।।
और फिर आएंगे लोग वापस अपने हिसाबों पे खर्चने तुम्हे !
मगर तुम खुद को बेहिसाब बना लेना ।।-
भटकी राहों में गुमराह सी अंजान मैं ।
ढूढती खुद को बेचैन ख्यालों सी शाम मैं ।।
ना जाने किस मंजिल की हूँ मिराज मैं !
सुलझाती ज़िन्दगी , जो उलझी अपने हिसाब में ।-
उँगलियों पर निकल रहे है दिन...
तारीख़ों को याद किया जा रहा हैं ।
यादों में उलझें हैं यूं !
किश्तों में खुद को बर्बाद किया जा रहा हैं।।-