APARNA CHAUBEY   ("अपर्णा चौबे ♡)
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Joined 30 December 2021


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Joined 30 December 2021
2 HOURS AGO

लिखती हूं आज भी तुम्हारे लिए डायरी :)

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YESTERDAY AT 0:50

यादों के समुद्र में यादों का होना कुछ खास

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YESTERDAY AT 0:24

आज बहुत सारी बातें करनी है तुमसे मुझे
कल की तरह आज भी साथ झोड़ कर
मत चले जाना अभी
रात हुई है मध्यम अभी ही शायद चांद का माहौल
आसमान में बना हुआ है

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3 AUG AT 21:46

मुझे मरे दोस्तों की याद आती है
जो भी था हमारे बीच वो आज आती है
बीते हुए कल के सभी दौर बेहिसाब थे
हम मिले थे जहां वो सभी हमे याद है
कितनी खूबसूरत था वो पल जब हम एक
साथ थे आज यदि का केवल टोकरी है
तुम नहीं साथ मगर तुम्हारे सारी यादों के
फुल है

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2 AUG AT 23:07

कविता भी तो एक स्त्री है
आज की कल की बीते हुए कल की
है
वो केवल बस
अपने सपनों को अधूरा रखने की
नारी है
सभी के भावनाओं की स्थिति की
धारा है विचित्र सी
उसका इस्तेमाल हर कोई करना
चाहता है
लेकिन उसका दोस्त बनाना किसी को भी अच्छा
नहीं लगता है
वो अकेली थी है और हमेशा ही शायद रहे भी
कल का भी कुछ नहीं मालूम उसे
और आज की उसे नहीं है कुछ खबर
विशेष

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2 AUG AT 19:51

मिले थे कल हम एक नई
मोड़ पर न खबर थी हमे
साथ आपके यू हम हो जाएंगे
नहीं थी गिला किसी भी
उम्र की स्थिति भी बनी थी आपके
स्पर्श की नहीं मुझे दिखा
किसी वार्तालाप का स्वर
कही पर नहीं मिली कोई स्वयं
की पहलू कही पर

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1 AUG AT 22:23

तुम राहों पर ऐसे मिले जिस तरह से ये सपने मिले हो तुमसे कही पे समय जो है ऐसे मुझसे रुठी आंखे तुम्हारी क्यों ऐसे ये देखे लगे देख तुमको मेरा दिल ये धड़के ना जाने क्यों छिपके यूं देखो तुम सबसे क्यों नजरे चुराने लगे मुझको बेहद खास लगे है कि ये पल तुम जो यूहीं मरे पास आने लगे

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29 JUL AT 6:26

हर ओर एक नया शोर मिला कही
कोई अपना तो कोई पराया मिला
नई स्तिथि का माहौल बन भी गया
कुछ महत्वकांक्षा शून्य हो गई
कही पर एक नया उद्देश्य मिला
एक बार पुनः जीने का उल्लास जगा
चेतन का नाम लिए वो फिर से अभीभूत हुआ
निश्चिंत निशांत से विगो मै एक चंचल सी
एहसास हुई क्या था मन में मेरे ये जान
रहा था अपने भीतर नीलाजन में
क्यों रहूं विकल मै उचितपथ पर कुछ
हो ऐसा जो मेरे जीवन में नहीं हो जो मुझमें
स्थिर कोई ऐसी बात विचित्र बनी हुई
रजनी के पास अक्सर रहती है

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28 JUL AT 13:13

आज का माहौल ऐसा बना है
चांद भी दिन में जागने लगा है
बदलो के पीछे छिप गया है समा सारा
ये देख कर हवाएं कुछ गुनगुनाने लगी है
ये मस्त से आलम भी कुछ भाने भी लगे है
बारिश भी आज कुछ अधिक हो रही है
की मालूम ही नहीं कि कुछ नज्म की
भावनाएं विचलित हो रही है जो
स्वयं से अधिक स्थिति पद्र होने लगी है
एक प्रकार से आलम भी अपनी स्थिति
को साथ में संचित किए जा रही है
मैने ना ही कही पर कुछ छोड़ा है
और ना ही किसी वार्तालाप का माहौल बिखेरा है

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27 JUL AT 13:32

Hhvvbb

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