जिस रोज़ इस कैद से आज़ादी मिलेगी
जाउँगी वहाँ, यह मन ले जाएगा जहाँ
इन गलियों से होते हुए
शहर के चप्पे-चप्पे को छूते हुए
मंदिर में मत्था टेकने
तालाब में पत्थर फेंकने
मुझे वो चाय पर चर्चा करनी है
इस थमे से वक्त में चाबी भरनी है
जिस रोज़ इस कैद से आज़ादी मिलेगी
जाउँगी वहाँ, यह मन ले जाएगा जहाँ
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My thoughts may it be quotes, lines or poem has nothing to do with my life 😉... read more
कितने अजीब किस्से होते हैं
जो हमारी जिंदगी के हिस्से होते हैं
मां-बाप जो करते हैं हमसे सच्चा प्यार
पर हमारी खुशी से ज्यादा उन्हें है प्यारा उनका व्यवहार
अरे चार लोग क्या कहेंगे ?
उनकी कड़वी बातें हम कैसे सहेंगे?
ना सोचेंगे हम और ना ही समझेंगे !
ना तुम्हारी सुनेंगे बस हम कहेंगे !
भूल जाओ वह दी हुई बचपन की सीख
बस जो अभी कह दिया वही है सिर्फ ठीक
अजनबी से बात ना करो, पर अजनबी से शादी कर लो !!
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Vo din tha diwali ka
Jab usse pehli baat hui
Kuch char mahine baad
Vo pehli mulaakat hui
Mile hum jab
Khamoshi thi tab
Na vo kuch bola
Na meine koi baat kahi
Nazaron he nazaron ki si bhasha koi
Dheere se vo mushuraya
Aur mein khilkhila gai
Aise toh jakr baat shuru hui
Kuch char mahine baad
Vo pehli mulakaat hui
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only a place where you feel comfortable, but it's a place which makes you carefree.
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कितनी खुश थी मैं अपनी धुन में मगन थी ।
ना किसी से गिला था ,
ना शिकवा और
ना ही शिकायत थी ।
पर जैसे अचानक नज़र लग गई हो किसी की
खुश हाल ज़िंदगी में मेरी
मच रही अजीब सी इक हलचल थी।
बोल मेरी क्या ख़ता थी ?
जो तूने मुझे यह सज़ा दी ?
क्या मैंने कभी तुझसे कुछ पूछा था ?
या तेरी निज़ी ज़िंदगी में दखल दी ?
क्या इज्ज़त उछाली थी मैंने तेरी भरे बाज़ार में ?
या दिखा दी थी दुनिया को जो तेरी असल शकल थी ?
तू बता दे क्या हक है तेरा मेरी जिंदगी पर ?
जो तूने ऐसे घिनौने खेल की पहल की
बोल मेरी क्या ख़ता थी ?
जो तूने मुझे यह सज़ा दी ?
खुश हाल ज़िंदगी में मेरी
क्यों तूने यूं बेवजह बिन पूछे दखल दी ?
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हुआ कुछ यूं
एक दिन नजरों से नजरें टकरा गईं
बिन बोले हो गईं जैसे बातें अनकही
नए से सिलसिले की शुरुआत हुई
जैसे रचदी हो नैनों की भाषा कोई
हुआ कुछ यूं
वह धीमें से मुस्कुराए और मैं शर्मा गई-
कुछ कुछ नटखट सा है वो
पर बहुत ही प्यारा है
कभी मुंह बनाता है
तो कभी चुटकुला सुनाता है
कभी गुदगुदाता है
तो कभी नाच कर दिखाता है
मासूमियत की दूसरी पराकाष्ठा है
मैं एक बार पूछूं जो
वह तुरंत ही सजग हो जाता है
चाहे जितनी परेशानी हो
पर वो हमेशा मुस्कुराता है
मेरी आंखों की नमी देख कर
खुद रुआंसा हो जाता है
सीधा साधा भोला भाला
वो सभी से न्यारा है
कुछ कुछ नटखट सा है वो
पर बहुत ही प्यारा है-
Vo din tha diwali ka
Jab usse pehli baat hui
Kehne ko toh anjan the hum
Pr aagaya tha paas koi
Silsile bante chale gaye baatoon k kuch iss tarah
Na pata chala kab din dhala, aur kab raat hui
Vo din tha diwali ka
Jab usse pehle baat hui-
कहने को इनका भी दीपावली का त्योहार है ,
आँगन में सजाई जा रहीं झिलमिलाती तार है,
मिष्ठानों और पकवानों का अंबार है,
इन सभी में छुपा माँ का प्यार है,
बूड़ी आँखों में बस बेटे के घर आने का इंतज़ार हैं ।
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