Aparna Awasthi   (AparnAwasthi)
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Joined 4 April 2018


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3 NOV 2021 AT 7:05

मेरी बिंदी मेरा विश्वास है,
की तुम हो मेरे साथ हरपल, हरदम,
अपना घरबार मुझे सौंप दिया इतना भरोसा जताने के लिए,
मेरी बिंदी मेरा विश्वास है,
की तुम हो मेरे साथ हरपल, हरदम,
पूरे दिन की थकान तुम्हारी मुस्कुराहट में भूल जाने के लिए,
मेरी बिंदी मेरा विश्वास है,
की तुम हो मेरे साथ हरपल, हरदम,
मुझे मायका याद ना दिलाने के लिए,
मेरी बिंदी केवल श्रृंगार नहीं....
-@aparnawasthi

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10 OCT 2021 AT 19:27

छोड़ दिया हमने तुम्हें अपनी नाराज़गी जताना,
और तुम ग़लतफ़हमी में हो की तुमसे शिकायतें नहीं है।

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1 AUG 2021 AT 0:31

चाहत नहीं है कर्ण से दोस्त की,
जो हमारी गलती में भी साथ दे,
चाहत तो कृष्ण से दोस्त की है,
जो कमज़ोर पलों में भी जितने का विश्वास दे।

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15 JUL 2021 AT 21:14

चेहरों की मुस्कान दिखावटी हो गई है,
दुनियां इस हद तक बनावटी हो गई है।
प्यार मुहब्बत की बातें भी बग़ावती हो गई है,
क्या नस्ले ही आज कल मिलावटी हो गई है??

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8 JUL 2021 AT 20:08

हे प्रभु मुझ अबोध को बस इतना आशिष मिल जाए,
नित आँख सुबह खोलू और दर्शन तेरा हो जाए।
हे प्रभु मुझ अबोध को बस इतना आशिष मिल जाए,
तेरा सुमिरन करना चाहू और ये इच्छा पूरी हो जाए।।

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8 JUL 2021 AT 17:15

जीवन में घनघोर अंधेरा जब छाता है,
कोई रास्ता नज़र ना आता है,
ख़ुदमे अर्जुन पहचान लेता हूँ,
हे माधव,
तुम्हें अपना गुरु मान लेता हूँ...
भावनाओं का समुंदर जब मन में तूफ़ान उठाता है,
तकलीफ़ जान ले ऐसा कोई समझ ना आता है,
ख़ुदमे अर्जुन पहचान लेता हूँ,
हे माधव,
तुम्हें अपना सखा मान लेता हूँ...
ख़ुदपर भरोसा जब ना कर पाऊँ,
अपनी दिशा ख़ुद ना चुन पाऊँ,
ख़ुदमें अर्जुन पहचान लेता हूँ,
हे माधव,
तुम्हें अपना सारथी मान लेता हूँ....
जीवन जब रणभूमि बन जाता है,
सहना और लड़ना दोनों मुश्किल हो जाता है,
मैं तुमसे गीता का ज्ञान लेता हूँ,
हे माधव,
मैं ख़ुदमे अर्जुन पहचान लेता हूँ....

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14 MAY 2021 AT 9:17

समझने समझाने वाली अँग्रेजी नहीं मैं,
मन के भावनाओं की हिंदी हूँ,
जीन्स स्कर्ट मॉडर्न जमाने में,
सर पर घूँघट और माथे पर बिंदी हूँ ।।

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6 MAY 2021 AT 5:32

टूट रहा है हौसला हर पल,
प्रति क्षण बिखर रहा है संसार,
इस विष का प्याला पीने,
प्रभु आ जाओ फिर एक बार।।

रोक दो मौत का तांडव अब ये,
सुन लो भक्तों की पुकार,
महामारी के हलाहल से बचाने,
प्रभु आ जाओ फिर एक बार।।

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20 APR 2021 AT 22:42

सबकी क़िस्मत लिखने वाले,
क्या क़िस्मत तुमने पाई थी,
काल कोठरी में जन्म लिया,
ना कोई बैद्य ना दाई थी।
जन्म लेते तुम बिछड़े माँ से,
ना बाबा संग रह पाए,
पार कर तूफानी यमुना,
नंद बाबा के घर आए।।
बाकी बच्चे खेल खेलते,
तुम्हें अपनों से लड़ना पड़ा,
सबकी रक्षा करने ख़ातिर,
बोझ गोवर्धन का सहना पड़ा।।
चारों ओर थी खुशहाली फिर भी,
तुमको हर पल नई लड़ाई थी,
पहला प्रेम जिससे किया,
वो राधा भी तो पराई थी।।
सबकी क़िस्मत लिखने वाले,
क्या क़िस्मत तुमने पाई थी।।

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17 APR 2021 AT 23:21


वो तुमसे बड़ा है, वो तुमसे छोटा है,
ये सुनकर चुप हो जाते है,
बड़े छोटों का मन रखते रखते ,
अक़्सर मँझले बहुत कुछ सह जाते है।।

बडों का कुछ बड़प्पन , छोटों की कुछ नादानियाँ,
ये समझकर चुप हो जाते है,
बड़े छोटों के बीच ये दरार भरते भरते,
अक़्सर मँझले ज़िम्मेदारी तले दब जाते है।।

बड़ो की सेवा और छोटों के प्रति फ़र्ज़ के नाम पर,
ये सबकुछ करते जाते है,
बड़े छोटों की उम्मीदें पूरी करते करते,
अक़्सर उपेक्षित रह जाते है।।

बड़ों का आदेश, छोटों की ज़िद कहकर,
ये हर एक चीज़ कर जाते है,
बड़े छोटों का मन रखते रखते,
अक़्सर अपना मन न रख पाते है।।

-AparnAwasthi





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