कभी ख़यालों में आऊँ
तो कलम से चूम
मुझे किताबों में
कविता बना सजा देना
ग़र दुनिया से डर लगे इक़रार ए मोहब्बत में
तो अंत में अपने नाम की जगह
ख्याली मुस्कुराहट लिख देना
और ये भी ना हो सके तो बनाम ही सही
मग़र इस मोहब्बत को किताबों में ज़रूर लिखना
क्योंकि किताबी मोहब्बत मुकम्मल हो ना हो
सदैव संजीदा संगीन सुंदर
रंगीन सदाबहार और हसीन रहती हैं।
-अपराजिता प्रियदर्शिनी-
फिर जब क़िताब उठाई ,
निगाहें क़िताबी समुंदर में डुबोई,
तब जा शोर शांत हुआ।
और जैसे ही काग़ज़ पे अल्फ़ाज़ दिखें,
मानो यूँ लगा आँधी को शांत करने वाला,
प्राणवायु उठा हो ज़हन में,
जो इस काग़ज़ी हमसफ़र से आपबीती सुना रहा हो,
जो इस क़िताबी रहगुज़र को दास्ताँ बता रहा हो,
यक़ीनन क़िताबों से याराना
अमूमन ही हो जाता है
किताबें हमेशा वैसे ही गले लगती हैं,
मानो ज़ैसे किसी रोते हुए शिशु को माँ ने
गले लगा कर सुला दिया हो।
-अपराजिता प्रियदर्शिनी
-
“तुम झूठी हो
तुम नौटंकी हो
ये आँसू दिखावा है”
और ये महाशय जिन्हें मैंने सिर्फ़ प्यार किया
बदले में इन्होंने मुझे क्या दिया
इनका घिसा पिटा judgement👏
...
तो सुन लो मेरी भी,
हाँ बातें मार जाती हैं मुझे
और वो अच्छी यादें तो और भी दर्द देती हैं...
मगर ढीठ हैं हम भी अव्वल दर्जे के
मोहब्बत के नाम पे बेज्जती क्या खूब सह जाते हैं।
और अब तो आँसु भी नहीं बहाते हैं
क्यूँकि नौटंकी हो ना हो सांत्वना के भिखारी नहीं है हम
और जिस दिन मोहब्बत दम तोड़ेगी
और मेरा आत्म सम्मान क़ैद से आज़ाद हो सवछंद हो उड़ेगी।
मत कहना कि एक और औरत पागल feminist बन चुकी
अंदर कोई रहम नहीं है उसके
वो तो बेखोफ परिंदा बन चुकी है
-
ज़िंदगी सोमवार की शाम सी लगती थी
थकी हारी
और आने वाले बाक़ी पाँच दिनो के
सोच से भरी
तुम इन थकान भरे सप्ताह में
सुकून से लगते हो
दिन चाहे कोई भी हो
तुम्हारे साथ तो हर वार
इतवार सा लगता है।
-
आज प्यार ने फिर दोस्ती को शर्मिंदा किया है
हंसी मज़ाक़, और साथ वाले रिश्ते में
इश्क़ का बेमतलब तड़का दिया है
जो कभी दोस्ती में खुल के ठहाके लगते थे
आज प्यार को दोस्ती के नाम से छुपाते है
-
सुनो अब से रात को अंधेरा
और
सुबह को सवेरा ना कहना
रात को सपनो का सुकून
और
दिन को उन्हीं सपनों को पूरा करने का ज़ुनून कहना।-
मैं साँची हूँ इस शहर की
ये प्रदेश मेरी जन्म माटी है
बचपन के कुछ दिन
सासाराम के छाँव में काटी है
मेरी भाषा आज भी थोड़ी ठेठ थोड़ी खाटी है
मेरी हिंदी आज भी थोड़ी भोजपुरिया
मेरी ज़ुबान थोड़ी बिहारी है
यूँ तो कई राज्य में घुमी बसी और बसायी कहानी हूँ मैं
दिल से भोली
ज़ुबान पे गाली
दिखती मॉडर्न
अच्छे के साथ अच्छी
बुरे के साथ बत्तर
One man army
एक अकेली सब पे भारी हूँ मैं😂
हाँ हक़ से बिहारी हूँ मैं।
-अपराजिता-
मैं साँची हूँ इस शहर की
ये प्रदेश मेरी जन्म माटी है
बचपन के कुछ दिन
सासाराम के छाँव में काटी है
मेरी भाषा आज भी थोड़ी ठेठ थोड़ी खाटी है
मेरी हिंदी आज भी थोड़ी भोजपुरिया
मेरी ज़ुबान थोड़ी बिहारी है
यूँ तो कई राज्य में घुमी बसी और बसायी कहानी हूँ मैं
दिल से भोली
ज़ुबान पे गाली
दिखती मॉडर्न
अच्छे के साथ अच्छी
बुरे के साथ बत्तर
One man army
एक अकेली सब पे भारी हूँ मैं😂
हाँ हक़ से बिहारी हूँ मैं।
-अपराजिता-
भिड़-भाड़ की दुनिया में, दिखावे का है शोर।
कहता ख़ुद को साधु जो है,
होता वो है चोर,
हर राह हर पगडंडी पर,
आता है वो मोड़
जो झंकझोर देता है अस्तित्व का डोर।
....
भटकते ही सही पर पहुँच जाता है,
दुनिया के उस छोर जहां सच्चाई का है ज़ोर।-
अगर मगर काश में हूँ,
बनावट पसंद दुनिया में,
सादगी से लिपटी स्वर हूँ,
कुछ ना कह कर भी
आलफा़ज में हूँ,
मानो जैसे हर आवाज में,
खुद की तलाश में हूँ।
-अपराजिता-