अकसर कवि यह बात करते है कि मा होती तो ऐसा होता,
कभी सोचा है मा नहीं होती तो कैसा होता।।
तेरा हाथ पकड़कर मै चलती थी,
तेरे हाथों से मै खाना खाया करती थी।
आज तू नहीं है,
तो चलते हुए डर सा लगता है,
भूख हो तो भी खाने का मन नहीं करता है।।
मुझे किसी की नजर ना लग जाए, तो कला टीका लगाया करती थी,
मेरी जरा सी चोट देख के, तेरी आंखें भर जाती थी।
आज तू नहीं है,
तो इस दुनिया की नजर से मुझे कौन बचाएगा मां?
मेरी चोट पे मलहम कौन लगाएगा मां?
तेरी गोद में सोकर मै अपने सारे दुख भूल जाती थी,
तेरे साथ होने से मुझे हिम्मत आती थी।
आज तू नहीं है,
अपने दुख मै किसके आंचल से ढकुं,
किससे हिम्मत लेके मै इस दुनिया से लड़ूं।।
तेरे होने से घर में रौनक होती थी,
त्योहारों की खुशियां तुझसे दुगनी हो जाती थी।
आज तू नहीं है,
तो घर आने का मन नहीं करता,
सबकी आंखें नम है, त्योहारों में किसी का मन नहीं लगता।।
लोग कहते है,
बेटा, पूरी दुनिया तेरे साथ है,
पर मेरी दुनिया तो तू है मां
तेरे जाने से सूना रह गया मेरा हाथ है।।
मां अब छोटी छोटी बातों पर मै किसको सताऊंगी,
मां अब किसको मै "मां" कहकर बुलाऊंगी।।
-