Apala   (आपला)
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Find me on ig @_soulful_creations._
Joined 8 August 2018


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8 NOV 2020 AT 23:30

शून्य हूँ मैं,
मगर दिल का दरिया बह से रहा है,
भावनाओं से भरे समुन्दर में,
लहरों संग तूफान बन सा रहा है,
शून्य हूँ मैं,
मगर दिल का दरिया बह सा रहा है!
***************************
रंग भरी जिंदगी का,
कुछ हिस्सा बेरंग सा हो रहा है,
खुशियों के पल तो हजारों हैं,
मगर उन पलों में कुछ छूट सा रहा है,
शून्य हूँ मैं,
मगर दिल का दरिया बह सा गया है!
***************************
जीवन के नए पड़ाव में,
पुरानी उम्मीदों की नई छाव में,
बहुत कुछ बन-बिगड़ सा रहा है,
शून्य हूँ मैं,
मगर दिल का दरिया बह सा रहा है।।

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4 AUG 2020 AT 17:07

With People getting busy in their own 'Realistic World',
There stays a relation which really has no efforts,
that relation stands only on one hand clap,
& the distance is never filled with 'efforts gap'.
They prove their innocence
by always calling themselves 'busy',
but don't you think?always giving the same reason
is quite 'frizzy'?
No doubt! we meet new people day by day,
but leaving all the old relations is not the only way,
Spare some time with the one
who really wants to spend time with you,
or else the day will come
when they will leave even without giving you any Clue!

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26 JUL 2020 AT 9:31

अधूरी है ज़िन्दगी,
मगर इसे अधूरा मत छोड़ दो,
माना शिकायतें कई है तुम्हारी,
मगर खुद को जीने का एक मौका भी तो दो,
दुख कई होंगे तुम्हें,
मगर तुम खुशियों का पिटारा तो ढूंढो,
गर मंजिल सूनी है तुम्हारी,
तो उस मंजिल का रस्ता तुम मोड़ दो,
खुल कर जिओ 'आज',
'कल' की फिक्र तुम छोड़ दो,
निकलो 'आज' तुम खुद की तलाश में,
अपने 'कल' को एक मुँह तोड़ जवाब दो,
अधूरी है ज़िन्दगी,
मगर तुम इसे अधूरा मत छोड़ दो।

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8 JUL 2020 AT 23:17

उसका खेल कोई समझ नहीं सकता,
उसकी लीला कोई रच नहीं सकता,
वो तो विधाता है जनाब,
उसके विधान को कोई बदल नहीं सकता।

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4 JUN 2020 AT 17:17

ऐ ज़िन्दगी! कुछ तो बता?
अपने रूठने की वजह तो बता?
जानती हूं, बेबस है तू,
मगर मेरी भी कुछ ख़ता तो बता?
ऐ ज़िंदगी! कुछ तो बता!
.....................................
ऐ ज़िन्दगी! बहुत अटपटी है तू,
सीधी मगर उलझी हुई पहेली है तू,
कभी नीम तो कभी जलेबी है तू,
न जाने कितने सुख-दुख की सहेली है तू,
ऐ ज़िंदगी! बहुत अटपटी है तू!
......................................
ऐ ज़िन्दगी! कुछ शिकायतें मेरी भी है,
ख्वाइशें मेरी अभी कुछ अधूरी ही हैं,
सपनें तो लाखों दिखाती है तू,
मगर उन सपनों को पूरा करना ज़रूरी भी है,
ऐ ज़िन्दगी! कुछ शिकायतें मेरी भी है!

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3 MAY 2020 AT 22:11

मन शांत न हो पाने के कारण,
पिछले कुछ दिनों से मैं कुछ लिख नहीं पा रही थी,
मगर यकीन माने तो उन बीते दिनों में
मन में ख़्यालों का बवंडर घूम रहा था...
दो चार पंक्तियाँ लिख कर बवंडर शांत तो कर लेती थी मगर
उनको रोक पाना बेहद मुश्किल था...
'क्या लिखूं?' 'कैसे लिखू?' कुछ समझ में ही नहीं आता था,
ऐसा लगता था जैसे मानों मैंने अपने लिखने का हुनर ही खो दिया हो..
लेकिन आज सुबह मन कुछ शांत सा लगा, तो सोचा कि लाओ कुछ लिख ही दूँ...
कई दिनों बाद जब मैंने डायरी और कलम उठाया तब मन से एक आवाज़ आई कि,
'हां! अब भी लिखने का हुनर ज़िंदा है मुझमें', 'मैं अब भी लिख सकती हूं'....
क़लम और कागज़ से रिश्ता जो छुटा था मेरा वो फिरसे जुड़
गया, और मैं फ़िरसे लिखने लगी।
आख़िरखार आज वो वक़्त आ ही गया था,
अपने अशांत मन को शांत करने का,
अपने भवनाओं के बवंडर को कागज़ में कुरेदने का,
हां! आज वक़्त आ गया था फ़िरसे कलम उठाने का....

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30 MAR 2020 AT 12:55

कुछ अकेलापन है,
कुछ कमी सी है,
होंठो पर मुस्कान है,
मगर आँखों में नमी सी है।
कहने को तो सब साथ है,
फिर भी न जाने क्यों कोई साथ नहीं है,
रिश्ते आज भी मजबूत है पहले जैसे,
मगर न जाने क्यों,
उन रिश्तों में पुरानी जैसी बात नहीं है।
दिन तो शांत है,
मगर रातों में खलबली सी है,
दिल में है बेचैनी रहती,
और कम्भख्त नींद भी अधमरी सी है।।



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28 MAR 2020 AT 11:25

बेवजह बाहर न निकला करो,
घर पर रहकर ही,
कोरोना को भगाने की तैयारी करो।
खाओ-पियो मस्त रहो,
दादी-नानी के किस्से कहो,
बच्चों के साथ वक़्त बिताओ,
खेल-कुदकर उनसे यारी करो।
हाथ-मुँह धो कर खाया करो,
सर्दी-झुकाम,बुखार पर
तुरंत डॉक्टर को दिखाया करो,
बहुत ज़रूरी हो तब ही बाहर निकलो,
वर्ना निकलने पर मास्क लगाया करो।
पढ़ो किताबें, बनाओ तस्वीरें,
मिलकर चमकाओ घर,
जैसे चमके चम-चम हीरे।
बिछड़े रिश्तों को याद करो,
फ़ोन मिलाकर बात करो,
छुपे हुनर को बाहर निकालो,
पुराने किस्से/यादें ताज़ा करो।
परिवार से भी गप-शप करो,
पड़ोसियों को भी शामिल करो,
बात-चीत तो ठीक मगर,
उनसे भी 1 मीटर की दूरी बनाया करो।
बेवजह बाहर न निकला करो,
घर पर रहकर ही,
कोरोना को भगाने की तैयारी करो।।

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12 MAR 2020 AT 11:15

दिल चाहता है,
माँ की गोद में सिर रख
जी भर के रोने का,
मगर जब माँ पूछेंगी 'हुआ क्या?'
तब सोचती हूँ, बताऊँगी क्या?
'कुछ नहीं' या 'बहुत कुछ'?

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6 MAR 2020 AT 11:04

ख़्वाब महंगे नहीं हमारे,
बस ज़रा ये वक़्त महंगा है,
हासिल करनी है हमें भी ज़न्नत,
मगर मुझ बदनसीब की क़िस्मत
का घाव गहरा है।।
.
.
क़िस्मत भी खुशकिस्मत थी हमारी,
मगर वो भी अपनी बाज़ी खेल गई,
मुकम्मल-ए-ख़्वाब ज़रूर होते हमारे,
मगर वो कम्बख्त उन पर पानी फेर गई।।

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