माँ ने कहा था मैं उसके अंदर पल रही उसकी नन्हीं कली हूँ....
शायद उस वक्त पतझड़ का मौसम होगा,
इसलिए मुझे उससे अलग होना पड़ा ..-
a nyctophile
Nature loving
an artist
dreamer
wish me on 5th sep
I dont pr... read more
ऐसी बौराई प्रेम मा
सुदबूद सब गवाई है
लिख रही नाम राम का
मन मा जाप पिया कर आई है
रोम रोम जब पिया बसै है
राम-कृष्ण सब पिया दिखै है..-
रोज़ समझौते के जे़हराब पिए जा रहे है
कैसे जीना था हमें, कैसे जीए जा रहे है
दिल भी जैसे हो किसी मुफलीस का लिबास
जितना फटता है उतना सिए जा रहे है-
जो दिल में है वो कहना गुनाह है
जो खामोश है आदमी तभी तक भला है
ये झूठ कहते है लोग किसी से दु:ख कहदो
सच तो ये है दर्द कहने से ज्यादा फूला फला है
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बहुत चाहा मगर जज़बात की आँधी नहीं रुकती
हमारे दिल पर जो चलती है वो आरी नहीं रुकती
मेरी आँखों से जो छलकती है एहसास की बूंदे
तेरी आँखों में भी वो पानी छुपाए नही छुपती...-
हर्फों की पनाह जो न मिलती
भावनाएँ मेरी तड़पती रूह सी हो जाती
जो भटकती रहती अनंनत काल तक
भीतर बसे ब्रह्मांड में....-
जो है,वो है नही
अस्तित्व है,अस्तित्वहीन भी
अंबर सी विस्तृत है, कभी
सूक्ष्म है जीव कणों सी
मन के गर्भ में जो जनमी
चंचलता भी तो है मन सी
कभी गलियों में टहलती
ठहरी कहीं धूप में छाव सी
कभी शहर के भीड़ में
लगती शांत गाँव सी
मेरे यथार्थ की चाह है वो
मगर विलोम भी है यथार्थ की
जो सच झूठ से परे है
हाँ वो है वही....कल्पना
कल्पनाओं का कोई देह नही-
सुबह जिस बात से किनारा था
रात फिर वहीं आकर अटक गई
बिल्कुल किताब के उस पन्ने की
तरह जो अनायस ही खूल जाती है
जिसे बार-बार पढ़ा गया हो
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तू क्यों चुप है
तेरे हाथ क्यों खामोश बैठे है
अक्सर बेतक्कलुफ़ हो कर पन्ने पर
नाचती तेरी कलम क्यों बूत बनी है
तू लिख
तू गढ़ कहानियाँ नई
झकझोर तू अपने मन को
थाम ले शब्दो के आँचल
दे इन्हें खूले हवा में उड़ने का सबब
पहना इन्हें एहसासों का पेज़ाब
झूम लेने दे आज स्याही की बारिश में
फैल जाने दे इनकी झनकार
तू बस लिख........
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तुम्हारे माथे की झुरिया,
आँखों के नीचे के काले घेरे,
चेहरे पर वक्त की हल्की सी परछाई,
थोड़ा ढलता-थका बदन तुम्हारा,
ये सब साक्ष्य है की
संघर्षों ने बखुबी तुम्हारा श्रृंगार किया है...
अौर तुम कहते हो तुम खूबसूरत नही,
बेहद खूबसूरत हो तूम!
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