Apala Sharma   (अpala)
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Joined 6 August 2017


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17 SEP 2021 AT 12:21

ऐसी बौराई प्रेम मा
सुदबूद सब गवाई है
लिख रही नाम राम का
मन मा जाप पिया कर आई है
रोम रोम जब पिया बसै है
राम-कृष्ण सब पिया दिखै है..

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15 SEP 2021 AT 22:13

रोज़ समझौते के जे़हराब पिए जा रहे है
कैसे जीना था हमें, कैसे जीए जा रहे है
दिल भी जैसे हो किसी मुफलीस का लिबास
जितना फटता है उतना सिए जा रहे है

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8 AUG 2021 AT 23:30


जो दिल में है वो कहना गुनाह है
जो खामोश है आदमी तभी तक भला है
ये झूठ कहते है लोग किसी से दु:ख कहदो
सच तो ये है दर्द कहने से ज्यादा फूला फला है


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13 JAN 2021 AT 1:17

बहुत चाहा मगर जज़बात की आँधी नहीं रुकती
हमारे दिल पर जो चलती है वो आरी नहीं रुकती
मेरी आँखों से जो छलकती है एहसास की बूंदे
तेरी आँखों में भी वो पानी छुपाए नही छुपती...

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3 OCT 2020 AT 22:19

हर्फों की पनाह जो न मिलती
भावनाएँ मेरी तड़पती रूह सी हो जाती
जो भटकती रहती अनंनत काल तक
भीतर बसे ब्रह्मांड में....

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6 NOV 2019 AT 19:01

जो है,वो है नही
अस्तित्व है,अस्तित्वहीन भी
अंबर सी विस्तृत है, कभी
सूक्ष्म है जीव कणों सी
मन के गर्भ में जो जनमी
चंचलत‍ा भी तो है मन सी
कभी गलियों में टहलती
ठहरी कहीं धूप में छाव सी
कभी शहर के भीड़ में
लगती शांत गाँव सी
मेरे यथार्थ की चाह है वो
मगर विलोम भी है यथार्थ की
जो सच झूठ से परे है
हाँ वो है वही....कल्पना
कल्पनाओं का कोई देह नही

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5 NOV 2019 AT 0:44

सुबह जिस बात से किनारा था
रात फिर वहीं आकर अटक गई
बिल्कुल किताब के उस पन्ने की
तरह जो अनायस ही खूल जाती है
जिसे बार-बार पढ़ा गया हो

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3 NOV 2019 AT 23:45

तू क्यों चुप है
तेरे हाथ क्यों खामोश बैठे है
अक्सर बेतक्कलुफ़ हो कर पन्ने पर
नाचती तेरी कलम क्यों बूत बनी है

तू लिख
तू गढ़ कहानियाँ नई

झकझोर तू अपने मन को
थाम ले शब्दो के आँचल
दे इन्हें खूले हवा में उड़ने का सबब
पहना इन्हें एहसासों का पेज़ाब
झूम लेने दे आज स्याही की बारिश में
फैल जाने दे इनकी झनकार

तू बस लिख........

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10 SEP 2019 AT 15:51

तुम्हारे माथे की झुरिया,
आँखों के नीचे के काले घेरे,
चेहरे पर वक्त की हल्की सी परछाई,
थोड़ा ढलता-थका बदन तुम्हारा,
ये सब साक्ष्य है की
संघर्षों ने बखुबी तुम्हारा श्रृंगार किया है...

अौर तुम कहते हो तुम खूबसूरत नही,
 बेहद खूबसूरत हो तूम!

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17 AUG 2019 AT 16:30

यादें,
किसी डायरी में पड़ी पुरानी फूल की भांति होती हैं
जिसकी रंगत समय के साथ फिकी तो पड़ जाती है
मगर खुशबू आखरी पन्नों तक रिसती है

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