अरसा सा इक बीत गया, कुछ रिश्तों की बुनाई में लम्हा सा इक बीत गया, कुछ रिश्तों की तुरपाई में हालत अपनी क्या बतलाते अपने ही अशारों में बिछड़ के वो भी खुश नही थी, आया था सुनाई में
बहुत मगरुर थे कुछ लोग, मेरे सबर पर बांध बनाकर बतादो कोई जाकर उन्हें, टूटता है जब बांध बह जाते है सारे बनानेवाले उजड़ जाती हैं सारी बस्तियां, बिखर जाते हैं बनानेवाले बंधन में होना है, बाध्य नहीं होना है साधन तो होना है, साध्य नहीं होना है
जिंदगी की सारी ख्वाहिशों के इतर तुम्हारे शहर की ओर जाने वाली ट्रेन में तुम्हारे होने का एहसास मुझे पूरे सफर के दौरान अपने फोन में आँखें गड़ाए रहने से रोक लेता है।
ना जाने ये कौनसे वास्ते है जो मुझे मेरे गांव वाले रास्ते से भी ज्यादा घनिष्ठ लगते है ।