Anvīkṣaḥ ✨   (Vivaan)
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Joined 29 April 2023


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Joined 29 April 2023
7 HOURS AGO

घड़ी के घुलते पात्र, समय के तपते मोती,
साक्षी हैं उस भ्रम के... जिसे 'मैं' कहते हैं लोग।
व्योम में घिरे मेघों के नीचे, अस्तित्व मौन खड़ा,
"अहं" की यह मरीचिका ...अन्ततः मिट्टी में सधा।

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8 HOURS AGO

काँच-विच्छिन्न शरीर, द्विधा में बिंधित चेतना,
हर टुकड़ा पूछे—"मैं कौन हूँ?" इस माया-मंच पर।
अंगुलियों में बंधा मूक यंत्र, नयन स्तब्ध उजाले में,
प्रत्येक 'लाइक' एक चूषण है, आत्मा की क्षीणता पर।

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13 HOURS AGO

काँच-जैसी आशाएँ, धुएँ में घुलतीं आकांक्षाएँ,
स्वप्न-तंतु टूटते हैं पूंजी के तंत्र-जाल में।
सुनहरी माया लटकी है मांसल भूख के आगे,
यह संसार नहीं, श्रमरत नरक है विवेक-विनाश में।

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22 HOURS AGO

The eye does not blink...
it devours silence, pixel by pixel.
We move like static ghosts,
mapped in coded prisons.

Rain blurs identity,
but the watcher sees the soul.
Neon veins pulse truth...
yet truth has no pulse.

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22 HOURS AGO

स्तब्ध अधर, सिले हुए स्वप्नों की समाधि में बैठी,
सभा है मौन, न्याय की मूर्ति स्वयं निर्वासित सी लगती।
छायाएँ नाचती हैं, अंधकार की गोद में,
विवेक की शवयात्रा तर्क ...अब प्रश्न नहीं करता।

वह नारी नहीं....वह प्रतीक है, विलाप की जड़ मूर्ति,
जिसकी परछाई चीखती है, आत्मा की ध्वनि में।
सत्ताएं मुखर हैं, पर चेहरों से हीन,
न्याय की सभा, अब केवल प्रेतों का रंगमंच है।

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22 HOURS AGO

I place my hand.... not in yearning,
but to prove I haven’t disappeared.
This reflection isn’t mine....
it’s a ghost mid-autopsy.
Time forgot to kill me properly,
so I rot in rhythm....
a living corpse rehearsing grief
like it's a language I was born to bleed.

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11 JUL AT 15:06

इश्क़ में सबसे प्यारा लम्हा वो होता है,
जब ख़ामोशियाँ भी महबूब की तरह बोलती हैं।
ना कोई सवाल होता है, ना कोई जवाब.....
बस धड़कनों की ज़ुबाँ में दिल की नज़्में डोलती हैं।
हर निगाह में इक हिज्र का साया सा होता है,
पर फिर भी उस जुदाई में एक वस्ल का वादा होता है।
यह मोहब्बत… कोई तिजारत नहीं,
ये तो रुह की सजदा-गाह है...जहाँ हर दर्द भी इबादत होता है।

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11 JUL AT 1:19

चाँद के मुख से जो रात गिरी,
वो चुपके से मेरी पलकों पर आ बैठी।
कोई कहकशाँ नहीं थी उस चाँदनी में,
बस तेरी याद थी धीरे-धीरे बरसती।
कहाँ से लाऊँ वो शब्द अब मैं,
जो तेरे मौन को भी पढ़ सकें…
इस नीरव आकाश में,
तेरे स्पर्श-से अर्थ रच सकें।

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