मैं किससे नाराज़ होकर आज,
खुदसे ही खफ़ा हो बैठी।
असलियत सबकी जानकर भी,
भरोसा उनसे मैं लगा बैठी।
जाने किस आबादी की चाह में...
इस बर्बादी को गले लगा बैठी।।
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पतित पावन सीताराम।।🏵️🙏
STuDENT Of LiTERATuRE 📚
BeLIEVE In kARMA... read more
एक तुम ही तो हो...
जिससे मिलकर या तो परिपूर्ण हो जाती हूं ,
या जिसमे खोकर ‘मैं’ शून्य हो जाती हूं।।
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क्या यूंही यादों में ज़िंदगी गुज़र जाएगी?
क्या तुम्हारी आंखों में और प्यार नज़र ना आएगी?
क्या और कभी नज़र से नज़र ना मिलेंगे?
क्या मेरे सारे एहसास दिल में ही दफ़न हो जायेगी?
क्या अब कभी तुमसे मेरी बात न होगी?
क्या अब कभी हमारी मुलाक़ात न होगी?
क्या दिल की दास्तां दिल में ही खत्म हो जाएगा?
क्या ये रूह की मुहब्बत अधूरी ही रह जायेगी?
इन सवालों से दूर होकर...
फिर जब मैं खुद को यादों से परे ले जाती हूं,
इस प्रेम को पूर्ण मान कर होठों से मुस्काती हूं,
तब तुम वापस आकर मुझे पुनः छोड़ जाते हो..
और पुनः आंसुओं में मैं अपने एहसास बहाती हूं।।
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।। राम ।।
कौशल्या की ‘तपस्या’, शबरी की ‘प्रतीक्षा’ हैं राम।
हनुमत की ‘भक्ति’ और अहिल्या की ‘मुक्ति’ हैं राम।।
सीता ‘प्राणबल्लभ’, रावण का ‘मोक्ष’ हैं राम।
‘नारायण अवतार’ और भक्त वत्सल हैं राम ।।
त्याग और समर्पण की, प्रतिमूर्ति हैं राम।
पुरुषों में सर्वोत्तम, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं राम।।
‘त्रेता के राजा’, ‘कलि में भगवान’।
‘तर्क और राजनीति’ से, कहीं परे हैं राम।।
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आजकल कहानी कुछ यूं चल रही...
वो भीड़ में गुम है।
मैं एकांत में चुप हूं।।
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ऐ ज़िंदगी, चल नई शुरुआत करते है..
साल बदल गया; ज़रा हम भी बदल जाते है।
दिल से नहीं, अब जज़्बातों से बदलना है..
तुझे और करीब से मुझे जानना है।
तेरी बेरुखी देख ली, तेरा गुस्सा देख लिया..
तेरी तबाही का हर राज़ जान लिया।
अब तुझमें मैं ज़रा बदलाव चाहती हूं..
तू बहुत प्यारी है मुझे, मैं तेरी आबादी चाहती हूं।
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हर बार की तरह तक़दीर रूठ गई,
मान लिया था मैंने, की मैं हार गई।
वो हालात, वो मंज़र क्या बताऊं कैसा था।
बस सांस चल रही थी, जिस्म में जान नहीं था।।
दिमाग बंद था और नसें फटी जा रही थी।
दिल दहक रहा था, आंखों से लहू बह रही थी।।
गिड़गिड़ा रही थी, हर दर पर सर झुका रही थी।
सीने में ऐसी उथल पुथल पहली बार हो रही थी।।
मगर राम का नाम लेकर कस्ती पार हो गई।
मुझे डुबाने की हर कोशिश नाकाम हो गई।।
सालों से जल रही बस्ती में आज सावन आया है।
इतना जलने के बाद मैंने आज खुद को पाया है।।
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किसी के लिए जिंदगी,
तो किसी के लिए मौत है इश्क़।
मिल जाए तो दुनिया जहान,
ना मिले तो बस एक फ़साना है इश्क़।।
किसी के दिल की शुकुन ए-बारात,
तो किसी के मन में उठी तुफान है इश्क़।
मिल जाए तो रहम - ए - वफ़ा,
वरना तो रूह की जुदाई है इश्क़।।
किसी की पूरी हुई दुआ,
तो किसी की अधूरी ख्वाहिश है इश्क़।
मिल जाए तो करम - ए - खुदा,
वरना ज़िंदगी भर की सज़ा है इश्क़।।
किसी के दिल में उम्मीद की किरण,
तो किसी की टूटी उम्मीद है इश्क़।
मिल जाए तो सपनों के शहर
वरना यादों से भरी कश्ती है इश्क़।।
दर्द की सारी हदों को पार कर जाए,
ऐसा बेदर्दी होता है इश्क़।
मिल जाए तो जन्नत...
वरना किसी की अधूरी मन्नत है इश्क़।।-
तुम्हें लगता है तुम आदत हो मेरी?
जो इस जुदाई से छूट जायेगा।
मगर तुम तो मोहब्बत हो मेरी,
जो मेरे मरने तक मेरे मन में रहेगा।।
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‘सोना’ समझकर मुझको..
यूं आग में न डाला करो!
ऐ खुदा! लकड़ी हूं मैं।
आग में ‘राख’ बन जाती हूं।।
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