इंसान
बंज़र भी कर रहा जमीन को
साथ ही दरख़्त की छांव ढूंढ रहा ,
बेचैनियां समेटे हुए ,
काम की तलाश भी है और दो पल का आराम ढूंढ रहा,
औरों के दो तर्फे प्यार पे इल्जाम लगा के ,
अपने एक तर्फे प्यार का खूबसूरत अंजाम ढूंढ रहा,
लरज़ते मां-बाप को सहारा नहीं देता ,
नन्हे बच्चे में अपनी जान ढूंढ रहा,
मशरूफ है खुद भी शहर की गलियों मे,
और दूसरों से अलग अपना मकाम ढूंढ रहा ,
कितना मासूम है इंसान ,
छोटी सी हार के लिए खुद को जलील कर ,
ज़माने में अपना स्वाभिमान ढूंढ रहा
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