ANURAG YADAV   (अंशु)
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ये जुर्म है कि जुर्म को कहता हूं साफ जुर्म।
क्या जुर्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए।
Joined 8 May 2019


ये जुर्म है कि जुर्म को कहता हूं साफ जुर्म।
क्या जुर्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए।
Joined 8 May 2019
14 JUN AT 8:07

महिलाएं आजाद हुई तो पता चला
दुश्मनों को भी वो घुटनों पर ला सकती है
चंद घटनाओं से जाने क्यों डरे है लोग
ये वो कुटिया को भी महल बना सकती है

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14 JUN AT 7:45

तेरे शहर में भी आ के मन उदास है
सुना है वो आज कल किसी और की खाश है

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10 JUN AT 7:11

जिसे परहेज था रंगों से मेरे
आज किसी और के रंग में ढल रही है
चलना था जिसे एक उम्र साथ मेरे
किसी और के कांधे पर ढल रही है
वो चाहती थी इश्क में थोड़ी जल्दबाजी
और मेरी किस्मत धीरे धीरे बदल रही है

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10 JUN AT 6:43

पुरुष याद नहीं रखते
प्रेम में गलतियां
स्त्री बांध लेती है
आंचल से वो हर लम्हा
छूटा हुआ वक्त , बिखरा हुआ शख्स
टूटा हुआ गुलाब, गलतियों में आप

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9 JUN AT 20:53

तजुर्बा ए जिंदगी जाना हुआ जब तीस का
इश्क और हवस में फर्क होता उन्नीस बीस का

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7 JUN AT 7:26

इश्क में नाकाम होना कोई बात नहीं है
जो तुम से हो रहा वो शुरुवात नई है
तुम सोच लो एक बार फिर से मेरे दोस्त
मेरे लिए ये इश्क नई बात नहीं है

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6 JUN AT 21:29

दें तुम्हे हम ईद की कैसे बधाई
चांद मेरा खोया आस्मां में

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6 JUN AT 7:03

मेरे ही हिस्से में क्यों लिखी जुदाई ये जानी मैं ने
गर तू मिला होता मै खुदा को भूल जाता

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5 JUN AT 14:30

जंगलों को उजाड़ कर हम, गमलों में पौधे लगाते है
कुछ इस तरह से हम, पर्यावरण बचाते है

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4 JUN AT 20:06

उस गुलाब से अब कोई वास्ता रहा नहीं मेरा
क्यों उसी याद से महके है हाथ मेरे

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