सोचो कितनी बंदिशों में थी स्त्री
कि उसने नौकरी को अपनी आजादी समझी-
क्या जुर्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए।
सरकारी नौकरी पाने में असमर्थ पुरुष की मोहब्बत का विरोध पहले घरवाले, फिर लड़की के घरवाले अन्ततः लड़की करती है।
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दूर रह कर भी मोहब्बत निभाई जा सकती है
हसरतें दिल की छुपाई जा सकती है।
माना कि वो किसी और आस्मां का चांद है
दूर से देख कर उसको ईद तो मनाई जा सकती है-
अब हमको भी पता नहीं अपनी हो बाते का,
आंखों में काजल, गालों पर रूश, पटियाला शूट, पैरों में अमृतसरी जुती डाली थी, वो लड़की बड़ी निराली थी-
उसके शहर में रहते है घर किराए का है
यूं ऐसा की है कि हम उसे चाहते है और वो पराएं का है-
मन बहुत अकेला है थोड़ी भीड़ चाहिए
जो बंधनों को तोड़ सके ऐसी शमशीर चाहिए-
चंद दिनों का इश्क था मेरा तब से बीमारी है
तुझ को सब में खोज लिया खुद की खोज जारी है-
जला के अभी आए थे कुछ ख्वाब अपने
जाने क्यों लोगो को दिखा सिर्फ सिगरेटों का धुंआ-
खुशमिजाज,चंचल, और जरा जरा सी बात पर खुश रहने वाले पुरुषों के भाग्य में
अक्सर जरा जरा सी बात पर नाराज़ होनी वाली स्त्री आती है-