ANURAG YADAV   (अंशु)
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ये जुर्म है कि जुर्म को कहता हूं साफ जुर्म।
क्या जुर्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए।
Joined 8 May 2019


ये जुर्म है कि जुर्म को कहता हूं साफ जुर्म।
क्या जुर्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए।
Joined 8 May 2019
11 HOURS AGO

सोचो कितनी बंदिशों में थी स्त्री
कि उसने नौकरी को अपनी आजादी समझी

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21 AUG AT 20:58

सरकारी नौकरी पाने में असमर्थ पुरुष की मोहब्बत का विरोध पहले घरवाले, फिर लड़की के घरवाले अन्ततः लड़की करती है।

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19 AUG AT 12:32

दूर रह कर भी मोहब्बत निभाई जा सकती है
हसरतें दिल की छुपाई जा सकती है।
माना कि वो किसी और आस्मां का चांद है
दूर से देख कर उसको ईद तो मनाई जा सकती है

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28 JUL AT 19:35

अब हमको भी पता नहीं अपनी हो बाते का,
आंखों में काजल, गालों पर रूश, पटियाला शूट, पैरों में अमृतसरी जुती डाली थी, वो लड़की बड़ी निराली थी

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21 JUL AT 19:28

उसके शहर में रहते है घर किराए का है
यूं ऐसा की है कि हम उसे चाहते है और वो पराएं का है

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14 JUL AT 14:52

मन बहुत अकेला है थोड़ी भीड़ चाहिए
जो बंधनों को तोड़ सके ऐसी शमशीर चाहिए

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7 JUL AT 20:02

चंद दिनों का इश्क था मेरा तब से बीमारी है
तुझ को सब में खोज लिया खुद की खोज जारी है

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5 JUL AT 20:01

जला के अभी आए थे कुछ ख्वाब अपने
जाने क्यों लोगो को दिखा सिर्फ सिगरेटों का धुंआ

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4 JUL AT 19:01

जाने क्यों उसको मेरी मोहब्बत जिस्मानी लगी
जिसको रूह तक चाहा था मैं ने

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3 JUL AT 20:28

खुशमिजाज,चंचल, और जरा जरा सी बात पर खुश रहने वाले पुरुषों के भाग्य में
अक्सर जरा जरा सी बात पर नाराज़ होनी वाली स्त्री आती है

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