तेज मुख का तब बढ़े
जंग जिन्दगी भर लड़े
सूर वीर ना सही
आखरी तक हैं खड़े
सर हुआ तन से जुदा
हाथ फिर भी ना रुकें
मौत से डरता नही
जान देनी जब पड़े
जंग जिन्दगी भर लड़े
तेज मुख का तब बढ़े-
जो पढ़कर महसूस कर ले ऐसा शख्स नहीं देखा मैंने..।... read more
वो जो लोगो को उम्मीद ना थी तुम से
परवाह नही नतीजा क्या था। फिक्र तो ये थी की तुमने कैसे किया ।-
इंसानो ने वो क्षमता अपने शरीर से खत्म कर दी प्रकृति को समझने की जिसको पशु पक्षी और पेड़ पौधे आसानी से समझ लेते है ।
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तुम चाहती हो हमारा रिश्ता झूठ के बुनियाद पर खड़ा हो जाएं..
तुम्हारे कहने का मतलब है कि पेड़ कि जड़ कट दो और पेड़ बड़ा हो जाएं ।-
वॉह क्या सोच है इस जमाने की
मंदिर में दान कर के इच्छा रखते है कुछ पाने की
दिल में नफरत जुबां पर प्यार रखते
लोग अपने अन्दर कई अवतार रखते है
मै जानता था मुझे इस बात की परवाह नही थी
तुम्हे मेरी वजह से तकलीफ हो ये बात मुझे बरदास नही थी।-
तुम बस यहीं तो सही थे
तो अकड़ गये
हम तो तब भी वही थे
जब तुम सही में गलत थे ।
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कही से सही नही था मैं
जो था वही तो नही था मै
उसको गलत कहने के लिये
अल्फाज़ कम पड़ गये थे
किसी और की जिंदगी में
गलत हो कर
उसकी जिन्दगी में
कैसे सही था मै।-