वो पुराने शहर में सड़क पार करते हुए,,, तुमने मेरी जिस शर्ट को अपनी उँगलियों से पकड़ा था!!! वो तुम्हारी याद में उधड़ रही है,,, आ जाओ न सुईं धागा लेकर...!!!
इतनी रेलें चलती हैं भारत में कभी कहीं से भी आ सकती हो मेरे पास कुछ दिन रहना इस घर में जो उतना ही तुम्हारा भी है तुम्हें देखने की प्यास है गहरी तुम्हें सुनने की कुछ दिन रहना जैसे तुम गई नहीं कहीं मेरे पास समय कम होता जा रहा है मेरी प्यारी दोस्त घनी आबादी का देश मेरा कितनी औरतें लौटती हैं शाम होते ही अपने-अपने घर कई बार सचमुच लगता है तुम उनमें ही कहीं आ रही हो वही दुबली देह बारीक़ चारख़ाने की सूती साड़ी कंधे से झूलता झालर वाला झोला और पैरों में चप्पलें मैं कहता जूते पहनो खिलाड़ियों वाले भाग-दौड़ में भरोसे के लायक़ तुम्हें भी अपने काम में ज़्यादा मन लगेगा मुझसे फिर एक बार मिलकर लौटने पर दु:ख-सुख तो आते-जाते रहेंगे सब कुछ पार्थिव है यहाँ लेकिन मुलाक़ातें नहीं हैं पार्थिव इनकी ताज़गी रहेगी यहाँ हवा में! इनसे बनती हैं नई जगहें एक बार और मिलने के बाद भी एक बार और मिलने की इच्छा पृथ्वी पर कभी ख़त्म नहीं होगी
हे दाता हमको शक्ति दो दुःखों को झेल पाने की हे दाता हमकों बल दो लोगों से नहीं रोगों से लड़ने के लिए दो हमको शक्ति इस सुगंधित दुनिया को सूँघने की दो हमको उड़ानें ये सारी दुनिया घूमने की हे दाता अहंकार मत देना देना ही है तो संस्कार देना हे दाता घर के चादरों जितने सपने दिखाना पराए लोगों में से कुछ अपने मिलाना अति का उत्साह न देना वैभव भी अथाह न देना देना जरा सी आशा और देना प्रेम की भाषा बस दाता इतनी सी है सूची पूरी कर दे इन्हें चला अपनी कूची।