पता नही कितने दिनों बाद , ये भाव आया है।
कई सालों के बाद मैने खुद को , आज अकेला पाया है ।।
रात है , चांद है , चांदनी है , है सितारे हजारों ,
पर फिर भी दिल की गहराई का अंधेरा काम नहीं होता यारो ।
टूटे शीशे के हर एक हिस्से पर , अपना किरदार उभर आया है ।
कई सालो के बाद मैने आज मैने खुद को अकेला पाया है ।।
बीता पल कोई परछाई है , जो आज अंधेरे में नजर आई है ।
कर्मो की स्याही से लिखी किताब , आज मुझे पढ़ने आई है ।
इस काली रात में , आज मुझे जुगुनों ने मुझे बहुत डराया है ।
कई सालों के बाद आज मैने खुद को अकेला पाया है।।
By - anurag Nautiyal
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