Anurag Dangi   (अनुराग डांगी)
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Joined 4 September 2018


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26 JUN 2021 AT 23:49

हमने रास्ते ही वो चुने हैं,
जो ना कभी दिखे ना सुने हैं।

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26 JUL 2020 AT 12:57

इस वतन की मिट्टी में पैदा वीरों में परमवीर हुए,
रोया होगा दुश्मन रक्ताश्रु, वीर जब वो अधीर हुए।

अक्षय शौर्य था उनमें, जो ना कभी क्षीण हुआ।
दी शहादत जिन वीरों ने, जय उनका जीण हुआ।

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12 JUL 2020 AT 17:44

जब तक मैं हरा हूं,
मजाल किसी की,
मेरी जमीं को बंजर कहे।

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20 APR 2020 AT 15:45

मैंने एक कलम को देखा है,
वो सूखी है तो बंजर है,
स्याही है तो खंजर है,

वो कलम है।

वो झुकी नहीं है,
खरीददार बहुत है,
पर बिकी नहीं है,

वो कलम है।

वो शब्द बुनती है,
वो सर्वदा सत्य चुनती है,

वो कलम है।

वो शब्द का बना आईना समाज को दिखाती है,
कभी लेखक की जुबां स्याही के जरिए उतार लाती है।

वो कलम है, वो अभिमानी है, वो निर्भीक, सच्ची और बेबाक है।
वो कलम है, वो निश्चल है, वो निष्कपट, निर्मोही और गीता सी पाक है।

वो कलम है।

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31 MAR 2020 AT 0:48

कहीं कोई खड़ा शुक्रगुजार महल में बजा रहा तालियां,
कोई सड़क किनारे देखे आस लेके हाथ में खाली थालियां।

कोई भयभीत मौत से बैठा घर में कर रहा राजनीति की बात,
कोई रास्ता नापे अपने घर का, चले भूखा प्यासा दिन और रात।

कोई व्यापारी राग अलपाए सौदे और घाटे का,
आंसू उसके राज खोले, नहीं जिसके पास पैसा आटे का।

करे अवमानना आदेश की, क्यों बनते वो अनजान,
पूछो उन डॉक्टर से, जिन्होंने हथेली पर रखी है जान।

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27 MAR 2020 AT 0:38

रुदन कर रही प्रकृति का श्राप तो अब लेना होगा,
कुकृत्य भी तुमने किए हैं, तुमको ही सहना होगा।

मानों दुखी मां रो रही पीड़ा में, कह रही संतान से,
बहुत सताया, क्या यही सिखाया, देख भीतर झांक के।

सब दिए तुझको पहाड़ पौधे पशु पक्षी नदी और झरने,
पाला इन्होंने, और फिर इन पर ही चल पड़ा कब्जा करने।

अरे! उठ सम्भल और शुरू कर फिर एक नया दौर,
तेरा है, तेरे लिए है, थाम ले, अब भी तेरी ही है ये डौर।

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23 MAR 2020 AT 13:29

Malnutrition is also a serious problem in country. But the fact is, nobody cares unless it strike the upper class of the society.

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30 JAN 2020 AT 8:08

शहर की भेदभाव रहित ईर्ष्या से तो
गांव की ऊंच नीच वाला भाईचारा अच्छा था।

आधुनिकता की चकाचौंध से तो अच्छा था,
जो गांव के बाहर मकान कच्चा था।

जिसमे मशीन नहीं एक इंसान बसता था,
जिसकी छाती के बीच एक दिल था जो बच्चा था।

शहर की भेदभाव रहित ईर्ष्या से तो
गांव की ऊंच नीच वाला भाईचारा अच्छा था।

हर चीज का मोल था, पर हिसाब का कच्चा था,
आज की comedy से तो वो चौपाल का मखौल अच्छा था।

रफ्तार ना थी पर बैलगाड़ी की सवारी अच्छी थी,
चलते बैलों के गले के घुंघरू की धुन सच्ची थी।

वाद विवाद से दूर उस गांव में एक इंसान सच्चा था,
खो गया है कहीं भाग दौड़ में, भीतर जिसके भगवान बसता था।

शहर की भेदभाव रहित ईर्ष्या से तो
गांव की ऊंच नीच वाला भाईचारा अच्छा था।

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22 JAN 2020 AT 9:58

Now more than the concept of love at first sight,
I started to believe in love at every sight,
more I see you, more I fall for you ❤️

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20 DEC 2019 AT 15:46

इस देश की आजादी में हर धर्म ने अपना रंग भरा है,
ये तिरंगा है साहेब,
इसमें जितना केसरिया है, उतना ही हरा है।

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