anurag bauddh   (अनुराग बौद्ध)
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Joined 7 March 2020


Joined 7 March 2020
30 JUN 2023 AT 11:58

हमें खफा करके दुश्मनों से यारी करते हो,
मतलबपरस्त बन झूठी तरफदारी करते हो ?
ख़ैर हम झूठा साथ, झूठा इंसाफ नहीं करते,
गलती माफ करते हैं, गद्दारी माफ नहीं करते । ।

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8 MAR 2023 AT 0:11

वो पहली औरत कौन रही होगी.....

वो पहली औरत कौन रही होगी,
जिसने गलत के खिलाफ आवाज उठाई होगी,
जिसने पहली बगावत की होगीl
जिसने घूंघट को अपना परचम बनाया होगा।

वो पहली औरत कौन रही होगी,
जिसने तलवार उठाई होगी,
जिसने आँख से आँख मिलाई होगी ,
जिसने क्रान्ति का पहला गीत गाया होगा।

वो पहली औरत कौन रही होगी,
जिसने खुद के लिए आवाज़ उठाई होगी,
जिसको सजना संवरना न आया होगा ,
जिसको दुल्हन बनना न भाया होगा।

वो पहली औरत कौन रही होगी,
जिसने खुद का घर बनाया होगा ,
जिसने खुद अपने दम पर पहला अनाज उगाया होगा,
जिसने खुद परिवार का बोझ उठाया होगा।

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3 MAR 2023 AT 12:52

नारी की मुस्कान खोई, बेड़ियों मे कैद हैं,
जुबान काट ली उनकी, चीखें कैद है।

आँख भर आती मेरी ,कभी मैंने नुमाइश की नहीं,
दर्द मेरा जाने कब से, धड़कनों मे कैद है।

वारदात ए- जिस्म ज्यादती का सिलसिला, कहाँ जा के थमें,
आँसुओं की धारा बन ,सिसकियों मे कैद है।

साद कोई क्या करें , जख्मों की खाईं बनी,
न्याय भी अब तो, धर्म - जाति मे कैद है।

तीरगी को जिन्दगी से हम, मिटाएं कैसे अब,
गमज़दा है जो कलम वो, बंदियों मे कैद है।

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28 DEC 2022 AT 21:56

(फिर एक दिसम्बर चला गया)

दुख है इस बार भी आया आकर चला गया,
सर्द भरे मौसम में फिर से दिसम्बर चला गया।

नये जज्बात, नये अहसास कब पुराने हो गये,
जो बैठा था पास मेरे वो भी कलन्दर चला गया।

ना ना करने का विधान हमने छोड़ा ही नहीं कभी,
कुछ रिश्तों को निभाने का रीति रिवाज़ चला गया।

कल परसों की जो बात भी पूरी हुई कभी नहीं,
और कल कल करते हुए लो साल भर चला गया।

"अनुराग " सोचते रहे आज नही तो कल पढ़ लेगे किताबे,
जितना गया कल और जितना आया आज सब बेकार चला गया।

बदलने का नया विधान, नए साल पर देखेंगे फिर ,
आएगा फिर से दिसम्बर कह कर वह चला गया।

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24 DEC 2022 AT 7:51

उम्मीदों के साए में
हमारे सपनों की झोपड़ी में
जिन चिरागों को तुमने बुझा दिया
उन्हें फिर से जलाना चाहता हूं।
जिस इतिहास को तुमने मिटा दिया
उन्हें फिर से लिखना चाहता हूं।
कलम हमारी हो हमारे इतिहास पर
क्यूंकि दुश्मन आतुर है हमारी तबाही पर।

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13 DEC 2022 AT 11:16

जय भीम कहना सीख लो...

जिगर में तेज पैदा कर
जय भीम कहना सीख लो।
वरना चुप थे, चुप हो,
चुप ही रहना सीख लो।

तुम्हारी चुप्पी मजबूत करती है
उन्हें, उनके गिरोहों को, हथकंडों को।
अपने कौम के निर्धारक तुम हो,
शोषण उत्पीड़न के कारक तुम हो।
कहीं यह चुप्पी तुम्हारी कायरता तो नहीं?
अगर हां तो यह बहुत डरावना है,
मुर्दा-लाश से भी अधिक डरावना।

सीखो अत्याचार अंधाधुंध से,
सीखो मधुमक्खियों के झुंड से,
सीखो अपनी गुलामी पर विचार करना,
सीखो इस गुलामी का प्रतिकार करना।
इसी सवाल पर चिंतन हमारी छाप छोड़ेगी,
आगामी नस्ल के लिए एक जवाब छोड़ेगी।

इसी जोश होश के साथ
स्वाभिमान जीना सीख लो,
जिगर में तेज पैदा कर
जय भीम कहना सीख लो।

#बहुजन_कलमकार

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6 DEC 2022 AT 8:01

शाम दर शाम जलेंगे आपकी यादों के चिराग,
नस्ल दर नस्ल आपका नाम गुनगुनाया जाएगा..

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4 DEC 2022 AT 17:04

*दाग दाग मत कर, सब दागदार है.*
*बेदाग एक ही है जो चन्दशेखर आजाद है..*
*भीम आर्मी जिंदाबाद*

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17 OCT 2022 AT 17:51

मन, वचन, अंतःकरण सब से जो शुद्ध हो ।
मोह, माया से दूर हो जो बुद्धि से प्रबुद्ध हो।

मार्ग निष्कंटक रहें हृदय कमल खिला रहे।
मानव मात्र दृष्टि में जिनकी न कोई क्षुद्र हो ।

शांति, सौम्यता, गंभीरता का दरश नित्य हो।
विश्वास जिसका सिर्फ ईश में ही विशुद्ध हो

दूर भरमजाल हो पाप पुण्य से पूर्ण मुक्त हो।
मुक्ति का हर रास्ता न कंटकों से अवरुद्ध हो।।

सब पर दया सब पर रहम सब सहज भाव हो।
विश्वबंधुता बढ़े अब कोई न किसी के विरुद्ध हो।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया चरितार्थ हो।
सम्पूर्ण विश्व बुध्द हो रहा अब तुम भी बुध्दमय हो जाओ,

बोधिसत्व भीम राव अम्बेडकर ...
स्वप्नों को सच करने लिए अडिग हो जाओ।
दिलों में करुणा दीप जले सब बुद्ध तेज में मुग्ध हो जाओ।

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23 SEP 2022 AT 13:46

आज के हालातों पर कलम न उठी तो अच्छा न होगा,
ब़गैर कलम के ललकार के यह हुँकार पक्का न होगा ।
इंकलाब का बेड़ा उठाया है तो विरोधी रंगों से न डर,
अगर आज भी चुप बैठे रहे यूँ तो ये काम सच्चा न होगा।

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