अनुराग चन्द्र मिश्रा   (©chanderअनुराग)
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Joined 27 January 2017


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Joined 27 January 2017

ये रात बीतती नहीं है,
ऐ ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी गुज़रती नहीं है,
तेरी चोखट के आगे खड़े रहते हैं,
चोखट के उस ओर एहसास है तेरे होने का,
कभी हम खटखटाते नहीं है,
कभी तुम ये चोखट खोलते नहीं हो,
अब तेरे बिना जिएं, हमें आता नहीं है,
गुज़री यादों के बिना ये पल बीतते नहीं है,
ऐ ज़िन्दगी तेरे बिना ये ज़िन्दगी कुछ नहीं है|

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वक़्त का कोई होश नहीं है,
पल पल बीत तो रहा है,
अगले पल की यहाँ ख़बर नहीं है,
ख़ुद के होने का यकीन नहीं है,
जिस ज़िन्दगी से वजूद है हमारा,
ऐ ज़िन्दगी यहाँ तू कहीं भी नहीं है|

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ठहर गया है
कहीं
अता पता नहीं
तित का
इक डोर है
वर्तमान की
जानें क्या हो
भविष्य का|

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किधर से आना है तुमको
ज़िन्दगी जीना है तुमको
यहीं ठहर जाना है तुमको
मंज़िल का अता पता है तुमको !
बस ज़िन्दगी से ज़िन्दगी को
दफ़न करना है, जलाना है तुमको|

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पहले एहसास,
बाद में मलाल होता है|

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वो एक टक खिड़की से आसमा को निहारता रहा|
-Dr. Pratibha Dixit







रात बीती मगर ना उसका महबूब आया ना महबूब की रूह,
फिर भी बदस्तूर हर रात हर पल चौखट पर गुजरता रहा|

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ज़िन्दगी का सफ़र यूँ भी ठहरा गए हैं,
ख़ामोश थी ज़िन्दगी, वाचालता बरपा गए हैं,
जाते-जाते ज़िन्दगी को यूँ भटका गए हैं,
ख़ामोश ज़िन्दगी को सन्नाटे से मिला गए हैं|

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कभी मलमल तो कभी टांट के पैबंद है,
कच्ची पक्की सड़कों पर लगती फेरी है,
ख़ुशी और ग़म के सायों से निखरती है,
दिन रात के पहर पर अक्सर ठहरती है,
ज़िन्दगी मौत की सच्ची पक्की सहेली है|

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कुछ तेरा कुछ मेरा कुछ हमारा,
सब कुछ बिखरा पड़ा है,
शायद तुझे ख़बर नहीं है,
सब कुछ समेटता हूँ जितना,
उतना ही यह बिखरता यहाँ है|

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