अनुराग चन्द्र मिश्रा   (©chanderअनुराग)
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Joined 27 January 2017


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Joined 27 January 2017

भगवान है या नहीं, किसी ने जाना है, कोई अंजना है,
जीवन और मृत्यु इक चक्र है,
ये चक्र प्रकृति ने जल, थल और वायु हर जगह पाला है, 
भगवान है या नहीं, किसने पहचान है..?
जिसने जाना है इक नए शब्द से पुकारा है,
नियम और निर्देशों से बांधा है मनवाया है,
भगवान को इंसान ने क्या-क्या बनवाया है, 
भगवान से इंसान ने क्या-क्या कहलवाया है,
भगवान को इंसान ने नए-नए नाम से पुकारा है,
भगवान है या नहीं, कहाँ किसने पहचान है ?
प्रकृति है, जीवन है, इंसान को तबाह किए जाना है|

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इक कहानी सी है किससे कहें किसको सुनाएं,
अंजान रास्तों से घिरी दुनियां की दुनियादारी दस्तकारी,
दिन-ब-दिन बढ़ती उम्र की घटती ज़िंदगानी सी है|

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सुख की दुख से, दुख की सुख से,
यहां वहां फरमाइश तो नहीं है,
चाहतों का कोई मकां भी नहीं है,
कहीं पहुंचना भी नहीं है,
कहीं जाना भी तो नहीं है,
फिर भी चलना है, बढ़ना है,
कहीं भी रुक जाना भी तो नहीं है,
ज़िन्दगी के हाशिए पर कोई भी,
कहीं भी ठहर जाता भी तो नहीं है|

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ज़िन्दगी है कि हर इम्तिहान के बाद इम्तिहान ले रही है|

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ख़्वाहिशों की भी अपनी ख़्वाहिशें हैं,
जागतें हैं शब भर, बहुत फरमाइशें हैं,
मिल जाती है मंज़िल, छोटी छोटी किस्तें है|

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जानें कितनी अधूरी पुरानी
किसी का स्याह गाढ़ा रंग
जानें कितनी बेरंग सयानी
किसने सुनी किसकी रवानी
हर रात रोज़ ही है गुज़र जानी|

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ज़िन्दगी ठहरी है,
एक मोड़ पर,
ज़िन्दगी बेहाल पड़ी है,
एक मोड़ पर,
ज़िन्दगी मलमल की चादर में,
लिपटी बदहाल पड़ी है,
ऐ ज़िन्दगी किस मोड़ पर,
नज़र आ, खुशहाल ज़िन्दगी है|

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मुहब्बत बयां कैसे कर पाएं कोई गिन के पंक्तियों में।

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पक्की इक नींद तलाशते हैं,
कोई ना दख़ल दे वक़्त खंगालते हैं,
मुकम्मल हो तो कोई किसी शब,
बस इक ख़्वाब चाहते हैं|

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कभी-कभी हर सवाल का जवाब देना,
कभी-कभी हर समस्या को हल कर देना,
किसी इंसान की सबसे बड़ी खामी होती है|

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