दिन भर की थकान,
इक कच्ची पक्की नींद,
कुछ टूटे बिखरे पक्के रिश्तें,
कुछ गुनगुने पूरे से सपनों की भाप,
रात के दामन में खोजता रहता है,
हर शख़्स ख़ुद को, कभी चाँद तो कभी,
सुर्ख़ काली रात में तारों के आसपास|-
इक वक़्त वो भी था जब sociallife... read more
किश्तों किश्तों में पाटी है ये ज़िन्दगी,
सुबह मिलती है खर्च हो जाती हर रोज़ है,
मूल तो मौत है, सच्ची ज़िन्दगी इक गठजोड़ है|-
इस अंधेरी दुनियाँ से उभरना मुश्किल है,
इस उजेरी दुनियाँ में यहाँ उजाला ढुंढना भी मुश्किल है|-
एहसास है ज़हन में दबे हुए,
न तुम बयां करते हो,
न हमसे बयां हो पाता है,
गुफ्तगू होती है इशारों से,
नज़रें बतलाती हैं नज़रों से,
इस ख़ामोशी में सरेआम कुछ तो,
गुम होता है, कुछ फ़ना हो जाता है,
बाकी है, इक वक़्त हमारे दरमियाँ,
क़रीने से कहीं तो संभल जाता है,
कितने एहसास हैं ज़हन में दबे हुए,
पल पल हर पल तेरे संग यकिनन,
ये एहसास ज़हन में आता है|-
आदतन इक पल का जाना है,
अगले ही पल वापस आना है,
तेरे आगोश में क़ैद हो जाना है,
निहारती इतराती इन आँखों में,
किसी ओर जहां में बस जाना है|-
बड़े ओहदे पर बैठे छोटे दिमाग़ वाले लोग,
हमेशा ही बहुत हानिकारक होते हैं,-
ज़िन्दगी की हक़ीक़त कुछ और है,
समझदारी के दरमियान नासमझी का शोर है,
नासमझी के दरमियान समझदारी कहीं ख़ामोश है,
नज़र आता है जैसा, कुछ वैसा है भी, नहीं भी,
हर चेहरे पर इक चेहरा नज़र आता नक़ाबपोश है|
कभी-कभी समझ नहीं आती ज़िन्दगी,
उलझती सुलझती जानें ये ज़िन्दगी की कैसी डोर है|-
वैसे तो हर ज़िन्दगी अनमोल है,
फ़िर भी यहाँ लग ही जाता इसका मोल है,
इक आसमान है इक ही ज़मीन है,
कभी महफ़िल में कभी किसी हादसे में,
हर इक ज़िन्दगी की बोली लगी है,
कैसी यह दुनियाँ है, किसकी जवाबदेही है,
शोहरत और दिखावे ने लगाई ज़ुबान पर कुंडी है,
कितनी ही महत्वाकांक्षाओं पर चढ़ी ज़िन्दगी की बली है,
ए ज़िन्दगी कैसी ये ज़िन्दगी ज़िन्दगी को मिली है,
यहाँ ज़िन्दगी बस बेबसी से जूझ रही है|-
कितनी दूर चल पाएँगे हम,
या कहीं ख़ो जाएँगे हम,
ख़ुद को ना किसी को,
कहीं न मिल पाएँगे हम,
कि होता है कहीं ऐसा जहाँ,
किसी की आँखों में होता,
नहीं कोई टूटा सपना,
क्या कभी ख़ोज पाएँगे हम,
नहीं तो कहीं तो लौट जाएँगे हम|-
फ़िर से चाहने की हिमाकत कर लेते एक बार,
वक़्त का इक कतरा छूट गया था कहीं,
जीते जी उस कतरे में पल भर जी लेते एक बार|-