May the Diyas Light lead you onto the road of Growth and Prosperity, This Diwali Illuminates your life with lights, Colours and Rangoli add more hues to your life.
Have a Very Happy Diwali you & your Family !🎉🎉-
इक वक़्त वो भी था जब sociallife... read more
बेवज़ह ही तबाह हुए बैठे हैं,
जो है नहीं हक़ीक़त,
उसे हक़ीक़त जान बैठें है,
कभी-कभी दिन गुज़रता नहीं गुज़ारे,
कभी हर दिन को पल भर में गवाएं बैठें हैं|-
सन्नाटे का भी इक शोर है जो सुनाई देता है,
ख़ामोशी की भी इक चीख है जो सुनाई देती है,
तन्हाई भी कभी-कभी तन्हां ही रहना चाहती है,
फितरत ए वक़्त, वक़्त पर पल भर भी नसीब नहीं होता है|-
कि ये दुनिया सब कुछ जानने का दावा करती है,
कितने दावे झुठलाती है ये दुनिया दुनिया के,
फिर भी हर झूठे दावे से साबित जानें क्या करती है|-
सुबह जाग कर सोए ना,
मुश्किल से ड़र जाए ना,
तपती धूप में डगमगाए ना,
सांझ तक थक जाए ना,
मंज़िल के बाहर ख़ो जाए ना,
ख़्वाबों तक पहुंच रुक जाए ना|-
क्यों कर यहाँ बयाँ किसी से हालात करें,
सभी ने किसी को चुन लिया सजदे खातिर,
कौन है, कोई मसिहा यहाँ जिस की इबादत करें,
बेवज़ह ही परेशां है हर शख़्स यहाँ, ख़ुद से!
बेवज़ह ख़ुद बेवज़ह की ख़्वाहिशों से,
ज़रूरत नहीं जिसकी, फ़िर क्यों हासिल करें,
इक ख़्वाहिश की खातिर क्या क्या तबाह करे,
विरासत का मोल नहीं, कल की परवाह नहीं,
आज का राब्ता जिससे किसी का वास्ता नहीं,
सियासी वफ़ादार है कोई अहम का शिकार है,
मुनाफ़ा है कायदा सबका, ख़ुदा का भी ख़रीदार है,
इंसानियत भी इंसान से दूर तलक अंजान है,
कोई है यहाँ जिस से भी हालात बयाँ करें,
पहरेदार है गुनहगार यहाँ जिस पर विश्वास करें|-
रोज़ की किश्तों में पाटी है ये ज़िन्दगी,
सुबह मिलती है हर शब रोज़ हो जाती मौत है,
कहीं आँखें सुर्ख़ है तो कहीं आँखों में अश्क़ हैं,
ऐसे कैसे रोज़ गुज़र जाता ये ज़िन्दगी का मोड़ है,
ऐ ज़िन्दगी जानें तेरा ये कैसा कोर है|-
कभी-कभी इक लंबी ख़ामोशी रहती है,
ज़िन्दगी ख़फ़ा नहीं, ज़िन्दगी से ख़फ़ा भी नहीं,
फिर भी ज़िन्दगी बेसुध बेपरवाह बीतती रहती है,
सुबह और शाम में फ़र्क है नज़र तो नहीं आता,
अंधेरे उजाले में तर्क वितर्क है, दिन रात में फ़र्क है,
घड़ियां गुज़र रहा समय इक समान बतलाती है,
कभी-कभी ज़िन्दगी बस कहीं ठहर जाती है,
सुलझते सुलझते कभी-कभी उलझ जाती है,
उलझी हुई सी ज़िन्दगी जानें कैसे सुलझ पाती है|-
सभ्य होना भी असभ्य व्यवहार करता है,
बिना कहे बिना सुने, अक्सर बुरा बनाता है,
सोचने समझने से पहले विचार करना सीखता है,
सोच समझ कर विचारों की हदें दिखाता है,
सभ्य होना भी असभ्य सा परीभाषित करता है|-
चाँद से मुलाकात हो रही है,
चाँदनी चाँदनी से भीगा रही है,
आँखें आँखों को निहार रही है,
लब ख़ामोश है,
फ़िर भी ख़ामोशी गूंज रही है,
नींद है भी तो,
कहीं नींद का नामोनिशान भी नहीं,
दिन रात को यही बात परेशां कर रही है,
ये मुलाकातें क्यों लम्बी हो रही है|-