जीवन क्या है?
बाल्यकाल ,युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और फिर असहाय सी वृद्धावस्था
बस हर अवस्था से गुजरकर, अंतिम चरण को पाना ही क्या जीवन है
प्रत्येक चरण की होती है एक नियमित सी, पूर्व निर्धारित सी व्यवस्था
उसे आंख मूंद कर मानते हुए , अमूल्य समय गवाना ही क्या जीवन है
क्यों भटकते हैं हम जन्म दर जन्म, आत्मा को पहनाते हुए नया चोला
एक जन्म की यात्रा पूर्ण होते, फिर से नया जन्म पाना ही क्या जीवन है
मोक्ष की कामना करते हैं हम सभी,मोक्ष का सही अर्थ कभी जाना नहीं
जीवन की चुनौतियों से घबरा,मोक्ष का दर खटखटाना ही क्या जीवन है
स्वर्ग नरक किसने देखा है बोलो ,जो है वो सब बस दुनिया में ही तो है
कर्म अनुसार मिलता है सब, पूर्व कृत्यों के फल पाना ही क्या जीवन है
ये सृष्टि सोचो कितनी विराट है, ज्ञात इसका न कोई आदि न आरम्भ है
अंततः बस एक शून्य से आना,और फिर शून्य में जाना ही क्या जीवन है
-Anupriya Batra
-