Anupriya Batra  
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दिल की कलम को
ख्यालों की स्याही में डुबोकर
मन की डायरी में
लिखती हूँ ज़ज्बात❣️
Joined 4 February 2019


दिल की कलम को
ख्यालों की स्याही में डुबोकर
मन की डायरी में
लिखती हूँ ज़ज्बात❣️
Joined 4 February 2019
21 MAY AT 19:00


बारिश की बूदें

बारिश की बूंदें भी तो ,कभी कभी कमाल करती हैं
बेमौसम ही बरस जाती हैं,और खूब धमाल करती हैं

अभी सावन आया नहीं, पर सावन जैसे रंग दिखाती
काली बदलीयाँ ये घुमड़ घुमड़, खूब बवाल करती हैं

कभी अचानक बिजली कौंधे, तड़क से करती है शोर
तन में उठे झुरझुरी सी, कलेजे में ये ज़वाल करती हैं

याद आता है बचपन बहुत,जब बारिश में भीग जाते थे
वो बचपन की यादें,आज भी रंगीन हर ख्याल करती हैं

काश कि इक बार फिर से,लौट आते वो दिन भी सुनहरे
क्यूँ पलट नहीं आता वक्त,आज हमसे ये सवाल करतीं हैं

-Anupriya Batra





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3 MAY AT 16:24

सफ़र- ए -इश्क़ 💘

कुछ दर्द दिल के कोने में छुपे ही रह जाते
वो दर्द कभी किसी को दिखाए नही जाते
कुछ आंसू बस पलकों पर ही हैं ठहर जाते
वो चाहकर भी आंखों से बहाए नहीं जाते

इम्तिहानों का एक सिलसिला है ज़िन्दगी
यकीनन ये बात जानते ही हैं हम सब ही
अफ़सोस इसके इम्तिहान ऐसे भी हैं होते
जिनके नतीजे ही कभी बतलाए नहीं जाते

राह-ए-इश्क़ से जो भी कोई गुज़रा है कभी
एक बार तो रस्ता भटका है सब जानकर भी
जिस सफर में खोना तय है उसपे चले जाते
कदम आगे बढ़ने से क्यूँ रूकवाए नहीं जाते


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10 APR AT 15:28

सुकून दिल को कभी आया ही नहीं,जब से ये दिल बेकरार हुआ
चैन भी तो कहीं हुआ है लापता, जब से हमें किसी से प्यार हुआ

ये रूह अब हमारी न रही, बस जिस्म का ही अहसास रहा बाकी
वो जाकर बस गयी उनके दिल में,खुद से जिस्म भी बेज़ार हुआ

ना तो आबाद रहा न बर्बाद हुआ, ये शहर- ए- दिल भी अजीब है
कितने तूफान से होकर गुज़रा,फिर भी पूरी तरह नहीं बेकार हुआ

सुनते हैं जब होती है दस्तक, तो गूंज उठता है दिल का हर कोना
दिल के ज़ज़्बातों को मिलेगा सुकूँ,इक बार जो उनका दीदार हुआ





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8 APR AT 22:43

बहुत नाज़ुक जज़्बातों में बहक रहा है ,तुम आकर ज़रा मेरा दिल थाम लो
धड़कनों में कैद धक-धक कर रहा है, तुम आकर ज़रा मेरा दिल थाम लो

है इक शामत मोहब्बत बेशक ये माना, पर ज़िन्दगी भी बेनूर है इसके बगैर
ये मोहब्बत पाने को ही तो तड़प रहा है, तुम आकर ज़रा मेरा दिल थाम लो

ये ज़ालिम ज़माना दुश्मन-ए-इश्क़ है, सदियों से बदस्तूर कायम है दुश्मनी
इसकी आग में अब तलक जल रहा है, तुम आकर ज़रा मेरा दिल थाम लो

न कोई राहत है न कोई हौसला है, हालातों के शिकंजे में कुछ ऐसे कसा है
एक पल की खुशी के लिए तरस रहा है, तुम आकर ज़रा मेरा दिल थाम लो

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1 APR AT 21:06

बेख्याली में भी हमें सिलसिलेवार, तेरे ही ख्याल आते रहे
वक्त कुछ यूँ गुज़रता रहा, कि लम्हे आते रहे लम्हे जाते रहे

एक अनोखी दुनिया में खोए, खुली आँखों से रात भर सोये
जागती सी, कुछ अलसाई सी, आंखों में ख्वाब तेरे आते रहे

एक अनाम सी खामोशी भी, बस चुपचाप पहलू में बैठी रही
और हम तो आंखों-आंखों में ही,उस खामोशी से बतियाते रहे

एक इंतज़ार सा रहता है ,कि कोई आहट हो और तुम आओ
हम शब-ए-इंतज़ार,उस दरवाजे की चौखट पर आते-जाते रहे

बेख्याली के इस आलम में भी,छाई हुई सी इक ऐसी खुमारी है
हम आइने के अक्स में भी,तेरी तस्वीर को टकटकी लगाते रहे

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31 MAR AT 22:55


दर्द- ए- दिल 💘

एक भ्रमर सा ये भ्रमित मन है, ए दिल बता जाऊँ कहाँ
वृथा ही कुछ ये व्यथित मन है, ए दिल बता जाऊँ कहाँ

अतीत की गमगीं सी यादों से, जग के सच्चे झूठे वादों से
खुशियों से ही क्यों वंचित मन है,ए दिल बता जाऊँ कहाँ

कुछ खो गया कुछ पा लिया,कुछ छूटा कुछ अपना लिया
फिर भी क्यों ये विचलित मन है, ए दिल बता जाऊँ कहाँ

कौन अपना है कौन पराया, हमने कभी ये भेद नहीं पाया
संवेदनाओं से कुछ मिश्रित मन है, ए दिल बता जाऊँ कहाँ

है ये दर्द क्यों दिल के कोने में, है आह क्यों निकली रोने में
अश्रुओं से ही कुछ सिंचित मन है, ए दिल बता जाऊँ कहाँ

-Anupriya Batra







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24 MAR AT 22:42

जो बात जुबां न कह पाए वो नज़र कह देती है
क्योंकि ये दुनिया का सबसे विस्तृत शब्दकोष है🤗

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22 MAR AT 13:28

चांद सुनाता है इक कहानी, सितारे सुनते हैं चुपचाप
खामोश कहानी के लफ़्ज़ों को, बुनते अपने ही आप

है आलम बहुत खूबसूरत,मद्धम मद्धम सी रौशनी है
आकाश की रौनक में ही कहीं, खो गए हम और आप

इस अधखिले चांद की मुस्कान भी,है कुछ कातिलाना
चांदनी भी घूंघट ओढ़े हुए,शर्म से खडी़ है वहीं चुपचाप

क्या तो हसीन समां है, क्या ये रात के बहके से नज़ारे है
इस रात की मदहोशी में,होशोहवास खो गए अपने आप

ये पल कितने अनमोल है,इनको कैद कर पाते हम काश
इस रात की रागिनी का,हर रोज सुन पाते मधुर आलाप

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19 MAR AT 16:12

करो तुम मोहब्बत तो इबादत के जैसे
शायर दिल की किसी इबारत के जैसे

पाक हो वो इतनी इक आयत के जैसे
शिद्दत हो उसमें पुरानी आदत के जैसे

पुरानी हो इक पुरानी रवायत के जैसे
नयी हो एक अनसुनी कहावत के जैसे

एक बिन मांगे मिली इजाज़त के जैसे
पोशीदगी से भरी हुई हिफाज़त के जैसे

शरारत भी हो आंख की इशारत के जैसे
लज्ज़त हो इक मीठी शिकायत के जैसे

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18 MAR AT 20:36

फरेब गैरों से पाया जाए तो कोई भी गम नहीं है
उनकी तो फितरत में शायद वफ़ा की कमी सी है
फरेबी जब खुद का दिल ही हो तो हम क्या करें
आज फिर अपनी बेखुदी से आंख में नमी सी है

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