अनुपम   (अनुपम..✒)
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Joined 18 January 2020


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Joined 18 January 2020
14 JAN 2022 AT 11:55

मौसम ताजा - ताजा रे,
दिल से दिल हो साझा रे,
सबके खाबो के पतंग उड़े;
सुलझे जीवन मांझा रे।

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8 JAN 2022 AT 23:07

बहुत जोरों पर है, ढह जाएगा गुमाँ सबका,
क्या भूल गए हैं कि एक है आसमां सबका,
अभी तेरा - मेरा करके कितने दूर जायेंगे;
रास्ते बदल लो मगर एक होगा कारवां सबका।

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3 JAN 2022 AT 19:31

खो दिए रास्ते और खोना क्या!
जो हुआ सो हुआ और होना क्या!
एक नई मंजिलें, रास्तों पर कदम,
कल की बीती पर आज रोना क्या!

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27 DEC 2021 AT 12:43

पाऊं ज़मी का नहीं रहा,
होठ हसीं का नहीं रहा,
तुम्हारा होते-होते रहने में;
मैं कहीं का नहीं रहा।


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20 DEC 2021 AT 17:47

मेरी आंखों में जो सरोवर है,
ये तेरी यादों की धरोहर है,
यहां तो कंकड़ बहुत फेंके जातें है;
तेरा जिक्र कितनो के लबों पर है!

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18 DEC 2021 AT 23:42

ये इश्क है कि गले नहीं उतर रहा,
ये कौन मेरी याद लिए जिंदा है!
वो जी कर जिया है और जी रहा है,
हम मर के भी अब तक जिंदा है।

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15 DEC 2021 AT 23:01

मैं कैसे बताऊं कि मेरा कारवां ठीक है!
मेरे सर पर बादलों का आसमां ठीक है!
ये तो मौसम-ए-गम की बदमिजाजी है;
बांकी जो जहां है, वहाँ ठीक है।

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9 DEC 2021 AT 22:14

करीब रिश्तों में दिलों के फासले ना होते,
ये बेवजह के शिकवे गिले ना होते,
जो ना होना था वो हुआ, तुम्हें मिलकर;
ये अच्छा होता कि हम मिले ना होते।

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3 DEC 2021 AT 20:48

मेरा ठिकाना ये है,
कि मेरा ठिकाना नहीं;
मुझे इश्क है उससे,
उसको बताना नहीं;
वो शख्स उसे
बहुत खुब लगता है,
खामखा मुझे बीच में आना नहीं।

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2 DEC 2021 AT 22:35

रुसवाई के आग को जीभर ताप लिए है,
लोक-लाज के मारे नैना झाप लिए है;
तरह-तरह की बातें होती दुनिया भर में,
प्रीत की लत है या कोई हम पाप लिए है!

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