सुबह की धूप खिली
अलसाई आंखें खुली
फिर जाग गई नई आशाएं
जिंदगी एक और दिन मिली ।-
कभी विचरती हुई नदियां
कभी सरोवर हूं।
मैं स्त्री इस धरती की
धरोहर हूं ।-
दृढ़ता से जो चाहो पाओ
हार ना मानो विकल्प ना ढूंढो
सुविधा क्षेत्र से बाहर आओ ।
वर्तमान की राह को चुनकर
अपना भविष्य उज्जवल बनाओ-
संघर्ष ही जीत की कुंजी है
संयम से तू आगे बढ़ता जा
धैर्यपूर्वक मेहनत करते जाना
मेहनत इस जीवन की सच्ची पूंजी है-
ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरों ही के लहजे में बात करता है
खुली छतों के दिए कब के बुझ गए होते
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है
शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है
ये देखना है कि सहरा भी है समुंदर भी
वो मेरी तिश्ना-लबी किस के नाम करता है
तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
ज़मीं की कैसी वकालत हो फिर नहीं चलती
जब आसमाँ से कोई फ़ैसला उतरता है
वसीम बरेलवी-
इंसान का इंसान से
यही से शुरू है आकर्षण।
व्यवहार से हो जाता है
रिश्तों का पंजीकरण ।
हंसी खुशी से महका करे,
घर-संसार और वातावरण ।
सुसंस्कार और रीति-रिवाजों का
करते रहो तुम अनुसरण।
संगठित समाज बनाने का
यही है सही व्याकरण ।-
तभी काम से हम कुछ पाते ।
आलस त्याग भोर उठ जाते
सपनें अपने सच कर पाते ।
औरों के लिए जो जाल बिछाते
इक दिन उसमें खुद फंस जाते।
मेहनत से जब राह बनाते
मंजिल पर वो नही लड़खड़ाते
सदा सत्य को जो अपनाते
कभी नहीं मुश्किल में आते
निर्णय सही समय ले पाते
ऐसे लोग नहीं पछताते ।-
शहर की संगदिली कहूं
या रातों की रौनकें कहूं..??
दिनभर जिनपर वक्त नही वो...
रातों को टहल रहे होते है..!-