Anupama Sarkar   (Anupama Sarkar)
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Joined 30 May 2017


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8 OCT 2022 AT 10:44

सांचे हमेशा अच्छे लगते हैं...
हैरां जो नहीं करते

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7 OCT 2022 AT 12:07

सूखे बीज से हैं शब्द
बिखरे,
निखरे गमलों में
चाहें बस
भाव की खाद
रूह का पानी
और ... और
इक कलम दीवानी

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8 JAN 2021 AT 18:59

कभी लगता है
अजनबी हो
कभी बहुत अपने से
कभी दूर कभी पास
कभी बिल्कुल सपने से
इश्क़ मुहब्बत जिस्म रूह
न, न, कुछ नहीं मानती
ज़िंदगी तिलिस्म है
या फिर वही वहीं
बिल्कुल वैसी ही
जैसी सोची थी, नहीं जानती
बस पानी की धार में
भावों की पतवार से
जीवन की नाव में डोलती
तुमसे भरसक टकरा जाती हूं
और फिर
कभी लगता है अजनबी हो
पर कभी बहुत अपने से
बन्द आंखों के ख़्वाब नहीं
खुली आंखों के सपने से... अनुपमा सरकार

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5 JUN 2019 AT 21:32

भावों को शब्दों में
कैसे ढाला जाए
जानिए
मेरे शब्द मेरे साथ में

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2 JUN 2019 AT 20:22


दो अक्षर का जोड़
पर कितनी लंबी दौड़
कहे बहुत कुछ
रहे कभी खामोश
लगे अधूरी कहानी
ख्वाहिशों में लिपटी
ख्वाबों की निशानी
है जीने की उम्मीद
या दिल की टीस
अधूरा सा लफ़्ज़
समेटे आह की पीर
वक़्त, मौका, मोड़ भी
ज़िन्दगी की ठौर भी
एहसासों का जोड़ भी
मेरे होते तुम और
मैं होती तुम्हारी
कहने न कहने की होड़ भी
काश! काश! काश!अनुपमा सरकार

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2 JUN 2019 AT 19:04

मेरे शब्द मेरे साथ पर
सुनिए मेरी कविता
स्त्री शक्ति

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2 JUN 2019 AT 10:18

प्रेम में स्त्री लावण्यमयी और पुरुष श्री मय हो जाता है.. अक्सर सुना और महसूस किया.. पर फिर सोचती हूं प्रेम, केवल बाहर ही क्यों ढूंढें.. यदि अपने भीतर के स्त्री और पुरुष के अस्तित्व को सहर्ष स्वीकार लें तो, केवल तन ही नहीं, ईश्वर को व्यथित हो ढूंढता मन, भी सहज ही सौंदर्य परिपूर्ण हो जाए.. अनुपमा सरकार

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11 APR 2019 AT 15:56

It is nature's rule that nothing is perfect or symmetrical. It's up to you whether you take this fact positively considering yourself unique, and marvel in your very own Achievements. Or you take it negatively and keep grumbling about how others are leading superior lives, despite their limited abilities and resources.. Call it luck, fate, destiny, chance. But this is how life works!
(An excerpt from Don't Hate The Don'ts by Anupama Sarkar)

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10 APR 2019 AT 16:29

शब्द तो केवल काया है, भावों में अर्थ समाया है.. दरअसल हर परिभाषा से परे, मौलिक लेखन है ही यही, एहसासों को लफ़्ज़ों में पिरो देना... कैसे तय करें ये सफ़र.. जानिए मेरे वीडियो "लेखन की शुरुआत कैसे करें" में, मेरे शब्द मेरे साथ पर

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6 APR 2019 AT 16:46

निराशा की गलियों में आशा का पता ढूंढती
मेरी बेबस मूक चेतना
आंसुओं के सैलाब में खुशियों का तख्त तलाशती
मेरी आहत आत्मिक वेदना
अपाहिजों के संसार में स्वस्थ मन सहेजती
मेरी निर्बल लाचार प्रेरणा
कमज़ोर बेल सी मज़बूत पेड़ से लिपटती
मेरी ये निशस्त्र मूढ़ रचना! Anupama Sarkar

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