अपनी अपनी, नज़रों से और, अपने ढंग से देखा है,
तुमने मछली, को भी शायद, पेड़ पे चढ़ते देखा है।
सुंदर उपवन, निरी छटा, औ' झरना बहते देखा है,
पत्थर को भी, इस दुनिया मे, दर्द से रोते देखा है।
कुछ रिश्ते, हो जाते हैं जो, दिल को बड़ा दुखाते हैं,
किसी दवा से, दर्द उठा हो, ऐसा भी तो देखा है।
दुनिया भर को, देखा तुमने, आस लगाई नज़रों से,
कारी कारी, अँखियों में, हम ने उजियारा देखा है।
हर इंसां को, जांचा परखा, न कर पाए भरोसा पर,
तेरे बाद में, क्या बतलायें, हमने क्या क्या देखा है।
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