राजनीति का एकमात्र और अंतिम लक्ष्य :-सत्ता
साधन की पवित्रता आपकी अंतरात्मा पर निर्भर है!
इतिहास में सत्ता के लिए साधन की पवित्रता को ध्यान नहीं दिया गया.
सिर्फ सत्ता ही प्राप्त :-अंतिम लक्ष्य.-
हर एक का जीवन,
एक प्रयोगशाला है.
बस आपको अपने अन्दर,
झांकने की जरुरत है.
सभी उत्तर आपके अन्दर.-
तुम *किसी-के* काम के हो,
तो तुम किसी *काम-के* हो.
तुम *किसी-भी* काम के नहीं,
तो तुम *किसी-के* काम के नहीं.
तुम *किसी-के* काम के हो,
तो तुम किसी *काम-के* हो.
तुम *किसी-भी* काम के नहीं,
तो तुम *किसी-के* काम के नहीं.-
*"परीक्षा" संसार की करो..
"प्रतीक्षा" परमात्मा की करो
और "समीक्षा" अपनी खुद की करो..
"लेकिन इंसान परीक्षा "परमात्मा" की करते हैं,
प्रतीक्षा "सुख" की करते हैं
और "समीक्षा" दूसरों की करते हैं॥*-
पद मिल जाए बिना प्रतिभा के तो,
धृतराष्ट्र बनते हैं( कुंठित लोग)
प्रतिभा हो और पद न मिले तो कर्ण बनते हैं
(कुंठा से उत्पन्न अहंकार)
प्रतिभा कूट कूट कर भरी होने के कारण पद कदमों में ला कर देना चाहें,
लेकिन पद की चाह तक न हो तो अर्जुन बनते हैं(विनम्रता)
जब आप शिखर पर रहें तो humble रहें,
(राम और कृष्ण की तरह)
जब आप प्रगति कर रहे हों तो gratitude में रहें,
कृतज्ञ रहें( युधिष्ठिर की तरह)-
एक दौर था,
अकेले यात्रा करने का
चेन्नई से लेकर दिल्ली,
लखनऊ से गोरखपुर,
कानपुर से हुगली तक,
एक कशिश थी,
एक आनंद था.
आज फिर लगभग 15 वर्ष बाद.
अकेली की यात्रा,
बिना भय, बिना डर के....
बस्ती से कानपुर...
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कर्ण की धोखे से ली हुई विद्या,
धृतराष्ट्र का धोखे से लिया हुआ पद,
और दुर्योधन का धोखे से ली हुई संपत्ति,
जरूरत के समय पर काम न आई।
धोखे से प्राप्त की हुई कोई भी चीज:-
पद,पैसा या प्रतिष्ठा श्रापित होने के कारण,
विनाश का कारण बनती है !-