Anukrati Shrivastava   (अरुण अनुकृति)
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Joined 24 July 2020


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8 MAY 2022 AT 20:33

शब्द ख़त्म हो गए जहां,
वहां कौन सवाल जवाब करे
इस रिश्ते की गहराई का
अब कौन हिसाब करे

नाकाम कोशिशों को किस हद तक
भला कोई कामयाब करे
किसने किसको कितना दिया
अब कौन हिसाब करे

इतने बिखरे पन्नो से अब
कौन भला किताब भरे
तुम दूर थे या मैं थी गुम
अब कौन हिसाब करे

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6 MAY 2022 AT 9:45

अपने स्वाभिमान को मारना अब मुझसे होगा नहीं
घुट-घुट कर तुम्हारे साथ रहना अब मुझसे होगा नहीं
हद में रहकर अब न कर पाऊंगी मैं कोई हद पार
भरोसा जो टूटा है वो अब फिर तुम पर होगा नहीं
नहीं होगी अब कोई कोशिश तुम्हें सहारा देने की
एक पत्थर को सहलाते रहना अब मुझसे होगा नहीं
मेरे आंसुओं पर तुम्हारा हक़ आज से नकारती हूं मैं
दिल में दर्द ले हंसते रहना अब मुझसे होगा नहीं
माफ कर देना मुझे कि अब हार मानती हूं मैं
खुद को खोकर तुमको पाना अब मुझसे होगा नहीं
हां शायद नहीं कर पाऊंगी फिरसे ये कोशिशें
किसीपर यूं हर रोज थोड़ा थोड़ा मरने की
पर बिखर जाए जो तुमसे टकराकर फिरसे
वो कांच का मन मेरा अब हरगिज़ होगा नहीं
न तुमसे खफा हूं न चाहती हूं तुम्हें कोई सबक मिले
पर तुम्हारी खुशी की करूं प्रार्थना, ये भी मुझसे होगा नहीं
अब तुम कहो मतलबी या फ़िरसे समझो गलत मुझे
हर बार तुम्हें सफाई देते रहना अब मुझसे होगा नहीं
चाहे हो न हो मेरे ख्यालों में कोई और शामिल
चाहे मिले न मिले अब मुझे कोई अपने काबिल
पर अब न पलटूंगी तुम्हारी तरफ कभी वादा है ये
अपनी लायकी पर शक मुझे भूल कर भी होगा नहीं

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22 NOV 2021 AT 13:22

इस भागदौड़ के बीच खड़े रहना सीखती हूँ
आगे बढ़ने को कुछ क़दम पीछे लेना सीखती हूँ
करती हूँ गल्तियां, खुद को माफ़ भी करती हूँ
खुद की नज़र से खुद की कहानी मैं लिखती हूँ

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1 NOV 2021 AT 21:58

Give your best everytime as it's never too late
There's no time for despair and regret
Each step counts, no matter how small it is
Write your own story and let others emulate
Mockery or criticism, what else they indicate
You're doing what others couldn't anticipate

You can be the light in the darkest alley
As to those behind you, you can elucidate
The puddles, obstacles or any possible aid
That can make this journey, a saga so great
"What you share", remains & lost "what you hide"
On the last voyage, along nothing you can take

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6 JUL 2021 AT 0:04

ज्वालामुखी


अपने अस्तित्व को पाने के लिए हम सभी को शायद किसी‌ न किसी ज्वालामुखी से चट्टान बनना ही‌ होता है।


(कहानी अनुशीर्षक में)

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5 JUL 2021 AT 23:39

खेल ग़ज़ब के
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बचपन के वो खेल ग़ज़ब थे, कंचे और गुलेल ग़ज़ब थे
माराकुट्टी के तगड़े थप्पे, मनमौजी रेलमपेल ग़ज़ब थे..
उड़ती चिड़िया जब न उड़ी तो नमक मिर्च संग चांटे खाए
मासूमियत का चोगा पहने हम-औ-तुम गुस्सैल ग़ज़ब थे..
छुपन-छुपाई, गूंगी कबड्डी, घोड़ा-बादाम-छाई, अंताक्षरी
घड़ी चुराकर पहुंचे जिसमें, पोशम-पा के जेल ग़ज़ब थे..
अट्टी-बट्टी और कट्टी करते कभी बर्फ कभी पानी बने
की यारी और बैर भी जाना रंगों के वो मेल ग़ज़ब थे..

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5 JUL 2021 AT 0:15

Promotion
(Read Caption)

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16 JUN 2021 AT 15:46

काफी है

ख़ुशी की तलाश कुछ रिश्तों में क्यों सिमटे
जिंदगी के हर लम्हे में मुस्कुराना काफी है।
मुस्कराते हुए न गुज़र पाए अगर लम्हा
पाठ उसे बस समझ आगे बढ़ना काफी है।
अजनबी तो सब ही हैं, भले लगते हों अपने
आंसू पोंछने का मगर एक बहाना काफी है।
परिवार हो साथ तो माना आसान है गंतव्य
अकेला रह भी राह बनाते रहना काफी है।
एक साथ आगे बढ़ना यूं तो था सबसे उत्तम
अब उत्तम न तो न सही, कमतर ही काफी है!!

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1 JUN 2021 AT 14:55

"Flowing together"

*Meeting* thee in person was so long awaited
that even the last minute seems outdated

*Across* the miles, my soul was captivated
Such has been thy charm and it's not overrated

*The* Aura of thine makes you truly venerated
This feeling is real, it can't be fabricated

*Sea* and River can't be long-separated
To disappear in thee, I've already been fated

*Shore* & its safety can't be now celebrated
Only flowing with thee, keeps me elated

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30 MAY 2021 AT 16:20

ख़्वाब कितने पलते हैं पलकों की गोद में;
नज़रिए बदलते हैं नज़रों की ओट में।
कोई बनके फूटे प्रेम का अंकुर,
तो है जलता रहता कोई प्रतिशोध में।
ख़्वाब कितने पलते हैं पलकों की गोद में;
नज़रिए बदलते हैं नज़रों की ओट में।

माना कि दुनिया में हैं चेहरे तमाम,
मुखौटों का बाज़ार फिर भी गर्म है।
कोई बढ़ते क़दमों का बनता सहारा,
तो खुशी पाए कोई केवल विरोध में।
ख़्वाब कितने पलते हैं पलकों की गोद में;
नज़रिए बदलते हैं नज़रों की ओट में।

ठाना है किसीने कि सूरत बदलेंगे
तकलीफ में आशा की किरण भरके;
तो कोई है जो दर्द को दर्द से खरीदे,
ढूंढे अपनी राहत औरों की चोट में।
ख़्वाब कितने पलते हैं पलकों की गोद में;
नज़रिए बदलते हैं नज़रों की ओट में।

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