बहुत कुछ घट चुका है, बहुत कुछ बाकी है।
बदनसीबियों से पूछना कभी, मेरा नाम ही काफी है। ।-
क्यूँ बदल गया हूँ , मैं इतना ?
क्यूँ दूर हूँ मैं , खुद से कितना।
पहले तो खुश था , मैं कितना ?
क्यूँ नहीं हूँ अब, पहले जितना ।
क्यूँ नहीं है विश्वास, पहले जितना ?
क्यूँ बदल गया है ,स्वभाव इतना ।
क्यूँ करता हूँ अब , घृणा इतना ?
क्यूँ खुश नहीं हो जाता मैं, पहले जितना ।
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..कि गर कह दूँ कि मोहब्बत है तुमसे ।
तो क्या मोहब्बत है , गर कह दूँ मैं तुमसे। ।-
उस रात हम रात भर ना सोये ....
जिस रात खुली आंखों से देखा था सपना तुम्हारा,
...कई रात के बाद। ।।-
...कि आज भी वही कशिश है तेरे चेहरे में..|
हम आज भी इन्हें देखकर दिल को फड़-फड़ाने से
रोकते हैं||-
तड़प दिल में हो तो बेहतर है..।
यूँ चेहरे पर बेचैनी अच्छी नहीं लगती। ।-
की थी हमने ये सोचकर मोहब्बत कि बुरा ज़माना तो नहीं है...।
तुम एक बार मुस्कुराए भी नहीं , मेरा शेर इतना पुराना
तो नहीं है। ।-
किसी ने कहा..
क्या खूब लिखते हो उनके बारे में..
हमने मुस्कुरा के कहा .... 👇
मकसद-ए-यार के लिए नहीं..
लिखते हैं, तवायफ-ए-आरजू के लिए ।।-