मोहब्बत की मीनार ताज का दीदार कराते है,आइए हमारे यहां मुमताज तुम्हें आगरा घूमाते है। -
मोहब्बत की मीनार ताज का दीदार कराते है,आइए हमारे यहां मुमताज तुम्हें आगरा घूमाते है।
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इश्क में दूरी है मुझे पता है सनम ये तुम्हारी मजबूरी है,एक शख्स भुलाया नहीं जाता क्या भूलाना इतना जरूरी है। -
इश्क में दूरी है मुझे पता है सनम ये तुम्हारी मजबूरी है,एक शख्स भुलाया नहीं जाता क्या भूलाना इतना जरूरी है।
रह के तेरे दिल में नामवर हो गए,किरायेदार थे जमींदार हो गए।। -
रह के तेरे दिल में नामवर हो गए,किरायेदार थे जमींदार हो गए।।
मैं इश्क में इस कदर डूब गया हूँ,नज़र सब कुछ आ रहा है मगर भूल गया हूँ।। -
मैं इश्क में इस कदर डूब गया हूँ,नज़र सब कुछ आ रहा है मगर भूल गया हूँ।।
इश्क तो बहुत है मगर मसाफ़त भी कम नहीं,कायनात में बहुत है मगर तुमसी कोई नहीं ।। -
इश्क तो बहुत है मगर मसाफ़त भी कम नहीं,कायनात में बहुत है मगर तुमसी कोई नहीं ।।
दौलत कमाओ-सौहरत कमाओ, कमाओ हीरे मोती,पर एक बात याद रखना, कफ़न में जेब नहीं होती।। -
दौलत कमाओ-सौहरत कमाओ, कमाओ हीरे मोती,पर एक बात याद रखना, कफ़न में जेब नहीं होती।।
We are what we think. All that we are arises with our thoughts. With our thoughts, we make the world. -BUDDHA -
We are what we think. All that we are arises with our thoughts. With our thoughts, we make the world. -BUDDHA
एक रात वफा जो कर गई,वो रात वफा–ए–रात रही।हर दिन हर मौसम हर पहर,बिन अश्क कहा बरसात रही।रहते थे गुम तेरे प्यार में,तू हीर मेरी अब कहा गई।‘सिफ़र’ तुम्हारी कहाँ कद्र हुई,वो शौक से आई और शौक से गई।। -
एक रात वफा जो कर गई,वो रात वफा–ए–रात रही।हर दिन हर मौसम हर पहर,बिन अश्क कहा बरसात रही।रहते थे गुम तेरे प्यार में,तू हीर मेरी अब कहा गई।‘सिफ़र’ तुम्हारी कहाँ कद्र हुई,वो शौक से आई और शौक से गई।।
मैं मज़दूर ठहरा जागता न सोता हूँ,भूख है बस काम की इतना ही मैं कहता हूँ।पसीने में लथपथ मैं काम करता हूँ,सब्र तक न लेता हूँ सुबह शाम करता हूँ।मैं मजबूर हूँ इसलिए मजदूरी करता हूँ,पेट का गड्ढा मजदूरी से ही भरता हूँ।‘सिफ़र’ तू कुछ न करता है,मजदूर मेरा हर रोज मारता है।। -
मैं मज़दूर ठहरा जागता न सोता हूँ,भूख है बस काम की इतना ही मैं कहता हूँ।पसीने में लथपथ मैं काम करता हूँ,सब्र तक न लेता हूँ सुबह शाम करता हूँ।मैं मजबूर हूँ इसलिए मजदूरी करता हूँ,पेट का गड्ढा मजदूरी से ही भरता हूँ।‘सिफ़र’ तू कुछ न करता है,मजदूर मेरा हर रोज मारता है।।
–कलम-ए-गौतम -
–कलम-ए-गौतम