Anuja Shrivastava   (अनुजा)
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Joined 6 January 2018


Joined 6 January 2018
26 JUN 2020 AT 21:27

इस कहानी में,
पहले मैं थी, तुम थे..
अब हैं हम
तुम 6 फ़ीट के, मैं कंधे से भी कम,
मैं चाय की शौक़ीन हूं तुम शेक पसंद,
मैं चीज़- चीनी कम और तुम केक पसंद
सुनो...
खाना खा लिया? से लेकर..खाना लगा दिया है
कब उठे? से लेकर..अब उठो बहुत हुआ
DP अच्छी है से लेकर..कॉलर ठीक करो
तुम्हारी आवाज़ नहीं आ रही से लेकर..एक मिनट के लिए इधर तो आओ
कैसे हैं आप से लेकर..पागल हो तुम
...तक का सफ़र तुम्हारे और सिर्फ़ तुम्हारे साथ तय करना चाहती हूं!

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22 JUL 2020 AT 12:31

सबब बे-ख़याली का न कोई हमसे पूछे अब
मसलन एक ही ज़िन्दगी है और एक ही तुम

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28 MAY 2020 AT 23:00

शुक्र है
अब
दिवाली पर लोग भर-भर के घर नहीं जाएंगे
अब आप ख़ुद को किसी मेट्रो स्टेशन पर
खचाखच भीड़ में तन्हा खड़ा नहीं पाएंगे
पर
अब स्टेशन पर हर तरफ़ पैर रखने की जगह होगी
पर मुसाफ़िर एक भी नहीं!
अब नहीं होंगे अलग अलग लोगों के लेट हो जाने के किस्से
या पिछले दिन भीड़ के चलते गाड़ी छूट जाने का ग़म!

ख़ैर अब कुछ भी तो नहीं है
वो चलते-चलते पकड़ लेने को तुम्हारा हाथ,
न है तुम्हारी चाल को कवर कर लेने वाली रफ़्तार,
अब नहीं है सर रखने के लिए कंधा तुम्हारा
न बाकी है तुम्हें देखते रहकर होना ख़ुद-मुख़्तार

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26 MAY 2020 AT 7:48

कटती ये ज़िन्दगी भी
कुछ ऐसी हुई

कोई नौकरी सी
तनख़्वाह रुकी हुई

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18 MAY 2020 AT 22:47

मुझमें हूँ मैं गुमशुदा
हँसता रहा ज़माना
ज़िन्दगी, तू और मैं
इतना रहा फ़साना

कई सौ हँसते लम्हें
रोये हैं कई घड़ी
मुस्कुराते रहना चाहिए
बात छोटी हो बड़ी!

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15 MAY 2020 AT 17:59

मसले ये नहीं हैं कि..
ख़्वाब, पुरवाई
मेहबूब, जुदाई
मोहब्बत, रुबाई

जी वो
'आज़ादी' को मौत देनी है एक कसाई चाहिए

धार पैनी होगी न?
उधड़े पुराने दिमागों को थोड़ी सी सिलाई चाहिए

कोई तकलीम सी जगह का पता?
बस राह देनी थी जिन्हें हर बात पर सफ़ाई चाहिए

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4 MAY 2020 AT 16:15

हम तुम्हारे न हुए होते तो होते क्या
तुम मिले न होते तो हम खोते क्या

इश्क़ जानते समझते तो करते क्या
यूं जी न उठते तो तुम पर मरते क्या

इश्क़ इतना' उन्हें कहते तो कहते क्या
वो ख़ुदा ही होते तो दुआएं करते क्या

आंखों में सिर्फ़ पानी और भरते ही क्या
जो ज़िन्दगी न होते तो इतना सहते क्या

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4 MAY 2020 AT 13:28

इतना कुछ लिखकर ख़ुश हो जाती हूं मैं
जाने कौन पढ़ता होगा मुझे!

मेरे जैसे लोग?
जिनकी न नींद पूरी होती है न ख़्वाब?
जो अपने ही ख़्यालों में उलझे होते हैं दिन-रात?
जो कभी नहीं करते होंगे कोई पते की बात?

नहीं, मेरे जैसा कोई मुमकिन सा नहीं लगता!

भला..
ऐसा भी कोई होगा जिसका मन कहीं न लगता हो?
दोस्त, रिश्ते, अजनबी जो हर किसी से बचता हो?
जो हकीक़त से दूर किसी और ही शहर में रहता हो?

फिर यूं बेवजह ही लिखता हो?
...या फिर मुझ जैसे किसी और को पढ़ता हो!

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27 APR 2020 AT 18:13

Quarantine वाली बात...
तुम्हारे हालात तो हमसे भी ख़राब हैं
अकेले तो सब हैं तुम तो खाली भी हो

तुम तो कहते थे एक शहर है तुम्हारे पीछे
एक फ़ोन तक आया नहीं,
यार तुम तो जाली भी हो

सड़क के बीचों बीच बैठे रोता देखा था तुम्हें
नहीं इस कदर मोहब्बत देखी जहां
संभला हुआ शख़्स और बदहाली भी हो

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26 APR 2020 AT 16:37

मैं अकेली भी हूं और उसपे तन्हा भी हूं
काफ़ी इतना ही नहीं,
साथ इसके मैं बुज़दिल भी हूं

बदचलन, आवारा कहती तो है दुनिया
काफ़ी इतना ही नहीं,
प्यार में तेरे मैं पागल भी हूं

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