Fluctuation of thoughts are reaction of undesirable action.
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इश्क़ के अंजाम का ज्ञान न मुझे,
पर था ही नहीं इसका न लगाना इल्ज़ाम मुझपे
तुझसे मिलना, तुझे निहारना, तुझको विशेष महसूस कराना, तेरे हर एक अश्रु को पीकर, तुझको खुशियों से भीगाना, बस इतना सा काम मुझे,
स्वार्थ है .... इसका ज्ञान न मुझे,
लगे कुछ कहना चाहे तू भी...
पर लफ्ज़ तेरे उन शब्दों को पिरोकर कुछ कह न पाए ,
तेरे हिस्सा का ही खुद ही कहकर कभी मुस्कुरा,कभी गुनगुना लेंगे हम भी,
पर तू ग़र हृदय की बात कहके, हाथ थामें तो खुशी से झूम उठे हम भी..
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सब कुछ समर्पित करके भी कुछ न कहने का साहस है मुझमें....
बस कभी कभी भूल जाने का मन भी करता है क्योंकि याद है मुझे इस नश्वर दुनिया का नियम...
सब कुछ देकर, पाने का आश्वासन पाकर भी कुछ न मिलने का अहसास है अब ..😊
अनुभव की पाठशाला में हर एक ज्ञान तो ज़रूरी है न.. तो खुशी से इसको भी स्वीकार कर आगे बढ़ने का प्रयास है मेरे पास....-
मैं भी हूँ इस बगिया का फूल,
बस चलता हूँ, न पास न मैं किसी से दूर,
मेरे जीवन का बस है यही फ़ितूर कि कभी तो हम भी किसी के महरूम...
मैं भी इस बगिया का फूल......
ज़िंदगी की इस भाग दौड़ में, मीलों मीलों के सफ़र में, दौड़ता ही ही तो जा रहा हूँ, तो फिर क्यूं मैं अपनों से ही दूर हुआ जा रहा हूँ....
कहीं सफ़र की ये मंज़िल मेरा अंत तो नहीं....;
सब कुछ पा कर भी मेरा वर्चस्व तो नहीं....
है लगता कि अथाह सागर हूँ प्रेम का , फिर अधजल गगरी छलक क्यूं रही हैं मेरी,
देने का नाम ज़िंदगी तो पाने को कैसी ये तलब मेरी....
इस बगिया मैं कैसी ये पहेली,
मैं हूँ फूल या कांटों के झाड़ का कोई बबूल..... समझ से परे है कैसी ये भूल...
खैर.... आसां थोड़ी है इस बगिया में हर एक शूल, तो महसूस कर गुल क्यूंकि तू भी है इस बगिया का सबसे श्रेष्ठ फूल....😊-
समर्पण का भाव... है सागर से भी गहरा,
पर हर बार है.. तेरे नयनों पे कैसा ये पहरा,
मन की हर बात कहके बताए कैसे... सब बात कहके मनाई नहीं जाती,
अधरों की ये भाषा... कहां बनी इसकी भी परिभाषा....
कैसे गढ़ू इसका न ज्ञान मुझे, बस कहके बिखर जाऊ इतना ही काम मुझे..
है खुशी, ग़म आदि भाव मुझ में भी प्रिये!
पर सब भाव बता के कैसे दिखाऊं मैं प्रिये,
ग़र समझी तब भी ठीक, न जानों है ठीक तब भी, चलता है ये मुसाफ़िर, चलता ही जाएगा.... साथ हो अगर तब हसीं हो ये सफर
रूका कहां ये मुसाफ़िर, रूठा कहां ये मुसाफ़िर, है सफ़र मैं ये मुसाफ़िर......
चलता ही जाएगा.... और चलते चलते ही एक दिन.......😊-
मैं चाह के भी खुद से नहीं मिल पाता हूँ,
जब मैं अकेला होता हूँ......
इस गली से उस गली की अपनी काल्पनिक यात्रा में यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ घूमकर, थक, हारकर फिर लौट आता हूँ,
जब मैं अकेला होता हूँ......
शायद की आस में, अपनों की तलाश में, सुकून की अरदास में, मैं पुनः यह प्रयास दोहराता हूँ,
जब मैं अकेला होता हूँ......
पर हर बार की तरह इस बार भी बुझे मन से नए दीपक जलाता हूँ,
जब मैं अकेला होता हूँ......
चिंतन के सैलाब में डूबकर, खुद से मिलन का नया कीर्तिमान दोहराता हूँ,
जब मैं अकेला होता हूँ......
खुद की जंग , खुद से लड़कर, खुद ही विजयश्री का ताज़ मैं खुद के अरमानों पर सजाता हूँ,
जब मैं अकेला होता हूँ......।-
शांत सी गुमसुम इक चिड़िया,
है पंख, पर क्यूं न खोले ये चिड़िया,
उन्मुक्त आकाश की सबसे निर्मल चिड़िया,
डरी सहमी सी, चित्त में ली विलाप, सुंदर सी प्यारी चिड़िया,
है मौन पर शब्द कम नहीं,
मिले अनकहे से गम जो कम नहीं,
कह दे अपनी हर दास्तां,
जो छीनी है तुझसे तेरी ये मुस्कां,
मान ले मेरा इक कहा, है कम समक्ष तेरे पूरा ज़हां,
रख के तू खुद पे ज़रा सा गुबां,
नहीं कम तेरी कोई उड़ान,
विश्वास कर तेरे भीतर भी छुपा है इक हसीं इंसां,
फिर क्यूं गुमसुम है ये चिड़िया,
उड़ा दे अपनी हर उलझनिया,
ला प्रसन्नता का एक बौछार,
जो करे तेरे हर सपने को साकार,
छुए अनंत गगन और कर पूरे अपने हर किरदार,
तू बस चहकहते रहना इक बार,
शांत सी गुमसुम इक चिड़िया......-
है अहम आज उस अगम को जो कभी तुख्म था,
ना भूल उस वृक्ष को, संग उसके ना जब मूल था,
होगा क्या हश्र जब मन में एक छोटा-सा शूल था,
कटेगे, बिकेंगे फिर जाकर जलेंगे, ना पहचान सके गर कौन अपने अनुकूल था...-
हंसता हुआ चेहरा लेकर निकला था मैं, तुझसे मिलकर हंसना भूल गया,
रोना कभी आता था नहीं मुझे,
तेरी यादों ने वो हुनर भी सीखा दिया,
शिकायत नही सवाल है कि मैं समझ नहीं सका या तुमने समझने नहीं दिया , तेरा होकर भी तेरा मुझे होने नहीं दिया,
मीठी बातों में, मीठी यादों में मुझे घुमाया,
प्यार का एक नया एहसास जगाया,
उन बातों का, यादों का, मुलाकातों का क्या करना है ये तो बता देना,
एक बार मिलके मेरा भ्रम तो मिटा देना,
ढलते है दिन होती है रात, पर नही जा रही है तेरी यादों की बारात,
रोज देती जा रही है एक नए आंसू और गमों की सौगात,
ना रही उम्मीद, है बस एक फरियाद.....तुझे भूलू या करूं मैं याद ये तू ही तय कर देना, एक बार मिलके मेरे ज़हन से हर वहम दूर कर देना.........-