बरसे हैं कहर बनकर उन पर
जो मानवता के भक्षक हैं
घर में घुस कर मारेंगे हम
इसमें भी किसी को क्या शक हैॽ
कलमा पढ़वाकर मारने वालों
ध्यान लगाकर सुन लो तुम
हमको है किसी से क्यों डरना
जब काल हमारा रक्षक है ।।
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पैरों की रज मिल भी जाए
मन का मैल ये जाए तो कैसे ॽ
सब कुछ तुमने दिया है हमें पर
मन का सुकून भी पायें तो कैसे ॽ
नाव फँसी मझधार में अब तो
इसको पार लगाएं तो कैसे ॽ
रूठे हो क्यों अब आ भी जाओ
श्याम तुम्हे हम मनाएं तो कैसे ॽ
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मद मोह लोभ से जकडा हूँ
क्या ऐसे जीवन बीतेगा ॽ
जिसने खुद को तुम्हे सौप दिया
वह ही इन सबसे जीतेगा ।
अर्जुन के तुम सारथी बने
उसे मूल्य तुम्हारा पता ही था,
पर जिसका मन दुर्योधन हो
तुम्हे क्या ही मोल खरीदेगा ।।
है समय अभी भी थामो मुझे
वर्ना अब देर हो जाएगी,
उलझा ही रहूँगा दुनिया में
मुझे बाहर कौन घसीटेगा ॽ
मन कहता है मिल जाओ मुझे
ना आओ तो भी कोई बात नहीं
पर नजर जरा रखना मुझ पर
वरना मुझ पर क्या बीतेगा ।-
ना मांगू मैं तुमसे, जगत के खिलौने
मुझे अपनी भक्ति का वरदान दे दो ।
गुम हूँ जहां के चकाचौंध में मैं
मुझे अपने चरणों में स्थान दे दो ।।
तुम्हीं ने तो भेजा है मुझको यहां पे
मुझे मेरे जीने का सामान दे दो
हूँ अंदर से मृत मैं, यह तन ही है जिंदा
मुझे मेरे अंदर का इंसान दे दो ।।
छोडोगे तुम जो मुझको भंवर में
तो जाऊंगा माधव कहां मैं डगर में,
ना जाऊं कभी भी गलत राह पर मैं
अनुज को कन्हैया यही ज्ञान दे दो ।।
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तुमको आना है तो आओ
लेकिन फुर्सत से आना तुम,
सारी शिकायतें, प्यार की बातें
सब कुछ साथ में लाना तुम ।
फिर से जियेंगे गुजरे पल हम
रोकर हंसना भी तो है,
हंसते हंसते दिल की बातें
फिर से मुझे बताना तुम ।।
जाने के वक्त हंस कर जाना
और मेरी कमी बताना तुम
पर बिना बताए गुमशुम होकर
इस बार ना फिर से जाना तुम ।।
मना नहीं है जाओ भी गर
पर इतना तो सुनते जाओ
मुझ से बेहतर की खोज में अब
मुझ से बुरा ना पाना तुम ।।-
अभी मजबूरी है, बंदिशें हैं
तुमसे दूर करने में बहुत सारी रंजिशें हैं,
बीते लम्हों को मैं कैसे वापस लाऊंगा
इस बार तो आ नहीं सका, पर शायद
अगले बरस मैं जरूर आऊँगा ।।
तुम्हारे साथ अलग ही सुकून है
तुम्हारे पास अलग ही शान्ति है,
तुम्हारी गोद में चलना सीखा मैने
तुम्हारी हर एक गली मुझे जानती है ।।
बहुत दिन हो गए, एक बार फिर से
मंदिर पर सबको बुलाऊंगा
इस बार तो आ नहीं सका, पर शायद
अगले बरस मैं जरूर आऊँगा ।।
होली, दशहरा, दीवाली दोस्तों के बिना
सब बेरंग लगते हैं
जेब में पैसे आ जाएं, इसके लिए हम
दिन रात जगते हैं ।।
जाने कब एक बार फिर से मेला देखकर
देर रात से घर आऊंगा
इस बार तो आ नहीं सका, पर शायद
अगले बरस मैं जरूर आऊँगा ।।
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तुम्हारी हरकतें मुझे सुकून देती हैं
तुम्हारी बातें मुझे हँसाती हैं,
तुम्हारे गाल पर पर आँसू की बूंद भी
दिल मेरा दुखाती है ।
तुम्हारे पैरों में छन छन करती पायल
अलग ही धुन में गाती है,
सही कहते हैं, बेटियां ही
घर में रौनक लाती हैं ।।-
है रखा क्या पछताने में,
लोहे को जंग लगाने में
उसकी छूटी चूनर को लेकर
अपने अंग लगाने में ।
होनी क्या, अनहोनी क्या
सब है खेल पसीने का
उठ कर, फिर से लग जा तू
सपनों को पंख लगाने में ।।
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चंद पैसों के लिए, हम दूर हैं उससे
या कंधों पर जो बोझ है, मजबूर हैं उससे ।
उसकी यादों में खोता हूँ, जब वह दूर जाता है
सपने में भी मेरे हरदम, बस मेरा गांव ही आता है ।।
जहां पेड़ के नीचे पंचायत, मंदिर पर बजते बाजे हैं
सुख या दुख में सबकी खातिर,खुले सभी दरवाजे हैं ।।
बैठ के बरगद के नीचे, गम मेरा दूर हो जाता है
सपने में भी मेरे हरदम, बस मेरा गांव ही आता है ।।
वह होली की चहल-पहल, और दूर दूर तक हरियाली
जाने क्यों लगती मनभावन, रात अमावस की काली ।
राखी का रंग लिए खुद में, यह सावन भी मुस्काता है
सपने में भी मेरे हरदम, बस मेरा गांव ही आता है ।।
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ये गांव, ये गलियां भी
सूनी लगती हैं
अब तो जिन्दगी भी
अधूरी लगती है ।
हँसते खेलते हम
बेचैनी की मुकाम पर आ गए
फिर भी लोगों को
हमारी रातें पूरी लगती हैं ।।
ना वो पहले वाली बात है
ना वो चांदनी रात है
ना चहल पहल है वो
ना ही वो बरसात है ।।
अब तो नींद नहीं
पुरानी यादें जरूरी लगती हैं ।
हँसते खेलते हम
बेचैनी की मुकाम पर आ गए
फिर भी लोगों को
हमारी रातें पूरी लगती हैं ।।-