Anuj Tiwari   (Anuj Tiwari 'प्रकाश')
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Joined 18 January 2018


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13 JUN AT 14:03

कहां तुम्हारी लाल ड्रेस, कहां मेरे कपड़े लाल,
कहां खुश्क सा चेहरा मेरा, कहां तुम्हारे मेकअप के गाल।

कहां सूने सूने कान मेरे, कहां तुम्हारी लंबी बाली,
कहां आंख पर चश्मा मेरा, कहां तुम्हारी आंखों पर लाली।

कहां सिगरेट से काले होंठ मेरे, कहां लिपस्टिक लाल तुम्हारी,
कहां उलझे-उलझे बाल मेरे, कहां लहराती ज़ुल्फ तुम्हारी।

कहां रिश्ट वॉच मेरे हाथों में, कहां खाली तेरी कलाई हैं
चेन लगा है हुडी मेरा, कहां तेरे कुर्ते की सिलाई है

कहां हरा-हरा सा फोन मेरा, कहां एप्पल तेरे हाथों में,
चाहे कितने शेर कहूं मैं तो, पर फूल झड़ें तेरी बातों में

मैं लाइट लगाकर चमक रहा, तू तो चमके दिन-रातों में,
’ताज’ वाज सब फीके हैं, तू अव्वल है उन सातों में ।
तू अव्वल है उन सातों में  ।।

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6 JUN AT 17:06

कि अबकी बार गया जो तू, अश्क नजरों से बहाए नहीं हमने,
तेरे नाम से जो जुड़े थे नग़मे, वो लबों पे लाए नहीं हमने।
जला दिए सारे पन्ने, भुला दिए अपने अल्फ़ाज़,  
कि तुझ पर लिखे वो शेर, फिर कभी सुनाए नहीं हमने।

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6 APR AT 11:07

वहीं से कर शुरू अपनी, जहाँ पे छोड़ आए थे,
कहानी कह रहा हूँ वो, कि दिल तुम तोड़ आए थे।
उसी इक बात पर अब तक, ठनी दरिया से है मेरी,
कि लहरों में फँसा था मैं, तुम कश्ती मोड़ आए थे।

हमीं से बैर था उसको, हमें बस वो ही प्यारा था,
जो देखा आसमां हमने, तभी टूटा भी तारा था।
मैं जिसकी याद में अक्सर, वो चुप्पी ओढ़ लेता हूँ,
ये उसी मैदान की बातें हैं, जहाँ हर खेल हारा था।

कभी नज़रों से कहते थे, कभी लफ़्ज़ों से गाए थे,
कि सुनाई जब ग़ज़ल तेरी, तो बस आँसू ही आए थे।
चलो इक रोज़ तुम भी फिर, उसी एक मोड़ पे आना,
जहाँ हमने पुकारा था, तुम पीछे मुड़ न पाए थे।

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2 APR AT 14:18

सोचता हूँ कि कहानी में उसको जोड़ा जाए,
क़तरा-क़तरा ही सही, रुख़ हवाओं का मोड़ा जाए।

इतरा रहा है आफ़ताब अपने होने पर बहुत,
कि अपने चाँद से गुरूर उसका तोड़ा जाए।

जो लहरें टकराकर साहिल से खो सी गईं,
उन्हें तूफ़ान बनाकर दरिया में फिर छोड़ा जाए।

जलकर धूप में जो ख़्वाब राख से हो गए,
उन्हें रात की बाहों में फिर इक बार ओढ़ा जाए।

निकल आएंगे रास्ते यहाँ दीवारों से भी,
बस इरादों की लौ को अंधेरों में निचोड़ा जाए।

शब की चादर को चीर कर देखो ज़रा,
चंद जुगनुओं को भी तो सितारों में जोड़ा जाए।

दहक जाएगी आग उस ठंडी राख में भी देखो
बस एक झोंका हवा का उस तरफ मोड़ा जाए

जो ले गया था राजा दिखा कर दौलत कभी,
सिक्के उछाल कर उसके कासे को फोड़ा जाए।

सोचता हूँ कि
क़तरा-क़तरा ही रुख़ हवाओं का मोड़ा जाए ....!!

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11 FEB AT 10:35

जो आसमाँ हो बन के बादल, ज़ोर से बरसो भी तुम,
हीर हो तो रांझणा बिन, थोड़ा सा तरसो भी तुम।

जो कि रास्ता हो कभी, उन मंज़िलों पर आ मिलो,
जो दर्द को पहचानते हो, मेरे घावों को सिलो।

जो कि दरिया हो तो गहरे, साहिलों को चूम लो,
बारिशों की बूंद हो तो, बन के सावन झूम लो।

हो चाँद की तुम चांदनी, तो ओस पर चमको ज़रा,
जो जुगनुओं का नूर हो, तो रात में दमको ज़रा।

जो दिख रहा है आँख में, कभी तुम लबों पर लाओ भी,
जो गुनगुनाती गीत हो तुम, दिल खोल करके गाओ भी।

जो हो सफर तुम संग मेरे, कुछ बिन कहे ही चल तो लो
थोड़ा थोड़ा ही सही, तुम रंग में मेरे ढल तो लो

इस हाथ पर मेरे कभी, वो हाथ अपना रख भी दो,
धड़कनें बढ़ने लगें तो, सीने से लगकर ढक भी दो।

अनकही वो बात हो, तो नजदीक आकर कह लो तुम
जो ज़िंदगी हो ,उम्र सारी , इस दिल में आकर रह लो तुम ।

काश ऐसा ख्वाब हो तुम, जो दिन निकले टूटे नहीं
मूँदे लूं मैं आँख अपनी, तू हाथ से छूटे नहीं।

तू हाथ से छूटे नहीं।

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28 DEC 2024 AT 13:01

कि अपनी पर आ जाए तो क़यामत तक ला दे वो,
ये नदियाँ इतरा रहीं हैं कि समंदर उनसे है।।

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21 OCT 2024 AT 20:46

नए शहरों में वो पुराना जमाल ना मिला
उस चेहरे से ज़्यादा मुझे कुछ कमाल ना मिला,

गिरते ही जिसके झूम उठते थे लोग सड़कों पर
महकता हुआ उस शख्स का वो रुमाल ना मिला,

क्या दौर था वो मोड़ता था रुख हवाओं का
अब इन धड़कनों में मुझको कोई उबाल ना मिला,

किस्से आम थे हर चौक उसके कत्लखानों के
इस शहर का कोई आशिक अब बेहाल ना मिला,

अदाकारी ऐसी थी कि फिर हम जवाब क्या देते
बेचैन आँखों में उसकी कोई सवाल न मिला,

उस चेहरे से ज़्यादा मुझे कुछ कमाल ना मिला...!!"

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14 SEP 2024 AT 23:15

हर राज समंदर के लहरे बताए तो क्या हो
की पानी को दरिया की गहराई सताए तो क्या हो

क्या गम करें हम कि उसने फिर मुड़कर नहीं देखा
की आंसू पर आंखें भी हक जताएं तो क्या हो ।।

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19 JUL 2024 AT 0:02

जीवन महके जिन फूलों से, वो क्यारी है मेरी मां
कितनी बार कहा मैने, सबसे प्यारी है मेरी मां

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22 JUN 2024 AT 21:00

बचपन का वो हर्ष राम है, राज धर्म संघर्ष राम है।
प्रेम लुटाता भाई राम है, रिश्तों की गहराई राम है।
पवन पुत्र कृपाल राम है, लंकेश्वर के काल राम है।
गौरव के प्रतिमान राम है, भारत की पहचान राम है।
घट घट के भगवान राम है, पूजा है अरमान राम है।
अधर्म भेदते बाण राम है, अंतर्मन के प्राण राम है।
मात–पिता की आन राम है, सिंघासन की शान राम है।
सब दर्द मिटाती दवा राम है, सांस चलाती हवा राम है।
डूबी करुणा में दया राम है, भोगी जो जग ने जया राम है।
विश्वामित्र का ज्ञान राम है, तीरथ भक्ति और ध्यान राम है।
बलिदान त्याग मूरत है राम, पुरुषोत्तम की सूरत है राम।
राम बसे हैं पवन पुत्र के सीने में, राम बसे हैं मर्यादा से जीने में।
तो हाथ उठाकर शीष नवा कर, राम नाम की जय बोलो।
तो हाथ उठाकर शीष नवा कर, राम नाम की जय बोलो।
श्री राम नाम को जपते जपते, तुम राम धाम की जय बोलो।

तुम राम धाम की जय बोलो।
सिया वर राम चंद्र की जय।।

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