कभी कभी सोचता हूँ ना जाने क्या हो गया तू बिछड़ने पे आया तो पत्थर सा हो गया तुझे क्या पता तेरे जाने के बाद क्या हुआ तुझे लिखने का सोचा उस रात और इतनी पीकर के ग़ज़ल रोती रही और शेर सो गया
वो इश्क़ था मेरा प्यार था कुछ लम्हों का मेरा यार था उसे क्या कहूँ कि क्या था वो बेशक्ल सा एक ख़्वाब था वो जो मुझमे उसका जुनून था बस वो ही तो मेरा सुकून था वो ना आएगा ये मान लू इसे झूठ क्यू ना जान लू मेरी शाम-ओ-शब अब मलाल है हा जीना तो फिर भी फ़िलहाल है ....