Anuj Rawat  
15 Followers · 8 Following

Joined 23 November 2019


Joined 23 November 2019
30 AUG AT 16:53

“Bondage is the essence of creation.
Water is bound in the oceans,
Fire is bound in the air,
Air is bound in the sky,
Earth is bound by gravity,
And space is bound by the infinite.
If the five elements exist through bonds,
Then man too is bound - by nature’s law.
Yet only thought is free, limitless, beyond all boundaries.”

-


29 AUG AT 21:38

I cut the tree from top,
I cut its branches,
I cut its leaves,
I cut all the flowers, seeds.

Still it remained,
The roots held tight,
Silent and strong,
Beyond my sight.

Had I cut the roots instead,
Freed the ground where hope was fed,
No endless circles, no silent plea,
Just peace, at last, inside of me.

-


29 AUG AT 15:13

**“लिखने वाला लिख गया;
कि ज़रा कभी मेरी नज़र से खुद को देख तू,
तो क्या ही लिख गया…

वो एक बार बस काजल लगा ले,
आँखों में चमक और नाक में गोल मुर्की सजा ले।
रहने दे उलझे उन बालों को इक तरफ़,
कानों में सोने की वो बाली लगा ले।

और गाते कभी सुना नहीं उसको,
बस वो गाए नहीं, पर वो हल्का गुनगुनाए…
उसकी वो खामोश धुनें भी दिल को छू जाएँ,
जैसे कोई रूह से बात कर जाए।

और ऐसे तो एक अरसा हो गया उसको देखे,
पर वैसे आज सुबह के सपने की बात तो है…

-


27 AUG AT 20:32

वो सामने खड़ा है मेरे, गले में सर्प लपेटकर,
जटाओं में गंग धारा, नयन त्रिनेत्र समेटकर।

भस्म रमा है अंगों पर, कंठ में विष समेटकर,
माथे पर शोभित चंद्रमा, समय से परे ठहरकर।

श्वास में वो साधे ब्रह्म को, नंदी पर वो सवार है,
कैलाश की हवाओं सा, हिमालय सा विस्तार है।

अनंत, अजर, अमर भी वह, आदि भी और अंत भी,
जग का सार वही है, शिव ही हर तत्त्व भी।

वो वर्ण से है परे, वो जन्म से भी अजन्म है,
ना आरंभ उसका कोई, ना उसका कोई अंत है।

ना वो रूप से है बंधा, ना वो समय के अधीन है,
सृष्टि का सार भी वही, वही शब्द में शून्य, वही शब्द में प्रवीण है।

नटराज जो तांडव रचता, हर कण में प्रकाश है,
विनाश में भी सृजन जिसका, वही महादेव विशेष है

-


23 AUG AT 20:44

वो बूंदें, बरसात सी हटा ले गईं
धूल को मेरे मन के आईने से,
कहीं दूर दिखा वो अपना-सा अक्ष,
हल्का धुंधला, धूल में छिपा।

एक मुस्कान आईने के परे उस चेहरे पर,
मानो घर लौट आने की ख़ुशी हो,
किसी अपने को बरसों बाद पा लेने का सुख,
या बरसों पुराने खुद से मिल जाने का।

और फिर वो बूँदें यूँ बरसती रहीं,
हर परत को धीरे-धीरे धोती हुई,
शायद बरसती बूंदें देती आवाज़
उन आँखों को,
आज न रुकने के लिए, और बस बह जाने के लिए।

वो धूल की परतें अब छटने लगीं,
धुंधले मन के आईने में अब आज़ादी छाने लगी,
वो अक्ष मुस्कराता, और कह जाता—
“मिलना मुश्किल, पर मिलते आना,
वो बरसात रुक भी जाए तो अब खुद बरसना।

-


20 AUG AT 20:37

आसान है, बूंद या नदी बनकर खो जाना,
मुस्किल तो समंदर-सा ठहर जाना

-


7 AUG AT 8:37

Shiva, the destroyer, sat in serene silence in the Himalayas. Krishna, the preserver, led warriors into chaos at Kurukshetra. Sometimes, peace holds the power to end, and war becomes the path to preserve.

“Preservation and destruction are both bound by the laws of nature, yet both remain in perfect sync —each perfectly aligned in their mind.🙃”

-


31 JUL AT 22:59

Hope I could take back those steps—
The ones that led me here.
These thoughts come creeping quietly
Midway through the years.

What if we had chosen differently?
What if we took the other path?
What if we had turned around?
What if we never even started?

Would the silence still have felt this loud?
Would we have found peace, or just the crowd?
Are regrets the price of having tried—
Or echoes of the dreams that died?

I guess even in a mirror world,
I’d still be me in different light—
Still chasing down the same old thoughts,
Still wondering about you at night.

It’s all about the lessons carved
In moments that didn’t last—
And the quiet weight of questions
We often ask, but never ask.

-


29 JUL AT 21:51

आने देना,
आँखों के पहरे से परे,
आँखों में ख़्वाबों को आने देना।
कुछ टूटे, कुछ अधूरे सही,
पर ख़्वाबों की पलकों की आँखों को मुस्काने देना।

किसी बारिश की रात को,
जब गुमसुम आज़ादी का एहसास हो,
खोकर लड़कपन की उन बातों के पार,
उन ख़्वाबों को बच्चे-सा खोने देना।

लांघकर मन की दीवारों को,
आँखों पर से छतों को हटा,
एहसासों की बारिश से ख़ुद को भीगने देना।

वो जो आवाज़ें अक्सर चुप रहीं,
उन्हें दिल की धड़कनों में बजने देना।
जो पल सहेजे थे एकांत में,
उन्हें खुले आसमान में उड़ने देना।

थोड़ा बहकना, थोड़ा संभलना,
इन्हीं दो लम्हों के बीच जी लेना।
और जब लगे कि कुछ भी शेष नहीं,
तो ख़ुद से फिर से मिलने देना।

-


12 JUL AT 11:53

मन तो करता है, बस उससे बातें करने का,
हर खामोशी में नाम उसी का लेने का।
पर दिल कहता है — रुक जा, थम जा ज़रा,
अगर वो आ भी गया, तो कहेगा क्या?

क्या कह पाएगा —
कि वो आँखें कितनी खूबसूरत हैं?
या खो जाएगा खुद ही
जैसे समंदर में नदी मिलती है चुपचाप,
बिना किसी शोर के, बस अपना वजूद समर्पित कर के।

क्या कह पाएगा वो ढेर सी बातें?
पूछ पाएगा हर दिन —
ज़िंदगी की ज़िंदगी से कैसी चल रही है?
या बनकर हल्की सी बूंदा,
शांत हो जाएगा उस रेगिस्तान में,
जहाँ बरसों से कोई साया तक नहीं था।

क्या वो पकड़ पाएगा वो सारे अधूरे ख्वाब,
जो आँखों में थे पर लफ़्ज़ों से बाहर न आ सके?
या बस देखता रहेगा —
जैसे चाँद देखता है समुंदर को,
पास न आकर भी हर लहर में समाया हुआ।

शायद कहना मत इस बार, बस सुन लेना,
क्योंकि कुछ एहसास कहे नहीं जाते — समझे जाते हैं।
शायद समंदर को नदी का नहीं,
नदी को समंदर का इंतज़ार हो...

-


Fetching Anuj Rawat Quotes