Anuj Kumar Dwivedi  
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Joined 9 September 2018


Joined 9 September 2018
15 FEB 2022 AT 0:27

सादगी को गुमा दिया भाई मैंने
ज़िन्दगी को उलझा लिया भाई मैंने
मिली ना सुकून की जो बूंद तो
आँख अपनी भिगा लिया भाई मैंने
तुम कहते थे हौसला रख हमेशा
देखो उम्मीद की लौ बुझा दिया भाई मैंने
बनाता था जो कभी कागज़ से कस्ती
देखो सारी कस्तियाँ ही डूबा दी भाई मैंने
अब तो तू भी मुझसे दूर होगया है
देखो ये दूरियाँ और बढ़ा दी भाई मैंने


"अपरिचित"

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9 FEB 2022 AT 22:17

एक चाहत होती है साहब
अपनो के साथ जीने की
वरना पता तो हमे भी है
कि ऊपर अकेले ही जाना है।

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6 FEB 2022 AT 19:09

जुगनू तू भी उसकी हो गयी,
उसके किन बातों में खो गयी।
...
पहर,महीने, साल गुज़र गए,
मेरे कितने सवाल गुज़र गए।
...
नाम मेरा दोहराती है वो
अब भी ग़ज़लें गाती है वो
...
दर्द अकेले सहती होगी,
हाँ अच्छी हूँ, कहती होगी।
...
उसको ये सारे ख़त देना,
दुनियाभर की बरक़त देना।
...
उसकी कोई ख़बर ना लाना,
जुगनी अब मेरे शहर ना आना।

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2 FEB 2022 AT 2:44

....
भली आदत है अपनी ये, की खुद से बात करते है
वगरना इस जमाने मे, अकेले हो गए होते
....

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1 FEB 2022 AT 16:18

इस सफ़र में एक बात समझ आ रही है...
जिनके सपने हम देखते हैं वो भी सपना देखते हैं
की चाहे कोई कितने भी अपने हो पहले अपना देखते है।

"अपरिचित"

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25 JAN 2022 AT 22:33

मित्रता की कमी है, मित्र की नहीं....

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10 JAN 2022 AT 19:58

इन ख्वाहिशों का बोझ कब तक उठाये हम,
जीने से बेहतर होगा अब मर जाये हम।

_अनुज"अपरिचित"

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28 DEC 2021 AT 1:12

"उम्र का बाइसवा वसंत"
कितनी कोशिश की मैंने की कुछ लिखूँ
पर मैं नहीं लिख पा रहा।
समझ नहीं आरहा की मेरे अनुभव ख़तम होगये या क़िस्से।
अब जब घर से निकलता हूँ तो केवल एक भीड़ दिखाई देती है,
एक भीड़ जिसका हिस्सा मैं अब भी नहीं हूँ।
ज्यादातर लोग अब मतलबी लगने लगें हैं,
हो सकता है मैं गलत हूँ यहाँ पर
तुम जब थे तो ऐसा नहीं लगता था
तब घर से बाहर निकलते वक़्त भी एक अलग ही ख़ुशी होती थी।
ऐसा लगता था जैसे संसार के सबसे सुखी लोगों में मैं हूँ।
अब सायद किसी और कि भीड़ हो तुम।
अकेले रहना सामाजिक प्राणी के लिए थोड़ा कठिन है फिर भी,मैं सिख रहा हूँ।
धीरे-धीरे सिख जाऊँगा।
कल तो अकेले पानी पूरी भी खाया....अच्छा लगा।
लाइब्रेरी गार्डन में बैठा था एक लड़की आकर बैठ गई
उसी से बात होगई पर मुझे तो उसका चेहरा तक नही याद है।
अब ऐसे बाउंडरी नहीं बनाता अपना फ्रेंड सर्किल या बड़े भाई वाला
जो मिलें बात हो जाती हैं और
न मिले तो कोई उम्मीद भी नही।
एक सफर जैसा होगया है।
लोग आते हैं थोड़ी देर बैठते हैं
थोड़ी बहुत बात होती हैं फिर वो चले जाते हैं,
और मैं भी चल देता हूँ।
यारा......
ये भी ठीक है।
अकेले रहने के भी अपने अलग ही फायदे हैं
और मैं उन फायदों को तलाश रहा,

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8 DEC 2021 AT 21:44

हे ईश्वर.!
ऐसे नही ख़त्म होती महान वीर सपूतों की कहानियां
चार दशक को बयां करती हैं सीने पर सजी ये निशानियां

-अनुज "अपरिचित"

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8 DEC 2021 AT 1:22

नदी किनारा शांत पवन और हमदोनों...
एक लम्हें का ख़ालीपन और हमदोनों...
तीन ही चीज़ें इस तेज़ी से बिछड़ी हैं...
एक सूरज की पहली किरण और हमदोनों...

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