आज भी साथ में बेहद ख़ूबसूरत दिखते हैं,
मैं और मेरे साथ झील किनारे बैठी तुम्हारी यादें।
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मेरे इश्क़ का तुझे इल्म न रहा,
मैं काफ़िर तो नहीं हूं,
मेरे इश्क़ ने मुझे रुसवा कर दिया।-
एक कदम तो मेरी ओर बढ़ा "ज़िंदगी",
"ज़िंदगी" भर तेरे साथ न चलूं तो कहना।
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किरदारों के मायने बदल रहे हैं,
जमाने की दीवारें ऊंची होती जा रही हैं।
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मेरी बातों का नशा शायद सुबह तक उतर जाता हे,
तुम होश में आते ही बदल जाती हो।
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मोहब्बत हो गई थी शायद उसे मेरे शहर से और मुझे उससे,
इसलिए शायद आज भी वो मेरे शहर को याद करती हे और मैं उसे याद करता हूं।
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वो वहां कहीं उन पहाड़ो के पीछे,
मैं अपनी कुछ यादें छोड़ आया हूं।
हवाओं से कह दो,
यूं पहाड़ों से टकराकर मेरे पास ना आयें,
मेरा दिल फिर से यादों में उलझना नहीं चाहता।
नदियों से कह दो,
यूं मेरा पीछा ना करें,
मेरा दिल अब इश्क़ में बहना नहीं चाहता।
पंछियों से कह दो,
मुझे पुकारना बन्द कर दें,
मेरा दिल अब इश्क़ में उड़ना नहीं चाहता।
आसमां से कह दो,
अब मुझ पर बारिश न करे,
मेरा दिल अब इश्क़ में भीगना नहीं चाहता।
रुख़ तो करना चाहता हूं वापस पहाड़ों का,
बस मेरा दिल अब मेरी यादों से इश्क़ करना नहीं चाहता।।-