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#Socialwriter

Writing is my emotions therapy 😊
Joined 3 May 2018


#Socialwriter

Writing is my emotions therapy 😊
Joined 3 May 2018
9 JAN 2022 AT 21:56

बादल गरजेंगे डराने को,
बूँदे आएँगी भीगाने को |

आंधीयाँ आयेगी गिराने को,
तुम डटकर खड़े रहना |

यूँही मायुश ना होना,
चलते जाना मंज़िल पाने को ||

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4 AUG 2021 AT 15:12

झूठ से, डर से, धोखे से,
हर कोई डरता हैं |

फिर भी लूटने का,
फरेब करने का,
चोट पहुंचाने का ख़्वाब,
अपने दिल में रखता हैं |

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2 AUG 2021 AT 23:39

ये रास्ते ना जाने कँहा ले जायेंगे,
जितने कठिन होंगे,
उतने दूर तक ले जायेंगे,
इतना सोचकर चलते रहें तो
एक दिन मंज़िल तक जरूर पहुँच जायेंगे |

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17 JUL 2021 AT 0:15

मेरे दोस्त शादी के लिये,
लड़कियां ढूंढ रहे हैं,
और हम रिसर्च पेपर के लिये,
अच्छा सा जर्नल |

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26 JUN 2021 AT 21:34

हर तरफ शोर बहुत हैं,
फिर भी इंसान अकेला,
और बेज़ोर बहुत हैं |

दिखाता बहुत कुछ हैं,
पर हैं पास में कुछ नहीं,
ये दूसरे की नज़रो में हैं अच्छा,
पर खुद की नज़रों में चोर बहुत हैं |

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5 JUN 2021 AT 8:46

आज फिर गमले में पौधे लगाने वाले,
पर्यावरण की बात करेंगे,
उन्हें एक पेड़ लगाकर सेल्फी लेने का फिक्र होगा,
हर तरफ इनका जिक्र होगा |

फिर भी ना जाने क्यूँ लोग मौन होंगे,
बक्सवाहा के जंगलो को लेकर,
उनका ना कोई जिक्र होगा,
ना ही किसी को उनका फिक्र होगा |


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31 MAY 2021 AT 13:58

सरकार के आंकड़े,
एक उम्मीद से जगाते हैं |

पर दोस्तों के फ़ोन,
ज़मीनी हक़ीक़त से सामना कराते हैं |

सोचता हूँ थोड़ा कँही घूम के आ जाऊँ,
पर पैर घर की तरफ दौड़े चले जाते हैं |

इनको भी डर हैं कँही खो ना जाये,
इस कोरोना की भीड़ में |

इसलिए घर पर ही रहकर,
दोस्तों का हाल पूछने को कह जाते हैं |

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27 APR 2021 AT 14:19

हर तरफ ऑक्सीजन की मारी हैं,
आज ऑक्सीजन सिलिंडरो की कालाबाज़ारी हैं |

भटक रहा हैं मनुष्य गली गली साँस लेने को,
ऑक्सीजन बिक चुकी, कर रही होशयारी हैं |

गाँव में बिना मास्क के सजी बारात सारी हैं,
हर तरफ हैं पेड़, ऑक्सीजन भी नाच रही,
सबसे की इसने यारी हैं |

शहर में हैं बहुत शोर हर तरफ महामारी हैं,
गाँव में भी हैं शोर दो रोटी के लिये कर रही तैयारी हैं |


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16 APR 2021 AT 6:56

माना की मेरा घर पुराना था,
अब लगता हैं जैसे कोई गुज़रा जमाना था |

ना कोई खिड़की थी,
ना ही कोई दरवाजा था,
फिर भी धूप और छाँव
का आना जाना था |

ना कोई सुविधा थी,
ना ही कोई आराम,
फिर भी सकून था,
कँही तो अपना ठिकाना था |

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4 APR 2021 AT 9:43

हवाएं आज नरम हैं,
लोगों का मिज़ाज़ आज गर्म हैं,
करते हैं छोटी-छोटी बातो पर सौदा,
पैसे से सबकी जेबे गर्म हैं |

ना कोई शर्म हैं,
ना ही कोई लहज़ा,
हर मुँह पे हैं गाली,
फिर भी ना कोई शर्म हैं |


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