अनुभव मिश्रा  
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Joined 13 December 2017


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Joined 13 December 2017

हर व्यथा से दूर मैं, आज खुद को लेकर बैठ गया ।
सभी प्रश्न से दूर मैं, आज खुद के प्रश्न लेकर बैठ गया ।
होंठो से खोई मुस्कान मेरे, आज खोजने बैठा हूँ,
कुछ देर खुद में रह सकूँ मैं, आज खुद को लेकर बैठ गया ।।

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सारे भेद अंतर मन के खुल जाएंगे, जब पास मेरे तुम आओगे।
दुख-दर्द मेरे सब दूर हो जाएंगे, जब पास मेरे तुम आओगे।
हम अपना क्या ही बोलें, सब तुम पर ही तो अटका है।
उस दिन अब कुछ सुलझ जाएंगे, जब पास मेरे तुम आओगे।

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बोलने या न बोलने से कुछ नहीं होता!
तुम्हारा होना ही सब कुछ होता है।।

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सही - गलत, कब तक समझाया जाए।
कब तक चीखें,कब तक चिल्लाया जाए।
सब कुछ ऐसे, आखिर कब तक होगा?
बेहतर है कुछ पल का मौन साधा जाए।

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एक समय पर हमने, सब कुछ संभव होते देखा है,
एक समय पर सब कुछ, आपे से बाहर होते देखा है।
एक समय जिस आंगन में खुशियां हमने फैलाई थी,
आज उसी आंगन में हमने, सन्नाटा होते देखा है।

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दूर हम अहसास,सभी लेकर आए है।
था जो निकट,उससे बड़ी दूर आए है।
प्रेम था,कि भाव था,या सिर्फ कल्पना।
जो कुछ रहा, तुम्हारे निकट छोड़ आए है।

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प्रेम था एहसास जो, वह तुम्हें जी भर मिला है।
मैंने दिया या किसी और ने, तुम ही बताओ क्या फर्क पड़ रहा है?
निर्णय जो मध्य अपने लिया था, क्या दोनों को संबल दे रहा है?
दूर क्यों उदास बैठी,क्या कुछ गलत सा लग रहा है?
सब कुछ तो वैसा हो रहा है ,जो कुछ तुम्हारी आंखों में था।
मैंने किया या किसी और ने, तुम ही बताओ क्या फर्क पड़ रहा है?

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चार आंखों ने मिल कर सपने देखें,देखें खूब नज़ारे,
जैसे - जैसे धूमिल हुआ सब,आंखे भी हुई दो किनारे।

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समय ने भी, क्या समय चुना है।
न तुम्हें छोड़ सकते है,न तुम्हें पा सकते है।।

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कहने को तो क्या है, कि एक किनारे आ खड़े हैं!
पास आओ ,तो झाकों तुम, तब जानो क्या खाक खड़े हैं!

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