Those tales we spun in quiet light,
Those dreams of futures burning bright
They're shaping now, just as I said,
When your shoulder cradled my resting head.
But now, it’s only me who stays,
Uh’re the silence in my days.
Each idle Sunday, soft and still,
I let ur memories my world fill.
Ur photo, tucked where time won’t fade..,
In my wallet, gently laid..
I speak to it like I once spoke to uh,
Of things we lost, of dreams we knew.
And often comes a haunting thought:
Do uh remember me, or not?
Do uh ever sit and drift away,
Or is it just my mind that strays?
- Anubhav Awasthi
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🍾जाम,जज्बात,जिंदगी✒️
😇सादगी ❣️
📷 Insta - xperience.103
Some souls crossed paths,
only to drift away,
They came with hearts full,
I was lost in dismay.
They brought with them
d gift of love nd light,
While I stood empty, a soul lost to d night...
I couldn’t offer the love
they sought to find,
My heart was lost,
tangled in time.
Perhaps that is how
life truly unfolds,
Connections form, bt love seldom holds...
In fate’s narrow alleys,
this game repeats,
The closest ones often are the ones that retreat.
I remained an
unfinished story untold,
While they were a tale, perfectly whole...
-Anubhav Awasthi-
कुछ अल्फाज लिख के
जला दिये.,
कुछ लिखे हुए के
पन्ने फाड़ दिये.,
कुछ अल्फाज बेवजह ही
पी गया.,
कुछ तुझ संग बिताए
लम्हात थे
उन लम्हों पे पूरी जिंदगी
मुस्कुरा कर जी गया...
-अनुभव अवस्थी-
कमरे से स्याह रात उलझी हुई सी है
बिस्तर उदास बिखरा,
अनमनी सी कोई किताब सीने पर पड़ी हुई है,
फोल्डिंग मेज पर इक खाली प्याला काली काॅफी का,
चादर और धुले कपड़ों से ढका लैपटॉप जिस पर कोई
खोया सा पुराना अंग्रेज़ी गाना लूप पर है,
देखता हूं मैं
ये मैं तो बिल्कुल भी नहीं
मगर फिर सोच ये भी
क्या ही फर्क पड़ता मुझे खुद होने में
जिंदगी भी तो वैसी नहीं
चंद ख्वाबों के टूट जाने पर
सब कुछ बदलना ठहर गया हो जैसे
हर इक के पास बचा नहीं हो
सिवा बीतते रहने के कुछ भी...
- अनुभव अवस्थी-
अक्सर स्वयं का इक हिस्सा
खो देने के बाद..,
मनुष्य का सुकून सिर्फ उसकी
व्यस्तताओं के ईर्द-गिर्द तक ही सीमित रहता है..
-अनुभव अवस्थी-
तुम जानते हो तुम्हारे भीतर
बहुत नम मिट्टी थी
शायद तुम बहुत रोई थी भीतर ही भीतर
मैं कहीं तट के किनारे का था
इसलिए ..,
भीगी माटी से हृदय लगा बैठा था
मेरी यादों के पांव और मन की नाव
उसी तट पर अटकी है
जहां बैठ कर तुम कभी रोई थी....
-अनुभव अवस्थी-
जैसे प्रकृति सहज के रखती है
तबाही के बाद भी
धरती,जल, वायु, जीवन..,
तुम्हारे ना होने के बाद
मैंने भी सहज रखे है कुछ अवशेष
स्मृतियां, वादे, स्नेह, लम्हें..
-अनुभव अवस्थी
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the major problem of modern relationships is people don't believe on fixing things and consequences
instead of this they believe finding someone else..they think there temporary attraction with someone else will led them to the path of peace..
and thats the reason why half of society stuck in deep emptiness-
एक उम्र के बाद आदमी शान्त होने लगता है, भागता हुआ सा शान्त। भागता हुआ सा शान्त आदमी बहुत खतरनाक होता है। आदमी रूक नहीं सकता, उसे रुकने नहीं दिया जाता। वह रुक जाए तो दुनिया का बोझ मालूम पड़ता है। भागते-भागते वह भीतर से खाली होने लगता है। आस-पास स्नेह ढूंढता है जो दोस्तों से नहीं मिलता, दोस्त उलूल-जुलूल की बातों में फँसा कर खालीपन टाल सकते हैं, खत्म नहीं कर सकते।
स्नेह खोजते आदमी से सुंदर कुछ भी नहीं, स्नेह खोजते आदमी से बुरा कुछ भी नहीं। आदमी को, एक समय आने पर अपनी माँ से दूर कर दिया जाता है। उसका कमरा अलग कर दिया जाता है, और उसे आदमियों की श्रेणी में धकेल दिया जाता है जो कठोर मालूम होते हैं। माँ से सिर्फ रसोई तक की बात होने लगती है। माँ के स्नेह की भूख आदमी को सारी उम्र एक खालीपन की और धकलेती है।
आदमी उस स्नेह को प्रेमिका में खोजता है और उसके साथ बच्चा होने लगता है। आदमी का बच्चा होना माँ के सिवा किसी को स्वीकार नहीं, प्रेमिका को भी नहीं। प्रेमिका कभी भी माँ नहीं हो सकती, उसकी अपेक्षाएं हैं, माँ की कोई अपेक्षा नहीं होती।
आदमी फिर आदमी होने लगता है और ढोने लगता है अपने आदमी होने का बोझ। मैंने किसी आदमी से "कैसे हो?" के उत्तर में "बढ़िया" के अलावा कुछ नहीं सुना।
बाकी सब बढ़िया।
- संयम शर्मा-
और फिर झोका खुद को काम में इस कदर कि
खुद के पास बैठे इक अरसा सा बीता..
मैं हैरां था जहन के अंधाधुंध ख्यालों से
जो चला रहे थे इक मैराथन सी..,
भीतर ही भीतर दौड़ लगा रहे थे कब्र पर
मेरे बेजार होते जज़्बातों की ...
मैं बैठता हर शाम मैकदे में
खर्चे हुए जज़्बात व जिंदगी का
हिसाब लगाने...
और पाता इक तैरता हुआ शून्य
उस शाम के जाम में
कभी
नई सुबह के काम में ...
-अनुभव अवस्थी-