Anu Rajput✍   (©अनु राजपूत)
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Joined 30 September 2019


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Joined 30 September 2019
22 JUN 2022 AT 21:00

प्रेम की भाषा या परिभाषा
मुझे समझ न आयेगी
विचलित मन की अभिलाषा
मुझे समझ न आयेगी

बैरागी से बैर रखो तुम
अपना ही इतिहास कहो तुम
मेरे जीवन की पीर खैर अब
तुम्हे समझ न आयेगी

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9 MAY 2022 AT 9:19

बेहतर ज़माने का शौक रखने वालो
जरा अपना भी तो किरदार संभालो

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9 MAY 2022 AT 9:15

माँ और रसोई//

मैंने अक्सर देखा है माँ को रसोई में
धीमी आँच पर कुछ पकाते हुए

एक गहरे पात्र के इर्द-गिर्द नजरें दौड़ाते हुए
की कहीं गलती से भी एक तेज उबाल
उनके पात्र के इर्द-गिर्द न फैल जाए

वो हर-दिन ही कुछ अलग पका रही होती
जिसके स्वाद की समझ शायद किसी को नहीं

[अनुशीर्षक पढ़े]

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9 MAY 2022 AT 9:08

कोई तो है इस सफर में हमसफ़र जैसा
हो न कोई नाम-ओ-निशा बस इक नजर जैसा

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9 MAY 2022 AT 8:57

हैरान हूँ मैं
अपने भीतर की उपज से
भीतर उगते सभी जंगली पौधों से
जो घेरते जा रहे सभी वो स्थान
जहाँ फुटने थे
सफेद फूलों के बीज
जहाँ उगना था
प्रेम का एक विशाल वृक्ष
जिसकी जड़ों का फैलाव हो
मेरे पूरे शरीर
परन्तु मेरे न चाहते हुए भी
बढ़ गया क्षेत्रफल
कटीली झाड़ियों का
जो पैदा कर रहे चुभन
मुझमें और मुझसे जुड़े लोगों मे
हैरान हूँ मैं
अपने भीतर की ऐसी उपज से

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12 APR 2022 AT 10:54

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11 APR 2022 AT 11:05

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11 APR 2022 AT 11:00

कुछ बहुत बुरा होता है
जब बहुत कुछ अच्छा होने का
ख्वाब सजोंया जाता है
कुछ बहुत वक्त तक

इस ख्याल में जाने कितनी
उमरें बांध दी हमने
कुछ बहुत सारी छोटी खुशियों संग

और भय की एक पोटली मे बांध
फेंक दी हमने कुछ बहुत दूर
हमारी अपनी पहुंच से भी बहुत दूर

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11 APR 2022 AT 10:56

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11 APR 2022 AT 10:53

मुझसे मेरी कहानी पूछ मुझे शर्मिंदा कर
मुझमे दफन किरदार को तू फिर से ज़िंदा कर

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