Anu Arya  
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Joined 8 May 2018


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Joined 8 May 2018
19 NOV 2023 AT 21:42

सवाल हजार है,सवालों के जवाब आधे अधूरे है ।

सवालों की उलझनें है, सुलझाने बैठूं तो खुद के अपने डर है ।

डर किसी को बुरा ना लगे,सुलझने से पहले बात और ना उलझे ।

कुछ ना कहूं,तो अंदर ही अंदर एक अजीब सा डर बैठता है ।

डर के मारे ही तो, पैर पीछे खींचता है ।

अपने आप जवाब ढूंढती हूं,तो कई सारे किस्से कहानियाँ बनते हैं ।

सही गलत के फेर में,फिर और उलझती हूं ।

इस उलझन सुलझन में काफी दूर चलती हूं, फिर से एक ही जगह आ कर रुकती हूं ।

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14 SEP 2023 AT 12:18

मैंने हिंदी अंग्रेजी दोनों में लिखकर देख लिया ,भाषाएं दोनों ही सही है ।

जितना हाथ मेरा हिंदी में सदा हुआ है , उतना अंग्रेजी में नहीं है ।

भावनाओं का गहरा दर्पण हिंदी में ही है , बात बे बात पर शब्दों की गहराई है ।

एक एक शब्द दिल से निकला हुआ है , एक ही अक्षर के कई अर्थ है भावार्थ है ।

सरल कठिन का भेद नहीं है , पन्नो पर अक्षर मोती जैसे हैं ।

मैंने हिंदी अंग्रेजी दोनों में लिखकर देख लिया , भाषा का गहरा होना भाषा का सरल होना सिर्फ मुझे हिंदी में दिखा ।

क्योंकि उधर एक पारदर्शी आईना है,दर्पण के आगे पीछे मेरा ही अंश है ।

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14 SEP 2023 AT 11:16

मेरे लिखने की आदत छूट न जाए, इसीलिए रोज लिखता हूं ।

क्या लिखता हूं ,इसी सोच में लिखता हूं ।

शब्दों की गहराई में डूब कर , नदी के उफान में तैर कर लिखता हूं।

कभी गमों को पीछे छोड़ , कभी खुशी में लिखता हूं ।

लिखता हूं , तभी तो भावनाओं का एहसास होता है ।

इस साधारण सी दुनिया में ,एक अलग ही एहसास होता है ।

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9 SEP 2023 AT 15:54

मैं लाख कह दू की मंदिर मस्जिद मेरा है, पर उसको तो पता है कि यह इंसान मेरा है ।

मेरा तेरा करते करते ,ना तेरा है ना मेरा है सब तो उसका है ।

पाप पुण्य का भागी बनकर, ना पाप मेरा है ना पुण्य मेरा है ।

अहंकार , द्वेष करते-करते , ना अहंकार, ना द्वेष मेरा है।

आज नाम का हूं, कल बे नाम सा हूं इस नाम पर भी तो मेरा अधिकार नहीं ।

अकेला ही आया था अकेला ही जाऊंगा ,बीच का सब यही छोड़ जाऊंगा ।

इसी सत्य के साथ ,मैं फिर से इस धरती पर आ जाऊंगा ।

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5 SEP 2023 AT 14:37

मैं सत्य और करुणा दिखाता हूं , बाकी लोगों की तरह झूठ नहीं मैं अपनी ही कविता दिखाता हूं ।

मैं अपनी त्रुटियों को लोगों के सामने रखता हूं , मैं सच बेचता नहीं हूं दिखाता हूं ।

मैं अपनी कविताओं के द्वारा , लोगों की आंखें खोलने की कोशिश करता हूं ।

मैं इधर-उधर भटकता हुआ राही हूं ,अपनी मंजिल की तलाश करता हूं ।

मैं लोगो के कहने पर नहीं ,खुद के कहने पर लिखता हूं ।

मैं इधर-उधर की बात नहीं, मैं अपने मन की बात कहता हूं ।

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14 SEP 2022 AT 11:36

हिन्दी हमारी पहचान है , हिन्दी से ही तो मान है ।

हिन्दी ही तो ज्ञान है , हिन्दी पर ही तो हमको अभिमान है।

गुरु से मिले वो ज्ञान है , शब्दो का नही कोई नाम है ।

मां से मिले वो ममता है , पिता से मिले वो सम्मान है ।

जन - जन की भाषा है हिन्दी, खुद से कमाया हुआ वरदान है हिन्दी ।

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17 MAR 2022 AT 12:08

लाइफ हमेशा से इतनी कॉम्प्लिकेटेड क्यो होती है समझ नही आया ? हम जो चाहते है वो हमको कभी नही मिलता , या यूं कहो कि ज़िन्दगी को भी वही देना होता है जो हमको नही चाहिए होता । क्या पता जो हम सोच रहे हो , वही गलत हो । हम हमेशा सही हो ज़रूरी नही , अब क्या ज़रूरी है क्या नही यह कौन तय करेगा ...
हम कई बार चीज़ों को जाने देते है तभी आगे जा कर वो इतनी बड़ी बन जाती है , या यूं कह लो की वो इतनी ज़रूरी थी ही नही जितना हमने उसको बना कर रखा था🙂.
कभी - कभी कुछ चीज़ों का भार इतना ज्यादा होता है कि हम उस भार के नीचे हम दबते चले जाते है , पर कोई हमसे ऐसा करने को कहता नही है ।
फिर भी हम यही कहते है कि लाइफ ऐसी क्यो है हमारी , या यूं कहलो की यही पसंद है हमारी ....

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4 FEB 2019 AT 13:01

आज एक वीडियो देखी जिसको देखने के बाद समझ आया कि अभी तक जो भी हमारी सोच थी ज़िन्दगी को देखने की या भगवान को देखने की वह कितनी गलत थी । उस छोटे से बच्चे ने इतनी सरलता से भगवान के बीच का फर्क बता दिया था कि भगवान चाहे किसी भी मजब जात पात का ही क्यों ना हो भगवान तो आखिर भगवान ही होता है ? । तो फिर हम लोग ही जात पात के नाम पर और भगवान के नाम पर ही क्यों लड़ते है? । बचपन से हमे सिखाया जाता है कि हम सब भाई बहन हैं फिर हम अपने ही खून से क्यों लड़ते है । हमे अपनी सोच बदलनी होगी और ज़िन्दगी को देखने का नजरिया भी जब हम बदलेंगे तभी हमारा देश बदलेगा ।

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22 DEC 2021 AT 14:05

लोगो को आज जब मैं हताश और निराश देखती हूं , फिर खुद को कल में देखती हूं ।
मुझे भी लोगो की बातों से फ़र्क पड़ता था , क्या करना है क्या नही बस दिमाग उसी में उलझा रहता था ।
इस सोशल मीडिया की दौड़ में खुद को आखिर में देखती थी , फिर एक आद तारीफों से खुद को रॉकस्टार समझती थी ।
पर आज खुद को खुद से ही हराने की कोशिश करती हूं , छोटा मोटा नही कुछ बड़ा करने का दम रखती हूं ।
खुद को ही दिलासा देती हूं , हार गई तो क्या उस हार से भी तो कुछ सीखने को मिलेगा ।
खुद की ज़िंदगी है जब मौका मिला है , तो एवई तो नही गुज़ारेंगे कुछ तो हट कर करके ही जायेंगे ।

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22 DEC 2021 AT 13:15

बड़ी - बड़ी बातें करनी मुझे नही आती , पर हा काम बड़े बड़े करती हूं ।
खुद की ज़िंदगी खुद ही बनाती हूं , सपने देखने का शौक मुझे बचपन से है ।
पर सिर्फ सपनो तक ही उनको सीमित नही रखती , इसी कोशिश में लग जाती हूं कि कभी तो मुझे भी वो मुकाम मिलेगा जिसकी मैं हकदार हूं।
दुसरो के कहने सुनने से मुझे कोई फर्क नही पड़ता , खुद की ज़िंदगी है खुद ही बेहतर करती हूं ।
आज कम तो कल ज़्यादा , या फिर आज ज़्यादा कल फिर कुछ भी ना मिले सब के लिए तैयार हूं ।
खाली कहानी ही नही है यह , यह तो आज लिखी गयी है जो कल पूरी होनी है ।

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