यूं ना मायूस हों , ऐ मंजिल के मुसाफ़िर
अब तक तो सब कुछ बाकी है
अभी तक तो तूने देखा हैं ये आसमां
अब तक तो इसमें उड़ना बाकी हैं
यूं ना मायूस हों, ऐ मंज़िल के मुसाफ़िर
अब तक तो सब कुछ बाकी हैं
माना तूने गिरते हुए ही देखा है ख़ुद को
अब तक तो अपने आप को आसमान की हर ऊंचाई तक पहुंचते हुए देखना बाकी हैं
यूं ना मायूस हों , ऐ मंज़िल के मुसाफ़िर
अब तक तो सब कुछ बाकी हैं
तूने अब तक तो ख्वाबों में ही देखा है अपने सपनों के महलों को ,उन्हे हकीकत में तबदील करना और ख्वाबों से भी सुंदर बनाना बाकी हैं
-